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________________ धार्मिक व्यक्ति अजबबी व्यक्ति है अगर तुम अपने ज्ञान को एक तरफ रख दो और फिर तुम जीवन के तथ्य में प्रवेश करो तो तुम पाओगे कि हां नहीं हो जाता है और नहीं हां हो जाता है। जिंदगी बड़ी बदलाहट है। यहां जिसे हम कहते हैं विधायक, वह कभी भी बदल जाता है, नकारात्मक हो जाता है। जिसे हम सुबह कहते हैं, वही सांझ हो जाती है। जिसे हम सुख कहते हैं, वही दुख हो जाता है। . इसका अर्थ यह हुआ कि सुख और दुख यथार्थ से बाहर खींच लिए गए शब्द हैं। यथार्थ दोनों के बीच एक है। हमारा सारा ज्ञान नाम देने का ज्ञान है, चीजों को नाम देने का ज्ञान है। जब हम चीजों को नाम दे देते हैं तो हम समझते हैं ज्ञान हो गया। हम बता देते हैं कि यह दुख है, यह सुख है। हम समझते हैं कि हम सब समझ गए। नाम के नीचे जो यथार्थ है, उसकी प्रतीति! लेकिन उसकी प्रतीति उन्हें ही हो सकती है जो सब सिखावन को छोड़ने को तैयार हों। लाओत्से कहता है, 'शुभ और अशुभ के बीच भी फासला क्या है?' हां और न तो ठीक है, लाओत्से कहता है, 'शुभ और अशुभ, जिसे हम कहते हैं पुण्य और पाप, उसके बीच भी फासला क्या है? क्या है पुण्य, क्या है पाप? कठिन है यह बात थोड़ी। और घबड़ाहट होती है। क्योंकि लाओत्से का चिंतन अति-नैतिक चिंतन है। और गहन जैसे ही चिंतन होगा, अति-नैतिक हो जाएगा। हम कहते हैं, यह कृत्य शुभ है और यह कृत्य अशुभ है, और ऐसा करना पुण्य है और वैसा करना पाप है। और निश्चित ही हम बांट कर जीते हैं। सुविधा हो जाती है जीने में, अन्यथा बड़ी कठिनाई हो जाए। अन्यथा बड़ी कठिनाई हो जाए। तो हम बांट कर चलते हैं कि दान पुण्य है, चोरी पाप है। दया शुभ है, क्रूरता-कठोरता अशुभ है। सच बोलना शुभ है, झूठ बोलना अशुभ है। जिंदगी में हम ऐसा बांट कर चलते हैं। जरूरी है, उपयोगी है। लेकिन लाओत्से गहरे सवाल उठाता है। वह यह कहता है, फर्क क्या है? वह कहता है, कौन सी चीज है जिसको तुम कह सकते हो कि सदा शुभ है? और कौन सी चीज है जिसे तुम कह सकते हो कि सदा अशुभ है? अशुभ शुभ होते देखे जाते हैं; शुभ अशुभ हो जाते हैं। ठीक वैसे ही, जैसे सुख दुख बदल जाते हैं। समझें, आप अपने पड़ोसी की सहायता करते चले जाते हैं। दया करते हैं, पैसे से सहायता पहुंचाते हैं, सब तरह से सेवा करते हैं। लेकिन आपने कभी खयाल किया? शायद कभी खयाल में भी आया हो तो भी पूरी बात नहीं निरीक्षण हो पाती है। मेरे पास बहुत लोग आते हैं, वे कहते हैं, हमने फला आदमी के साथ इतना अच्छा किया और वह हमारे साथ बुरा कर रहा है। आम अनुभव है यह कि नेकी का फल बदी से मिलता है। लेकिन तब हम यह समझते हैं कि वह आदमी ही बुरा है। मैंने भला किया, वह बुरा कर रहा है क्योंकि वह आदमी बुरा है। लेकिन यह सत्य नहीं है। असल में, जिसके साथ भी आप भला करते हैं, आपका भला करना भी इतना बोझिल हो जाता है, भारी हो जाता है दूसरे पर कि उसे बदला चुकाना जरूरी हो जाता है। जब एक आदमी किसी के साथ भला करता है तो वह उसके अहंकार को चोट पहुंचाता है और खुद के अहंकार को ऊपर करता है। मैं भला कर रहा हूं! दूसरा दीन हो जाता है; मैं श्रेष्ठ हो जाता हूं। तो दूसरा मुझे ऊपर से धन्यवाद देता है कि आपकी बड़ी कृपा है कि आपने इतना मेरे लिए किया; लेकिन भीतर से मेरा अहंकार भी उसको कांटे की तरह चुभता है। वह भी चाहता है कि कभी ऐसा मौका मिले कि हम भी तुम्हारे साथ भला कर सकें; कभी ऐसा मौका मिले कि तुम नीचे और हम ऊपर; कभी हम श्रेष्ठता से छाती फुला कर खड़े हों और तुम हाथ जोड़ कर कहो कि बड़ी कृपा है! अगर आप उसको ऐसा मौका मिलने ही न दें, आप भला किए ही चले जाएं, उसको भला करने का मौका ही न दें, तो वह आदमी आपसे बुरा भी कर सकता है। क्योंकि आपका भला उस पर इतना बोझिल हो जाए। अब दो ही उपाय हैं उसके पास। या तो वह कुछ भला आपके साथ करे और आपको नीचे बिठा दे; और या फिर अगर आप
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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