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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ 166 रहा है। या वह यह सोचने लगता है कि यह सुख मैंने पा लिया, इसलिए अब मैं जब भी चाहूंगा, यह सुख पा लूंगा। तब मुसीबतें खड़ी हो जाएंगी। करीब-करीब ऐसी हालत है कि जैसे हम अंधे भाग रहे हों और अचानक दरवाजे पर हाथ पड़ जाए और हवा का एक झोंका लग जाए। नियम के करीब हम जब पड़ जाते हैं, जाने-अनजाने, तो सुख का अनुभव होता है। अगर आपका सुख बढ़ता चला जाए तो समझना कि आप नियम के करीब पहुंच रहे हैं। लेकिन करीब भी एक तरह की दूरी है। इसलिए सुख में भी दुख का एक मिश्रण है। जब तक हम नियम से एक न हो जाएं, तब तक आनंद का अनुभव नहीं होता। कितने ही निकट हों, फिर भी एक दूरी है। और इसलिए सभी सुख थोड़े दिनों बाद दुख हो जाते हैं। उनके हम आदी हो जाते हैं। जब पहली दफा हवा का झोंका लगता है तो लगता था कि एक ताजगी बरस गई, स्नान हो गया, किसी एक परम अनुभव में उतरना हो गया। फिर जब आदमी खिड़की पर ही खड़ा रहता है, आदी हो जाता है; फिर भूल जाता है। सुख भी शीघ्र ही दुख हो जाता है। सिर्फ आनंद कभी बदलता नहीं है। क्योंकि दूरी इतनी भी नहीं रह जाती कि हम कहें कि निकटता है। एकता ही हो जाती है। मोक्ष, निर्वाण, ताओ, उस एकता के नाम हैं। लाओत्से कहता है, जब कुछ भी न था, अर्थात जब कुछ भी प्रकट न था, जब कुछ भी अभिव्यक्त न हुआ था, सब कोहरे से भरा था - मौन | क्योंकि शब्द भी एक अभिव्यक्ति है। शब्द भी आकार है। शब्द भी ठोस है। इसे थोड़ा हम समझ लें। जब मैंने कहा कि सभी चीजों की तीन अवस्थाएं होती हैं, तो शब्द की भी तीन अवस्थाएं होती हैं। एक अवस्था है शब्द की, जब हम बोलते हैं। लेकिन बोलने में भी कभी खयाल किया होगा, कुछ शब्द तरल होते हैं। जब हमें लगता है किसी शब्द में बड़ी मिठास है, लगता है किसी शब्द में बड़ा काव्य है, लगता है। किसी शब्द में सौंदर्य के फूल खिल गए, तब शब्द तरल होता है। काव्य एक तरलता है। प्रोज और पोएट्री में वही फर्क है— ठोस और तरल होने का । गद्य ठोस है, जैसे बर्फ जमी हुई। पद्य तरल है, जैसे बर्फ पिघल गई और बहने लगी । इसलिए विज्ञान कविता की भाषा में नहीं लिखा जा सकता। विज्ञान सीमा मांगता है — ठोस, स्पष्ट परिभाषा । प्रेम-पत्र कविता में लिखे जा सकते हैं; गणित कविता में नहीं किया जा सकता। गणित ठोस शब्द मांगता है। काव्य है तरल बात। कोई पूछता था दांते से, दांते ने एक गीत लिखा है। किसी को प्रीतिकर लगा और वह दांते से पूछने गया कि इसका अर्थ क्या है ? तो दांते ने कहा, जब मैंने लिखा था तो दो आदमियों को इसका अर्थ पता था - मुझे और परमात्मा को । अब सिर्फ परमात्मा को ही पता है; अब मुझे अर्थ पता नहीं है। कवि को भी, वह जो लिखता है, उसका पूरा अर्थ पता नहीं होता। और अगर पता हो तो वह कवि बहुत छोटा है। उसका मतलब है, कविता कम है, तुकबंदी ज्यादा है। अगर काव्य सचमुच जन्म ले तो बिलकुल तरल होता है, उसकी कोई सीमाएं नहीं होतीं। उसके अनेक अर्थ हो सकते हैं; अर्थ पर कोई पाबंदी नहीं होती। इसीलिए वेद हैं, उपनिषद हैं, उनके हम इतने अर्थ कर पाए। फिर भी अर्थ चुक नहीं सकते; क्योंकि वे सब काव्य हैं, तरल हैं। गीता पर हजारों टीकाएं हो सकती हैं, हुईं, होती रहेंगी। और कभी ऐसा दिन नहीं आएगा कि हमें कहना पड़े कि बस अब गीता पर और किसी टीका की कोई भी जरूरत न रही। क्योंकि गीता एक काव्य है, गणित का ग्रंथ नहीं। तरल है, कोई सीमा नहीं है। इसलिए परिभाषाओं में कुछ बंधता नहीं है । पुरानी सब भाषाएं काव्य- भाषाएं हैं— अरबी है, ग्रीक है, संस्कृत है। इसलिए अरबी, ग्रीक या संस्कृत में एक-एक शब्द के दस-दस, बारह-बारह, पंद्रह-पंद्रह अर्थ हैं। इससे खेलने की बड़ी सुविधा है। इसलिए वेद की एक कड़ी के पचास अर्थ किए जा सकते हैं। कोई गलत और कोई सही नहीं। वहीं भ्रांति शुरू होती है, जब कोई कहता है कि दूसरे ने जो अर्थ किया, वह गलत है। वह काव्य-कड़ी है, तरल है।
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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