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सदगुण के तलछट और फोडे
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लाओत्से इसको फोड़ा कहता है, सदगुण को फोड़ा - जैसे सदगुण हम जानते हैं। लेकिन फोड़ा कहने का प्रयोजन इतना ही है कि आपके भीतर, फोड़े का क्या मतलब होता है कि आपके व्यक्तित्व की, आपके प्राणों की जो व्यवस्था है, उसमें कोई फारेन एलीमेंट, कोई विजातीय तत्व खटकता है। स्वास्थ्य का अर्थ है, कोई विजातीय तत्व खटकता नहीं है; आप एक गहरी संगीत की व्यवस्था में हैं, एक लयबद्ध; कोई चीज खटकती नहीं ।
निष्पन्न
लेकिन ऐसा तभी हो सकता है, जब व्यक्ति के सदगुण दूसरों को दिखाने के निमित्त नहीं, अपने आनंद से हुए हों। और ऐसे सदगुण तभी फलित हो सकते हैं, जब उन्हें पूरा करने के लिए हमने अपने ऊपर जबरदस्ती दबाव न डाला हो, बल्कि अपनी सहजता के प्रवाह में उन्हें उपलब्ध किया हो। अगर कोई आदमी सहज बहे और एक दफा जिंदगी में बेईमानी भी आ जाए, तो हर्जा नहीं है; क्योंकि सहज बहने वाला बेईमानी में ज्यादा देर नहीं रह सकता। क्योंकि बेईमानी इतनी असहज है। कभी आपने झूठ बोला ? एकाध दफे बोला हो तो ही खयाल में आएगा; रोज बोला हो तो फिर बिलकुल खयाल में नहीं आएगा। अगर आपने एकाध दफे झूठ बोला हो तो आपको पता चलेगा कि आपको उस झूठ के लिए अब जिंदगी भर झूठ बोलना पड़ेगा। वह इतना असहज है ! और अब आप किससे क्या कहते हैं, वह खयाल रखना पड़ेगा। क्योंकि वह एक झूठ, जो आप बोल दिए हैं, अब उसके हिसाब से आपको सब बोलना पड़ेगा। आपकी सारी जिंदगी झूठ हो जाएगी। झूठ इतना असहज है, झूठ को याद रखना पड़ता है।
इसलिए ध्यान रखें, जिनकी स्मृति कमजोर है, उनको झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ बोलने के लिए बड़ी गहरी स्मृति चाहिए। इसलिए अक्सर स्मृति जिनकी कमजोर है, वे ईमानदार रहते हैं। उसका कारण यह नहीं है; झूठ बोलने में झंझट है, उसमें बड़ा हिसाब रखना पड़ता है। वह शतरंज का खेल है, उसमें कई चालें आगे की भी याद रखनी पड़ती हैं। सच बोल कर भूला जा सकता है; सच को याद रखने की कोई भी जरूरत नहीं है। इसलिए सच का कोई बोझ नहीं पड़ता। इसलिए जितना सच्चा आदमी होता है, उसके मन पर उतना कम बोझ होता है। जितना झूठा आदमी होता है, उसके मन पर बोझ बढ़ता चला जाता है। पहाड़ खड़े हो जाते हैं। हजारों झूठों का बोझ उसको पूरा तना हुआ रखता है। फोड़ा बन जाता है।
अगर कोई सच को सहजता से बोल रहा है तो उसके जीवन में फोड़े नहीं होंगे। अगर ईमानदारी को कोई सहजता से जी रहा है तो उसके जीवन में फोड़े नहीं होंगे।
एक अमरीकी मनसविद, फ्रेडरिक पर्ल्स ने अपनी मृत्यु के पहले – अभी उसकी मृत्यु हुई – एक छोटा सा कम्यून बनाया था। उस कम्यून में जितने परिवार थे, दस-पांच मित्रों के परिवार थे, उस कम्यून का एक मोटो बनाया था। वह आदमी मर गया। पता नहीं, वह कम्यून चल सकेगा, नहीं चल सकेगा। लेकिन वह मोटो मुझे बहुत पसंद पड़ा। इतना ही सहज हो तो जीवन में प्रेम का फूल खिल सकता है। मोटो यह था, पर्ल्स ने अपने कम्यून के दरवाजे पर लिख रखा था : आई एम आई यू आर यू । इफ आई कैन लव यू, इट इज़ ब्यूटीफुल; इफ यू कैन लव मी, इट इज़ ब्यूटीफुल; इफ आई कैननाट लव यू, आई एम हेल्पलेस; इफ यू कैननाट लव मी, यू आर हेल्पलेस । मैं मैं हूं, तुम
हो; यदि मैं तुम्हें प्रेम कर पाऊं, सुखद है; यदि तुम मुझे प्रेम कर पाओ, सुखद है; यदि मैं तुम्हें प्रेम न कर पाऊं तो असहाय हूं; यदि तुम मुझे प्रेम न कर पाओ तो असहाय हो । और कुछ भी नहीं किया जा सकता।
यह परिवारों के लिए सूत्र । लेकिन इतनी सरलता से अगर आप किसी को प्रेम करें तो आपका प्रेम घाव नहीं बनेगा। कर पाएं तो सुंदर है; न कर पाएं तो आदमी असहाय है। खिल जाए प्रेम, सुखद है; न खिल पाए तो चेष्टा से खिलाने का कोई उपाय नहीं है। यह मतलब है असहाय होने का - आई एम हेल्पलेस । अगर मैं आपको प्रेम कर पाऊं तो ठीक है; न कर पाऊं तो चेष्टा से करने का कोई उपाय नहीं है । और अगर चेष्टा से करूंगा तो सब जहर हो जाएगा। फिर मैं खड़ा हो गया अपने पंजों के बल ।