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ताओ उपनिषद भाग ३
और जिस जीवन में प्रेम भी सहज नहीं है, उस जीवन में कुछ भी सहज नहीं हो सकता, ध्यान रखना। जिसके जीवन में प्रेम सहज नहीं है, पैसा कैसे सहज होगा? पैसा तो अनिवार्य रूप से असहज चीज है। प्रेम अनिवार्य रूप से सहज चीज है। जिनका प्रेम तक तनाव है, उनका सब तनावग्रस्त हो जाएगा।
लाओत्से कहता है, 'ये हैं सदगुण के तलछट और फोड़े। वे जुगुप्सा पैदा करने वाली चीजें हैं।'
घृणा पैदा करने वाली चीजें हैं। बड़ी हैरानी की बात लाओत्से कहता है। वह कहता है, जब सदगुण फोड़ा होता है, तो उससे ज्यादा जुगुप्सा, उससे ज्यादा घृणा-उत्पादक और कोई चीज नहीं होती। यह होगा भी। क्योंकि चीजें विपरीत से जुड़ी होती हैं। प्रेम से ज्यादा सुंदर इस जगत में कोई भी चीज नहीं हैलेकिन प्रेम जहां अभिनय है, प्रेम जहां असत्य है, वहां प्रेम से ज्यादा कुरूप चीज भी खोजनी असंभव है। वे जुगुप्सा पैदा करती हैं। जहां सदगुण फोड़े की तरह मवाद से भरे होते हैं, और जहां साधु सिर्फ छिपे हुए असाधु होते हैं, और जहां वस्त्रों के सिवाय सफाई भीतर कहीं भी नहीं होती, और जहां आत्मा भी अपनी नहीं, उधार होती है, दूसरों से मांग कर भिक्षा-पात्र में जहां आत्मा इकट्ठी करनी पड़ती है, उससे ज्यादा जुगुप्सा पैदा करने वाली और कोई चीजें नहीं होंगी।
__ इसका मतलब यह हुआ कि एक बार एक अपराधी भी सुंदर हो सकता है, लेकिन झूठा साधु सुंदर नहीं हो सकता। एक बार क्रोध में भी एक त्वरा और चमक हो सकती है, लेकिन झूठे, चेष्टित प्रेम में उतनी चमक भी नहीं होती। एक बार क्रोध भी ताजा हो सकता है, लेकिन चेष्टा से दिखाया गया प्रेम सदा बासा होता है। और प्रेम जब बासा होता है तो जितनी दुर्गंध देता है, उतना ताजा क्रोध भी नहीं देता। ताजगी क्रोध की भी भली है, और बासापन प्रेम का भी बुरा है। जब प्रेम ताजा होता है, तब की बात ही करनी उचित नहीं है। जब प्रेम ताजा होता है, तब की बात ही करनी उचित नहीं है। और जब क्रोध भी बासा होता है, तब आदमी बिलकुल मुर्दा है। कब्र है, आदमी नहीं है।
जीसस ने कहा है, तुम सफेदी से पोते गए ताबूत हो; कलें हो सफेदी से पोती गई। तुम्हारी सफेदी ऊपर है, भीतर सब सड़ रहा है।
हमारे सदगुण ऊपर से पोती गई सफेदी हैं अगर, तो लाओत्से कहता है, इससे ज्यादा जगप्सा पैदा करने वाली और कोई चीज नहीं।
'इसलिए ताओ का प्रेमी उनसे दूर ही रहता है।'
ताओ का प्रेमी ऐसे सदगुणों से दूर रहता है। क्योंकि ताओ का प्रेमी उस सदगुण के लिए ही आतुर होता है, जो सहज विकसित होता है और खिलता है; जो एक बहाव है, जो लाया नहीं जाता; जिसको खींच कर लाने का कोई मार्ग नहीं है; जिसके लिए सिर्फ हृदय के द्वार खोल देने पड़ते हैं, और जो आता है। आप उसे आने दे सकते हैं, ला नहीं सकते।
करीब-करीब ऐसा जैसे सूरज बाहर निकला हो, मैं अपना द्वार खोल दूं और उसकी किरणें भीतर आ जाएं। मैं आने दे सकता हूं। मैं अपना द्वार बंद कर दूं, सूरज बाहर रहा आए, उसकी किरणें द्वार से टकराएं और वापस लौट जाएं। मैं सूरज को आने से रोक भी सकता हूं। लेकिन मैं सूरज को ला नहीं सकता। रोक सकता हूं, आने दे सकता हं, लेकिन ला नहीं सकता। कोई सूरज की किरणों को पोटली में बांध कर लाने का उपाय नहीं है। और अगर आपने बांधा भी, पोटली भीतर आ जाएगी, किरणें बाहर ही रह जाएंगी। और तब उस खाली पोटली को आप अगर रखे बैठे रहें तो इससे ज्यादा जुगुप्सा पैदा करने वाली और कोई स्थिति नहीं है।
आज इतना ही। रुकें पांच मिनट, कीर्तन करें, और फिर जाएं।
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