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सदगुण के तलछट ऑर फोड़े
बुद्धि के लोग उन्हें चरित्रवान कह सकें। उन्हें चरित्रवान कहने के लिए बड़ी असाधारण समझ चाहिए। जिनको हम सब चरित्रवान कह पाते हैं उसका मतलब तो यही है कि जो हमारी समझ से भी चरित्रवान हैं, वे कोई बहुत, कोई बहुत गहरे चरित्रवान नहीं हो सकते। हमारे मापदंड में भी जो चरित्रवान उतर जाते हैं।
तो शरतचंद्र को तो लोग चरित्रहीन ही समझते थे। जैसे ही घर में पता चला कि गृहिणी निमंत्रण कर आई है तो नौकरानी ने उसकी सास को कहा कि यह चरित्रहीन चटर्जी को निमंत्रण कर आई; ऐसे आदमी को घर में घुसने भी नहीं देना चाहिए। तो सास ने तो कहा कि इसी वक्त जाकर और इनकार कर आओ; कहना कि मेरी सास की तबीयत खराब हो गई। उसने बहुत समझाया कि यह पागल है; और फिर एक दफा भोजन ही की बात है, आधा घंटा-चरित्रहीन ही सही-भोजन करके चले जाएंगे; निमंत्रण दिया है, अब जाकर मना करूं, बहुत अशोभन है। फिर उसके मन में बहुत आदर भी था। लेकिन कोई तरह सास राजी न हुई तो उसे जाना पड़ा। लेकिन आदर इतना था शरत बाबू के प्रति कि उसने झूठ बोलना ठीक न समझा। उसने सारी घटना ऐसी ही बता दी कि नौकरानी ने खबर दे दी है कि आप चरित्रहीन हैं और मेरी सास छाती पीट रही है, रो रही है। और अब असंभव है आपको ले जाना।
शरतचंद्र खूब हंसे। और उन्होंने कहा कि बिलकुल बेफिक्र रह। और तो और है, पत्नी को भीतर से बुलाया और कहा कि इससे मैंने विधिवत विवाह किया है, फिर भी लोग कहते हैं मेरी रखैल है। इससे मैंने विधिवत विवाह किया है, फिर भी लोग कहते हैं मेरी रखैल है। तो उस महिला ने कहा कि आप इसका प्रतिवाद क्यों नहीं करते? तो शरतचंद्र ने कहा, अगर मुझे शक होता तो प्रतिवाद करता। अब मैंने विधिवत विवाह किया है, अब इसमें और क्या प्रतिवाद करना है? और जिनको मेरी विधि और मेरा विवाह जिनको आश्वस्त नहीं कर पाया, मेरा औचित्य उन्हें आश्वस्त कर पाएगा, इस वंचना में पड़ने का कारण क्या है? शरतचंद्र ने कहा कि हम जो मानना चाहते हैं, वह हम मान ही लेंगे। किसी का औचित्य बहुत फर्क नहीं कर पाता।
सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन जब भी अपने घर लौटता था तो पत्नी उसके कपड़ों पर बाल खोजती थी। अक्सर मिल जाते थे। मुल्ला शौकीन आदमी था। तो कलह निरंतर होती थी। आखिर मुल्ला ने सोचा इतनी सी ही बात से तो चरित्र का सब तय होता है, तो एक दिन घर आने के पहले एक लांड्री में जाकर उसने सारे कपड़ों पर ब्रश करवा कर सब तरह से सफाई करवा दी, और फिर घर लौटा। उसने सोचा, आज तो पक्का है कि कोई कलह का कारण नहीं है। उसकी पत्नी ने उसके सारे कपड़े देखे, छाती पीट कर रोना शुरू कर दिया और कहा कि अब तुमने गंजे सिर की स्त्रियों से भी प्रेम करना शुरू कर दिया! किसी बात की हद होती है, उसकी पत्नी ने कहा। - आदमी जो मानना चाहता है, मानता ही रहता है। कोई तर्क बहुत फर्क नहीं कर पाते। हां, उचित सिद्ध करने की चेष्टा में व्यक्ति अपने संदेहों को प्रकट कर देता है।
तो लाओत्से कहता है, 'जो स्वयं अपना औचित्य बताता है, वह विख्यात नहीं है। जो अपनी डींग हांकता है, वह श्रेय से वंचित रह जाता है। जो घमंड करता है, वह लोगों में कभी अग्रणी नहीं हो पाता। ताओ की दृष्टि में उन्हें सदगुणों के तलछट और फोड़े कहते हैं।'
किन चीजों को? जो चीजें लाओत्से ने ऊपर गिनाई हैं। तनाव से भरा हुआ व्यक्ति, जो अपने को दिखाता फिरे ऐसा व्यक्ति, जो अपना औचित्य सिद्ध करे ऐसा व्यक्ति, जो डींग हांके, जो घमंड करे ऐसा व्यक्ति, इसे लाओत्से कहता है, ये सदगुणों के तलछट और फोड़े हैं। ऐसा व्यक्ति सदगुणी नहीं है।
लेकिन हम तो जिनको भी सदगुणी मानते हैं, वे इसी तरह के व्यक्ति होते हैं। आपको अपने त्याग का भी प्रचार करना पड़ता है, तो लोग आपको त्यागी मानते हैं। जरूरी नहीं है कि आपने त्याग किया ही हो, ठीक प्रचार जरूरी है। अगर आप अपने सदगुणों की खुद ही चर्चा नहीं करते हैं तो कोई आपके सदगुणों की चर्चा करने वाला
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