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________________ ताओ उपविषद भाग ३ अगर किसी नदी को हम तैयार कर सकें, प्रशिक्षित कर सकें सागर की तरफ बहने के लिए, तो संभावना कम है कि नदी सागर तक पहुंच पाए। क्योंकि जैसे ही कोई नदी इस कोशिश में पड़ जाएगी कि मुझे सागर पहुंचना है, बहना भूल जाएगी। वह जो सागर पहुंचना है, वह बहने का भूलना हो जाएगा। सागर पहुंचना ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया, बहना कम महत्वपूर्ण हो गया। नदी अपने बहने में आनंदित है। यह आनंद उसे एक दिन सागर पहुंचा देता है। कली फूल नहीं बनना चाहती, बन जाती है। कली तो जो है है, इस होने से फूल निकल आता है। जीवन में, मनुष्य के जीवन में भी जो श्रेष्ठतम फूल खिलते हैं-बुद्ध के, कृष्ण के या लाओत्से के-वे बड़े सहज फूल हैं। हम जो बिना खिले रह जाते हैं, उसका कारण यह है कि हम बड़े होशियार हैं। हम बुद्ध से ज्यादा बुद्धिमान हैं, हम लाओत्से से ज्यादा होशियार हैं, वाइज। क्योंकि हम पहले से ही योजना बांधते हैं-कहां पहुंचना है, क्या होना है। मंजिल हम पहले तय करते हैं। अक्सर हम मंजिल तय करने में ही समाप्त हो जाते हैं। मंजिल तो आदमी के भीतर है। अगर कली फूल बनना चाहे तो उसका मतलब हुआ कि फूल कहीं बाहर है, जो कली बनना चाहती है। लेकिन कली तो कली ही हो जाए पूरी तरह तो फूल बन जाएगी। क्योंकि कली के भीतर छिपा है फूल। इस बात को ठीक से समझ लें। जो भी हम हो सकते हैं, वह हमारे भीतर छिपा है। वह कहीं कोई भविष्य की मंजिल नहीं है, वह अभी और यहीं मौजूद है। इसलिए अगर हम अभी और यहीं अपनी परिपूर्णता में हो जाएं तो हम उसको रस दे रहे हैं जो हमारे भीतर छिपा है। उसको हम सींच रहे हैं, उसको हम पानी दे रहे हैं। अगर मैं अभी और यहीं अपनी परिपूर्णता में हो जाऊं तो मेरे भीतर जो बीज छिपा है, वह प्राण पा रहा है मेरे इस होने से, आनंद पा रहा है, बढ़ रहा है। एक दिन वह खिल जाएगा। लेकिन हमारे लिए मंजिल कोई बाहरी चीज है। हम सोचते हैं, कुछ होना है। जो मैं हूं नहीं, वह होना है। लाओत्से कहता है, जो तुम नहीं हो, वह तुम कभी नहीं हो सकोगे। और जो तुम हो, केवल वही तुम हो सकते हो। लेकिन एक बात और जोड़ देने जैसी है: जो तुम हो, जरूरी नहीं है कि हो पाओ; चूक भी सकते हो। जो तुम नहीं हो, कभी नहीं हो सकोगे; जो तुम हो, वही हो सकते हो; लेकिन जो तुम हो, उस होने की कोई अनिवार्यता नहीं है, चूक भी सकते हो। कली कली भी रह सकती है; जरूरी नहीं है कि फूल हो। बीज बीज भी रह सकता है; जरूरी नहीं है कि वृक्ष हो। लेकिन गुलाब की कली कोई भी उपाय करे तो कमल का फूल नहीं हो सकती। खतरा यह है कि कमल के फूल होने की चेष्टा में गुलाब की कली कहीं गुलाब होने से भी वंचित न रह जाए। अक्सर वैसा होता है। आदमी योजना से पीड़ित है। योजना क्या है? और जो मंजिल हम चुनते हैं, वह भी किस लिए चुनते हैं? वह भी हम दिखाते फिरते हैं किसी और को। हमारे आदर्श भी हमारे आभूषण हैं। और हमारे आदर्श भी हमारे श्रृंगार से ज्यादा नहीं हैं। दूसरों को हम दिखाते फिरते हैं कि हम क्या हैं, क्या होना चाहते हैं, क्या होने की योजना है। 'जो अपने को दिखाता फिरता है, वह वस्तुतः दीप्तिवान नहीं है।' अगर दीप्ति है तो लोग देख लेंगे। और लोग न देखें तो दीप्ति के होने में अंतर कहां पड़ता है। अगर आपके घर में दीया जला है तो आपके मकान की खिड़कियों से रोशनी बाहर जाएगी। कोई राहगीर निकलेगा तो देख लेगा। और राहगीर अंधा हो, निकले, अपने में व्यस्त हो, अंधा भी न हो, न देखे, तो दीए के होने में क्या फर्क पड़ता है? और अगर एक राहगीर खड़ा होकर प्रशंसा भी कर जाएगा कि दीया जला है और रोशनी हो रही है, तो इससे दीए को कोई तेल नहीं मिल जाने वाला है। और न यह प्रशंसा दीए की ज्योति को बढ़ा देगी। हां, हम जरूर ऐसे दीए हैं कि भभक कर जल उठेंगे, अगर कोई कह जाए। उसमें हमारा और तेल, जो थोड़ा-बहुत होगा, चुक जाएगा। और अगर कोई न निकले तो हम अपनी उदासी में डूब कर बुझ जाएंगे। हमें पूरे 146
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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