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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ 144 परेशान होते हैं। डर यह है कि कहीं उसने सही ही न कहा हो। उससे क्रोध आता है। और अगर उसने सही कहा है तो हमने जो अपनी प्रतिमा बना रखी है, वह मोम की तरह पिघलने लगेगी। एक आदमी मेरे प्राण खींच ले सकता है। एक आदमी कह दे कि बुरे हो, तो सारा अस्तित्व डगमगा जाता है। मैंने अस्तित्व बनाया ही दूसरों के विचारों से है; उनके ओपीनियन इकट्ठे कर लिए हैं, उनकी फाइल बना ली है। वही मेरी आत्मा है। उसमें एक पन्ना उड़ता है तो मेरे प्राण उड़ते हैं। कभी आपने सोचा है कि लोग आपके बाबत क्या कहते हैं, अगर वह सब आप हटा दें, तो आपके पास सिफर, शून्य के सिवाय क्या बच रहेगा? तब आपको कैसे पता चलेगा कि आप अच्छे हैं या बुरे हैं, सुंदर हैं कि कुरूप हैं, बुद्धिमान हैं कि बुद्धिहीन हैं, कैसे पता चलेगा ? दूसरे क्या कहते हैं, वही हमारा आत्मज्ञान है। इसलिए हम दिखाते फिरते हैं। इसलिए बड़ी झंझटें खड़ी होती हैं, और जीवन बड़े उलझन में पड़ जाता है। एक व्यक्ति किसी के प्रेम में पड़ जाता है। दोनों एक-दूसरे को दिखाते हैं। प्रेमी ऐसा दिखाई पड़ता है कि ऐसा प्रेमी जगत में कभी हुआ ही नहीं होगा। प्रेयसी ऐसी मालूम पड़ती है कि अभी, सद्यः, अभी-अभी स्वर्ग से उतरी है। दोनों एक-दूसरे को दिखा रहे हैं। लेकिन यह पंजों के बल खड़ा होना है। ज्यादा देर नहीं रहा जा सकता इसके बल खड़ा। जब बीच पर मिले घड़ी भर को तो पंजों के बल खड़े रह सकते हैं। पूर्णिमा के चांद में चोरी-छिपे मिले तो पंजों के बल खड़े रह सकते हैं। फिर ये भूल से विवाह कर लें तो पंजों के बल कितनी देर खड़े रहेंगे? फिर जमीन पर उतरना पड़ेगा। फिर वह जो दिखाने की चेष्टा थी, वह समाप्त हो जाएगी। तब अचानक लगता है कि एक साधारण सी स्त्री, जिसको मैं अप्सरा समझा था ! एक साधारण सा पुरुष, जिसको समझा था देवता उतर आया है ! धोखा हो गया। तब भी हम यही सोचते हैं कि दूसरे ने धोखा दे दिया। दोनों ही यही सोचते हैं। कोई भी यह नहीं सोचता कि हम दोनों पंजों के बल खड़े होकर एक-दूसरे को दिखाने की कोशिश कर रहे थे। वह कोशिश ज्यादा देर नहीं चल सकती, वह स्थायी नहीं हो सकती। तीन दिन काफी हैं, सब प्रेम उखड़ जाता है। अगर पुराने दिनों में नहीं उखड़ता था तो उसका कारण था कि तीन दिन भी इकट्ठे साथ नहीं मिलते थे। बहुत कठिन मामला था । बहुत कठिन मामला था। पुराने लोग जरूर होशियार थे, बुद्धिमान थे। अपनी पत्नी को भी देखना एक चोरी का काम था। अपनी पत्नी से मिलना भी एक बड़े संयुक्त परिवार में बड़ी मुश्किल बात थी । लंबा चल पाता था धोखा । अब हमने पति-पत्नियों को आमने-सामने बिठा दिया है। उनकी हालत वैसी हो गई है, जैसा सार्त्र ने अपने एक उपन्यास में कल्पना की है कि एक आदमी मरता है। वह सदा से डरा हुआ है; उसको पाप, अपराध का डर है। और उसको डर है कि वह नर्क जाएगा। लेकिन जब मर कर उसकी आंख खुलती है तो वह पाता है कि एक अच्छे कमरे में बैठा हुआ है, सब साज-सामान लगा हुआ है। बड़ा हैरान होता है कि क्या मैं स्वर्ग में आ गया! सब सुंदर है, सब व्यवस्थित है। जो व्यक्ति उसे उस कमरे में ले आया है, वह उससे पूछता है, क्या यह स्वर्ग है? वह व्यक्ति उससे कहता है कि क्षमा करें, आप नरक में आ गए हैं। और तब दो व्यक्ति और कमरे में लाए जाते हैं—एक महिला है बूढ़ी, एक जवान लड़की है। वह पूछता है, लेकिन यह नरक कैसा है, यहां सब सुविधा है ! वह आदमी कहता है, सभी को ऐसी तकलीफ होती है; थोड़ी देर में आपकी समझ में आ जाएगा। और थोड़ी देर में समझ में आना शुरू हो जाता है। उस कमरे के बाहर जाने का कोई उपाय नहीं है। उसमें दरवाजा भीतर की तरफ खुलता है, बाहर की तरफ खुलता ही नहीं। उसमें कोई बाहर से भीतर आ सकता है, भीतर से बाहर नहीं जा सकता। लेकिन उस आदमी को अच्छा लगता है— जवान है लड़की, सुंदर है; एक संगी-साथी है इस कमरे में, कोई डर नहीं। लेकिन चौबीस घंटे वे अपनी-अपनी कुर्सियों पर वहां बैठे हैं उस कमरे के भीतर। एक घंटा,
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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