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ताओ उपनिषद भाग ३
बिगाड़ने की, उतना उसने पाया कि वह बिगड़ती नहीं, सुडौल हो गई। चेष्टा से हम जो भी करते हैं, वह बिगड़ जाता है। चेष्टा से अगर बिगाड़ना चाहें लिखावट को तो यह श्रम भी व्यर्थ हो जाएगा; सुधर जाएगी लिखावट। अगर चेष्टा से सुधारना चाहें, यह श्रम भी व्यर्थ हो जाएगा; लिखावट बिगड़ जाएगी।
इसको जर्मन मनोवैज्ञानिक फ्रैंकल ने लॉ ऑफ रिवर्स इफेक्ट कहा है-विपरीत का नियम। जो भी हम करते हैं चेष्टा से, उससे विपरीत परिणाम आता है। एक आदमी सब के साथ भला होने की कोशिश करता है, और फिर एक दिन छाती पीट कर कहता है कि मैं सब के साथ भला होने की कोशिश कर रहा हूं और सारे लोग मेरे प्रति बुरे हो गए हैं। लोग निरंतर कहते सुने जाते हैं कि हम नेकी करते हैं और लोग हमारे साथ बदी करते हैं; मैंने उस व्यक्ति की इतनी सहायता की और वक्त पर उस व्यक्ति ने बिलकुल मेरी तरफ पीठ कर ली।
यह आपकी चेष्टा का परिणाम है; नियमानुसार हो रहा है। कोई आदमी बुरा नहीं कर रहा है आपके साथ। जब भी कोई भला करने की कोशिश करता है किसी के साथ, तो बुरा हो जाता है। कोशिश में ही बुराई आ जाती है। किसी पर दया करने की कोशिश करें, और वह आदमी आपको कभी माफ नहीं कर पाएगा। वह आपसे कभी न कभी बदला लेगा आपकी दया का। क्योंकि दया करने की जो कोशिश है, उसमें दया क्रूरता हो गई, उसमें दया हिंसा हो गई। जब किसी के साथ अच्छा करने की आप कोशिश करते हैं तो आप यह दिखा रहे हैं कि आप अच्छे हैं। वह दिखाना ही बीज हो गया जहर का।
इसलिए तथाकथित अच्छे लोगों को कोई कभी माफ नहीं कर पाता। खुद के मां-बाप तक को माफ करना मुश्किल होता है। क्योंकि मां-बाप इतना अच्छा करने की कोशिश करते हैं कि दुश्मन मालूम पड़ने लगते हैं।
यह इस सीमा तक पहुंच सकती है बात कि इंग्लैंड के एक विचारक आर.डी.लेंग ने अपनी एक किताब इस वाक्य से शुरू की है कि मां का बच्चे के प्रति पहला चुंबन ही इस जगत में उपद्रव की शुरुआत है। चुंबन! मां का पहला चुंबन इस जगत में उपद्रव की शुरुआत है! बच्चे के साथ हिंसा शुरू हो गई। लेग ने लिखा है कि बच्चे के साथ हिंसा शुरू हो गई।
यह कुछ दूर तक सच है। लेकिन उतनी ही दूर तक, जहां तक यह चुंबन चेष्टा से निकला हो। अगर चेष्टा से न निकला हो तो चुंबन की याद भी नहीं रह जाती। लेकिन माताएं बाद में बड़ा याद करती हैं। इसलिए लगता है कि चेष्टा से निकली हुई चीजें हैं। माताएं बाद में कहती हैं कि मैंने तुम्हारे लिए क्या-क्या किया। रात-रात भर तुम्हारी बीमारी में जागी हूं! कैसे-कैसे कष्ट उठाए, माताएं पूरा हिसाब रखती हैं। यह हिसाब रखना माताओं जैसा है ही नहीं; यह किसी संस्था के सेक्रेटरी को शोभा देता है।
अगर यह चेष्टा से निकला हो तो इसकी स्मृति बनती है; अगर यह सहज निकला हो तो इसकी कोई स्मृति नहीं बनती। अगर यह सहज निकला हो तो इसका फल उसी समय मिल गया, इसके किसी और फल की आशा नहीं बंधती। अगर यह चेष्टा से निकला हो तो यह इनवेस्टमेंट है, भविष्य में इसके फल लेने की आकांक्षा होगी। फिर बूढ़ी मां अपने बेटे से कहेगी कि मैंने तुम्हारे लिए क्या किया और तुम मेरे लिए क्या कर रहे हो? इसका मतलब यह है कि मां ने जो किया था, उसका आनंद करने में नहीं मिल पाया। आनंद बच गया है। काम हो गया है, फल शेष रह गया है। लेकिन अगर मां का चुंबन आनंद था तो उसे आनंद मिल गया है। अब उसके बदले में कुछ और पाने का सवाल कहां है? और अगर याद है तो वह बताती है याद कि वह पूंजी लगाई थी भविष्य के लिए-लाभ की आशा से। लाभ तत्क्षण नहीं मिला है; आगे मिलेगा, उसका हिसाब रखना पड़ेगा। उसकी स्मृति बनी रहती है।
लाओत्से कहता है कि जो भी हम तनाव से करेंगे, वह हमारे जीवन को भीतर से कुरूप कर जाता है और क्रिपिल्ड कर जाता है, जकड़ जाता है, पंगु कर जाता है। खड़े होकर देखें और खड़ा होना कष्ट हो जाएगा।
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