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________________ सदगुण के तलछट ऑन फोहे र एक आदमी नहीं पाया, जोमा और अलेक्जेंडर ने कोई पता ही नहीं है। यह पैर के बाबत ही सही नहीं है, पूरे शरीर के बाबत सही है। अगर हमारा प्राण पूरे शरीर पर समान रूप से वितरित हो, तो जिस भांति हम थकते और परेशान होते हैं, वैसे थकने और परेशान होने का कोई कारण न रह जाए। कभी लोगों को देखें। खुद को देखना तो मुश्किल होता है, दूसरों को देखें तो आसानी होगी। किसी परीक्षा भवन में चले जाएं और विद्यार्थियों को लिखते देखें। तो आप हैरान हो जाएंगे। लिखा तो जाता है हाथ से, लेकिन उनके पैर तक तने हुए हैं। पैरों से लिखने का कोई भी संबंध नहीं है। अगर कुशल लेखक हो तो कलम अंगुलियां जितनी पकड़ती हैं, उतना ही बल हाथ पर देने की जरूरत है, उससे ज्यादा की जरूरत नहीं है। लेकिन सारा शरीर तन जाता है, सिर से लेकर पैर तक एक-एक नस खिंच जाती है। एक आदमी को साइकिल चलाते देखें। तो सिर्फ पैर के पंजे काफी हैं साइकिल को चलाने के लिए, लेकिन उसका पूरा शरीर संलग्न है। यह जो पूरे शरीर की संलग्नता है, यह अकारण थकावट है। और यह अगर आदत बन गई हो तो हमारा पूरा जीवन व्यर्थ के तनाव में टूटता है। इंग्लैंड में मैथ्यू अलेक्जेंडर करके एक बहुत बड़ा शिक्षक था। वह शिक्षक ही इस बात का था कि लोगों को सिखाए कि कैसे खड़े हों, कैसे बैठें, कैसे लेटें, कैसे चलें। और आप हैरान होंगे यह जान कर कि अलेक्जेंडर ने हजारों लोगों की हजारों बीमारियां सिर्फ उनको ठीक खड़ा होना, ठीक लेट जाना, ठीक बैठ जाना सिखा कर दूर की। वह शिक्षक था केवल मनुष्य की गतिविधियों का, लेकिन वह चिकित्सक सिद्ध हुआ। और अलेक्जेंडर ने अपने संस्मरण में लिखा है कि मैंने अब तक ऐसा एक आदमी नहीं पाया, जो शरीर के साथ सदव्यवहार कर रहा हो। लेकिन उसका उसे कोई पता ही नहीं है। अलेक्जेंडर ने लाओत्से का स्मरण किया है और उसने कहा कि इस आदमी को राज पता था। वह कहता है कि अगर अपने पंजों के बल कोई खड़ा होगा तो दृढ़ता से खड़ा नहीं हो सकेगा। उसकी पूरी जिंदगी एक कमजोरी बन जाएगी। उसकी पूरी जिंदगी में एक भय का कंपन भीतर प्रवेश कर जाएगा। वह जो भी करेगा, कंपित रहेगा, डरा हुआ रहेगा, घबड़ाया हुआ रहेगा। और इसका कारण? इसका कारण नहीं है यह कि वह कमजोर है। इसका कारण सिर्फ यह है कि दूसरों के सामने वह शक्तिशाली दिखाई पड़ने की कोशिश कर रहा है। जब भी आपको लगे कि भीतर कमजोरी पकड़ रही है, समझ लेना कि आप दूसरों के सामने शक्तिशाली दिखाई पड़ने की व्यर्थ चेष्टा में लगे हैं। जब आपको लगे कि आपके भीतर डर पैदा हो रहा है कि कहीं मैं बुद्धिहीन तो नहीं हूं, तब आप समझ लेना कि आप पंजों के बल खड़े होकर लोगों को दिखला रहे हैं कि मैं बुद्धिमान हूं। जीवन बड़ा विपरीत है। - अमरीका में एक मनोविद है, अब्राहम मैसलो। एक मरीज उसके पास आया है। वह एक बहुत बड़ी बैंक का डायरेक्टर है और उसका सारा काम उसके लिखने पर निर्भर है। और आज तक उसकी प्रतिष्ठा और प्रशंसा उसकी बहुत ही सुघड़ और सुडौल लिखावट की रही है। लेकिन इधर कुछ दिनों से उसका हाथ कंपने लगा है और उसकी लिखावट खराब होने लगी है। वह जितनी कोशिश करता है अपनी लिखावट को बचाने की, उतनी लिखावट और खराब होती चली जाती है। और अब उसे डर पैदा हो रहा है कि या तो वह यह काम छोड़ दे, क्योंकि उसकी जीवन भर की प्रतिष्ठा नष्ट हुई जा रही है। उसने न मालूम कितने लोगों से सलाह ली है। लेकिन सब सलाहें खतरनाक साबित हुईं। और सब सलाहों का परिणाम यह हुआ कि उसका हाथ और खराब हो गया है। वह मैसलो से पूछता है। तो मैसलो उससे कहता है, तुम एक काम करो। जब तुम्हारी लिखावट अच्छी थी, तब तुम्हें खयाल है कि तुमने लिखावट को अच्छा रखने का कोई प्रयास किया हो? उसने कहा, मुझे कोई खयाल नहीं है। तो मैसलो ने कहा, तुम अब एक काम करो, जान कर जितना खराब लिख सकते हो लिखो-चेष्टा से। जितना बिगाड़ सको अपनी लिखावट को बिगाड़ो। और जो वर्ष से उसकी चिंता थी, वह विदा हो गई। क्योंकि जितनी उसने चेष्टा की 141
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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