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________________ धार्मिक व्यक्ति अजबबी व्यक्ति है म कौन हो, वह कौन है, वह कहता भाखी है, इसलिा परित्याग। जो भी सीखा है, सभी छोड़ देना है। इसमें धर्म भी आ जाता है; जो धर्म सीखा है, वह भी आ जाता है। जो शास्त्र सीखे हैं, वे भी आ जाते हैं। जो सिद्धांत सीखे हैं, वे भी आ जाते हैं। जो भी सीखा है, सभी कुछ आ जाता है। इसलिए धर्म परम त्याग है। धन को छोड़ना बहुत आसान है; जो सीखा है, उसे छोड़ना बहुत कठिन है। क्योंकि धन हमारे ऊपर के वस्त्रों जैसा है; जो हमने सीखा है वह हमारी चमड़ी बन गया है। उसे छोड़ना इतना आसान नहीं है। क्योंकि हम अपने सीखे हुए के जोड़ ही हैं। एक आदमी से पूछे कि तुम कौन हो, वह कहता है, मैं डाक्टर हूं। एक आदमी से पूछो वह कौन है, वह कहता है, मैं शिक्षक हूं। एक आदमी को पूछो वह कौन है, वह कहता है, अहूं, ब हूं, सहूं। गौर से देखो तो वे सब यह बता रहे हैं कि उन्होंने क्या-क्या सीखा है। एक आदमी ने डाक्टरी सीखी है, इसलिए वह डाक्टर है। एक आदमी ने वकालत सीखी है तो वह वकील है। और एक आदमी ने चोरी सीखी है तो वह चोर है। और हमारे मुल्क में कुछ लोग साधुता सीख लेते हैं, वे साधु हैं। लेकिन यह सब सिखावन है। यह सीखा हुआ है। सीखे हुए का धर्म से कोई संबंध नहीं है। अनसीखे की खोज! जिसे न कभी हमने सीखा है और न सीख सकते हैं, जो हम हैं ही, जिसमें सिखावन से कुछ जोड़ा नहीं जा सकता, कुछ घटाया नहीं जा सकता, जो हमारी मौजूदगी में ही छिपा है, उसकी खोज। और लाओत्से कहता है, छोड़ो पांडित्य, मुसीबतें समाप्त हो जाती हैं। क्योंकि सभी मुसीबतें पांडित्य की मुसीबतें हैं। व्यक्ति की, समाज की सारी मुसीबतें जानकारी की मुसीबतें हैं, पांडित्य की मुसीबतें हैं। जो हम जानते हैं, वही हमारी मुसीबत बन जाता है। इसे थोड़ा समझना पड़े। जो हम जानते हैं, वह हमारी मुसीबत कैसे बन जाता होगा? क्योंकि जो हम जानते हैं, उसके कुछ अनिवार्य परिणाम होंगे, पहला। जानने के कारण हम कभी भी सहज न हो पाएंगे; हर क्षण असहज होंगे। स्पांटेनियस होना असंभव हो जाएगा। एक आदमी आपके पड़ोस में बैठा हुआ है। आप शांति से बैठे हुए हैं। आप उससे पूछते हैं, आप कौन हैं? वह कहता है, मैं मुसलमान हं, या ईसाई हं, या हिंदू हूं। तत्क्षण आप असहज हो जाएंगे। आदमी तिरोहित हो गया। मुसलमान बैठा है पड़ोस में; और मुसलमान के संबंध में आपने कुछ सीख रखा है। अब ये दो आदमी पड़ोसी नहीं हैं। अब इनके बीच में सिखावन आ गई। अगर आप हिंदू हैं, तो उसने भी हिंदू के संबंध में कुछ सीख रखा है। अब ये दोनों आदमी हजार मील की दूरी पर हो गए। अब इनके बीच फासला बड़ा हो गया। अब इन दोनों के हाथ कितने ही फैलें तो भी मिल नहीं सकते। अभी दो क्षण पहले ये पड़ोसी थे; इनके बीच कोई फासला न था। अब इन दोनों की शिक्षाएं बीच में आ गईं। अब ज्ञान का पहाड़ बीच में आ गया। जो आदमी क्षण भर पहले सिर्फ आदमी था, अब आदमी नहीं है, मुसलमान है। जो क्षण भर पहले आदमी था, अब आदमी नहीं है, हिंदू है। और मजे की बात यह है कि दो हिंदू एक से नहीं होते और दो मुसलमान एक से नहीं होते। मुसलमान अ और मुसलमान ब के बीच उतना ही फासला होता है, जितना हिंदू और मुसलमान के बीच होता है। दो मुसलमान एक से नहीं होते, दो हिंदू एक से नहीं होते। लेकिन आपके दिमाग में एक धारणा है कि मुसलमान कैसा होता है; वही धारणा आप इस पड़ोसी पर भी लगा देंगे। वह धारणा झूठी है, इस आदमी से उसका कोई संबंध नहीं है। उस धारणा को जिन्होंने बनाया होगा, उनसे भी इसका कोई संबंध नहीं है। यह आदमी बिलकुल निर्दोष और निरीह है। लेकिन अब आपके मन में न मालूम कितनी धारणाओं का जाल खड़ा हो गया। और इस आदमी को अब आप एक खाने में रख देंगे, एक कैटेगरी में रख देंगे कि मुसलमान है। हम भलीभांति जानते हैं कि मुसलमान कैसे होते हैं। आपकी पूरी की पूरी चेतना सिकुड़ जाएगी। अब जो भी व्यवहार आप करेंगे, वह व्यवहार इस आदमी से
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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