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________________ सदगुण के तलछट ऑर फोड़े वानगॉग ने उस दिन रात अपनी डायरी में लिखा है कि पहली दफा एक ऐसा दिन बीता, जिससे मैं थका नहीं; नहीं तो मैं सुबह थका हुआ ही उठता हूं। सांझ थका हुआ तो सोता ही हूं, सुबह थका हुआ ही उठता हूं। उस दिन मैं सांझ भी ताजा था, थका हुआ नहीं था। और काम मैंने हर दिन से ज्यादा किया था। क्या फर्क पड़ गया? जो कल तक तनाव था, आज वह तनाव नहीं रहा। जिस काम को करने में तनाव है, वह आपको थका जाएगा। और जिस काम को करने में तनाव नहीं है, सहजता है, वह आपको और भी ताजा कर जाएगा। न तो काम थकाता है, न ताजा करता है। आदमी पर निर्भर है।। हम पूरे जीवन को काम बना लेते हैं, तनाव बना लेते हैं। मैं सुनता हूं, लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं कि पिता बीमार हैं, उनकी सेवा कर रहे हैं, कर्तव्य है, ड्यूटी है। ड्यूटी होती है पुलिसमैन की, कर्तव्य होता है एक नौकर का। बेटे का कर्तव्य नहीं होता। कर्तव्य का मतलब है : करना चाहिए इसलिए कर रहे हैं। लेकिन अगर पिता की सेवा करना कर्तव्य है तो फिर सेवा एक पत्थर की तरह छाती पर पड़ जाएगी। और भीतर मन के किसी कोने में यह भाव अगर आना शुरू हो जाए तो यह मत समझना कि यह भाव कहां से आ रहा है कि यह पिता समाप्त हो जाए तो अच्छा। हालांकि आप कहेंगे कि यह बुरा विचार कहां से आ रहा है, यह नहीं आना चाहिए। आप इसको प्रकट भी न करेंगे। लेकिन जिस दिन आपने सेवा को कर्तव्य माना, उसी दिन इस विचार का बीज भी आपने बो लिया अपने भीतर। यह कोई और नहीं ला रहा है। क्योंकि जहां कर्तव्य है, वहां से छुटकारे का मन होगा। __ लेकिन पिता की सेवा अगर कर्तव्य न हो तो बोझ नहीं होगी। और तब सच तो यह है कि पिता की सेवा करते वक्त पहली दफा आपके जीवन में वह फूल खिलेगा, जिसका अर्थ पुत्र होना होता है। नहीं हो, तो वह फूल कभी नहीं खिलेगा। पिता आपको जन्म देकर पिता नहीं हो जाता, और आप किसी से जन्म पाकर पुत्र नहीं हो जाते। पुत्र आप उस दिन होते हैं जिस दिन पिता की सेवा आनंद होती है। और पिता भी आप उस दिन होते हैं जिस दिन बेटे के प्रति जो प्रेम है, वह आनंद होता है, काम और कर्तव्य नहीं। जीवन में जो भी श्रेष्ठ है, वह निसर्ग से खिलता है। और जीवन में जो भी कचरा, जिसको लाओत्से कह रहा है तलछट, कचरा, फोड़े की भांति घाव जो बन जाता है, वह सब तनाव से पैदा होता है। और हम जो भी करते हैं, वह सब तनाव है। हमारा पूरा जीवन एक लंबी यात्रा है, एक तनाव से दूसरे तनाव पर। इसलिए मौत हमारे जीवन की पूर्णता नहीं है, केवल समाप्ति है। अन्यथा अगर एक आदमी का जीवन विकसित हुआ हो तो सांझ जब सूर्य डूबता है तो सुबह के सूर्य से कम सुंदर नहीं होता। सांझ के डूबते हुए सूर्य का सौंदर्य भी वैसा ही अनूठा होता है, जैसा उगते सूर्य का। लेकिन आदमी का उगता हुआ सौंदर्य अलग होता है, डूबता हुआ सब कुरूप हो जाता है। आदमी के जीवन का सूर्यास्त क्यों सुंदर नहीं है? जिंदगी एक तनाव की यात्रा है। तो हम समाप्त होते हैं मृत्यु में, पूर्ण नहीं होते। धार्मिक व्यक्ति के लिए मृत्यु पूर्णता है। अधार्मिक व्यक्ति के लिए सिर्फ अंत, सिर्फ समाप्ति। यह जो, यह जो घटना घटती है, यह घटना प्रत्येक काम को तनाव बनाने से घटती है। लाओत्से कहता है, जो अपने पंजों के बल खड़ा होता है, वह दृढ़ता से खड़ा नहीं होता।' आप कभी अपने पंजों के बल खड़े होकर देखें। वैसे तो सभी लोग पंजों के बल जीवन में खड़े हैं, लेकिन ऐसे कभी पंजों के बल खड़े होकर देखें। जल्दी ही थक जाएंगे। और पंजों के बल आप कितने ही सध कर खड़े रहें, आप कंपित होते रहेंगे भीतर, और खड़ा होना प्रतिपल एक श्रम होगा। लेकिन हम सब पंजों के बल खड़े हैं। हमारा खड़ा होना सहज खड़ा होना नहीं है। कोई आदमी पंजों के बल क्यों खड़ा होता है? ऊंचा दिखना चाहता है, बड़ा दिखना चाहता है; दूसरों की आंखों में कुछ दिखना चाहता है। दूसरों की आंखें बहुत मूल्यवान हैं; अपनी सहजता स्वीकार नहीं है। वह लंबा होना चाहता है। 139
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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