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ताओ उपनिषद भाग ३
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'जो अपने पंजों के बल खड़ा होता है, वह दृढ़ता से खड़ा नहीं होता; जो अपने कदमों को तानता है, तनाव देता है, वह ठीक से नहीं चलता।'
जहां भी जीवन में कुछ करने में हमने तनाव लाया, वहीं सब विकृत हो जाता है। अगर हम प्रेम करने में भी तनाव ले आएं तो प्रेम दुख का जन्मदाता है। उससे बढ़ा फिर दुख का जन्मदाता पाना, खोजना मुश्किल है। अगर प्रार्थना भी हमारी तनाव बन जाए तो वह भी एक बोझ है, पत्थर की तरह छाती पर रखा हुआ । उससे हम और डूबेंगे अंधकार में, प्रकाश की तरफ उड़ेंगे नहीं। लेकिन हम हर चीज को तनाव बना लेने में कुशल हैं। हम किसी चीज को बिना तनाव के करना ही भूल गए हैं।
निसर्ग तनावरहित है। जब एक कली फूल बनती है तो कोई भी प्रयास नहीं होता; बस कली फूल बन जाती है। यह कली का स्वभाव है फूल बन जाना; इसके लिए कोई चेष्टा नहीं करनी पड़ती। और नदी जब सागर की तरफ बहती है तो हमें लगता है कि बह रही है; नदी का होना ही उसका बहना है। बहने के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करना होता । इसलिए नदी कहीं भी थकी हुई नहीं दिखाई पड़ेगी। कली खिलने में थकेगी नहीं। अगर कली खिलने में थक जाए तो फूल नहीं बन पाएगा फिर । क्योंकि थकान से कहीं फूल का कोई जन्म है ? कली तो जब खिलती है तो थकती नहीं, खिलती है, और ताजी होती है, और नई हो जाती है। और नदी जब सागर में गिरती है तो थकी हुई नहीं होती इतनी लंबी यात्रा के बाद; पूर्ण प्रफुल्लित होती है।
आदमी थकता है हर चीज में । वह जो भी करता है, उसमें ही थक जाता है। लेकिन कभी आपने खयाल किया इस थकान के सूत्र को ? आप थके हुए मालूम होते हैं कोई भी काम करते क्षण में। लेकिन अचानक कभी ऐसी घटना घटती है कि सब थकान तिरोहित हो जाती है।
विनसेंट वानगॉग एक डच पेंटर हुआ, और इन पिछले डेढ़ सौ वर्षों में कुछ थोड़े से कीमती आदमियों में से एक । कुरूप था, इसलिए कोई स्त्री कभी उसके प्रेम में नहीं गिरी। उसकी जिंदगी एक थकान थी, एक लंबी ऊब । वानगॉग ने लिखा है कि सुबह उठने का मुझे कोई कारण नहीं मालूम पड़ता, क्यों उठूं ? उठना पड़ता है, मजबूरी है, उठ आता हूं। सांझ सोने का कोई कारण नहीं मालूम पड़ता। आंख भी खोलूं, इसकी कोई वजह नहीं है; क्योंकि कोई भविष्य नहीं है। वानगॉग चलेगा भी तो उसके पैर लड़खड़ाते हुए होंगे। वह काम भी करेगा तो उसके काम में एक उदासी छायी होगी। वह जिस दुकान पर काम करता है—एक चित्र बेचने वाली, पेंटिंग्स बेचने वाली दुकान पर काम करता है— उसके मालिक ने कभी नहीं देखा कि उसने कभी किसी ग्राहक में कोई रस लिया हो। ग्राहक को आता देख कर उसे लगता है कि एक मुसीबत आ रही है। उठ आता है, चित्र दिखा भी देता है, लेकिन जैसे कोई आटोमेटा, कोई यंत्र सब कर रहा हो ।
लेकिन अचानक एक दिन देखा उसके मालिक ने कि वानगॉग गीत गुनगुनाता हुआ सीढ़ियां चढ़ रहा है। यह पहला मौका था कि उसे किसी ने गीत गुनगुनाते देखा। जब वह पास आया तो उसके मालिक ने देखा कि न केवल वह गीत गुनगुना रहा है, आज मालूम पड़ता है उसने स्नान भी किया है। स्नान वह रोज भी करता था, लेकिन वह सिर्फ पानी ढाल लेना था। पानी ढाल लेने में और स्नान करने में बड़ा फर्क है। जब कोई अपने लिए ही ढाल लेता हैं, तो पानी ढालना होता है। और जब किसी और के लिए ढालता है, तब स्नान हो जाता है। और दोनों में बुनियादी फर्क है । कपड़े उसके वही थे, लेकिन आज उनकी तर्ज बदल गई। आदमी वही था, लेकिन चाल बदल गई। उसके मालिक पूछा, वानगॉग, क्या हुआ ? वानगॉग ने कहा कि आज मेरी जिंदगी में एक स्त्री आ गई – प्रेम की एक घटना ।
उस दिन ग्राहकों में उसका रस और है । उस दिन ग्राहक को आता देख कर वह आनंदित है । उस दिन उसके काम में अंतर पड़ गया। जिंदगी में कोई अर्थ आ गया।