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________________ मृत भी सदा अमृत नहीं होता। कुछ लोग उसे पीकर भी मर जाते हैं। कुछ लोग अमृत का भी उपयोग जहर की भांति करते हैं। जो समझदार हैं. वे जहर का उपयोग भी औषधि की तरह कर लेते हैं। न तो अमृत अपने में अमृत है, और न जहर अपने में जहर। निर्भर है आदमी पर और उसके उपयोग पर। कुछ लोगों को धर्म भी बीमारी की तरह मिलता है। कुछ लोग धर्म को भी अपना कारागृह बना लेते हैं। कुछ लोग प्रकाश के साथ भी वैसा व्यवहार करते हैं, जैसा अंधकार के साथ। जीवन सभी के लिए आनंद नहीं है। मृत्यु भी सभी के लिए दुख नहीं है। कुछ लोग जीवन में सिवाय मरने के और कुछ भी नहीं करते। और कुछ लोग मृत्यु में भी परम जीवन का अनुभव करते हैं। वस्तुएं अपने में नहीं हैं कुछ भी; व्यक्ति पर निर्भर है। सभी कुछ व्यक्ति पर निर्भर है। यह सूत्र इस महत धारणा से.संबंधित है। लाओत्से कहता है, कुछ लोगों के लिए धर्म फोड़े की भांति है, दुखता है। उससे उन्हें आनंद नहीं मिलता। बीमारी की तरह उन्हें ग्रस लेता है। उससे वे खिलते नहीं, और सिकुड़ जाते हैं। उससे उनकी कली फूल नहीं बनती, और मुर्दा हो जाती है। इस महत सूत्र की गहराई में उतरना जरूरी है। और गहन है यह बात। क्योंकि हम सब ऐसा ही सोचते हैं कि वस्तुएं तय हैं। जहर जहर है, अमृत अमृत है। धर्म धर्म है, अधर्म अधर्म है। हम सोचते हैं, वस्तुएं तय हैं। वस्तुएं तय जरा भी नहीं हैं। व्यक्ति कैसा उपयोग करता है, इससे सब कुछ तय होता है। धर्म को भी लोग फोड़ा कैसे बना लेते होंगे, और धर्म भी जीवन को खिलाने के बजाए संकुचित करने का कारण कैसे बन जाता होगा, उसे समझना हो तो दूर जाने की जरूरत नहीं है, धार्मिक आदमी को कहीं भी देखा जा सकता है। इसीलिए तो एक आश्चर्यजनक घटना पृथ्वी पर घटी है कि सभी लोग अपने को धार्मिक मानते हुए मालूम पड़ते हैं और जीवन में आनंद कहीं भी नहीं है। कोई हिंदू है, कोई मुसलमान है, कोई ईसाई है, कोई कुछ न कुछ है; कोई मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, कहीं जुड़ा है। कहीं न कहीं से सभी ने परमात्मा की तरफ अपनी आंखें उठाई हैं, ऐसा मालूम पड़ता है। लेकिन जमीन बिलकुल अधार्मिक है। और आदमी की आत्मा एक फोड़े से ज्यादा नहीं है, जो सिर्फ दुखती है। यह कैसे संभव हुआ होगा? और यह हम सबके जीवन में रोज हो रहा है। जरूर कहीं कोई एक तरकीब है आदमी के हाथ में, जिससे वह अमृत को जहर बना लेता है। कोई विधि है उसे मालूम, जिससे जो भी सुखद हो सकता है, दुखद हो जाता है, और जिससे मुक्ति संभव है, वही कारागृह बन जाता है। जिन पंखों से आकाश में उड़ा जा सकता है, हम उन्हीं को जंजीरें बनाने में कुशल हैं। उस विधि का ही उल्लेख है इस सत्र में इस सूत्र को हम पढ़ें। 137
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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