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________________ बबया, ब पुरावा, सत्य सनातन होता है। वह पहुंचते-पहुंचते मिट जाता है, समाप्त हो जाता है। इसलिए धर्म के संबंध में कभी कोई मौलिक बात नहीं कही जा सकती। लेकिन ध्यान रखना, यह बात उनके लिए है, अगर कृष्ण लाओत्से को सुनें, या लाओत्से बुद्ध को सुने, तो लाओत्से समझेगा कि कोई मौलिक बात नहीं कही जा सकती। लेकिन आप ऐसा समझ लें तो मुश्किल में पड़ेंगे। आपके लिए तो हर बात धर्म की मौलिक है। क्योंकि आपको तो उसका कोई अनुभव नहीं है। इसलिए दूसरी बात भी सत्य है, पहले जैसी ही, कि धर्म के संबंध में सदा ही मौलिक बात कही जाती है। क्योंकि जब कोई बुद्ध बोलता है, तो यह बिलकुल नई बात है। नई किस अर्थ में? नई इस अर्थ में कि जिन्हें वेद कंठस्थ हैं, उन्हें इसका कोई भी पता नहीं है। जिन्हें गीता कंठस्थ है, उन्हें इसका कोई भी पता नहीं है। यह बात बिलकुल मौलिक है। कृष्ण के लिए मौलिक नहीं है। लेकिन कृष्ण बुद्ध को सुनने भी नहीं आते हैं। बुद्ध और महावीर एक ही गांव में कई बार ठहरे; मिलना नहीं हुआ। एक बार तो एक ही धर्मशाला में, एक कमरे में बुद्ध और एक में महावीर ठहरे। आधी धर्मशाला में बद्ध का डेरा, आधी धर्मशाला में महावीर का डेरा। लेकिन मिलना नहीं हुआ। बड़े विचार की बात रही है। कई को लगता है कि यह तो बड़ी बुरी बात है, दो भले आदमियों को मिलना चाहिए। भले आदमी वे थे नहीं—जिनको हम भले आदमी कहते हैं-बड़े खतरनाक आदमी थे। और मिलने का कोई कारण नहीं था, क्योंकि दोनों उसी जगह खड़े थे। दोनों तो मिट गए थे; एक ही जगह खड़े थे। मिलता कौन? मिलने का भी क्या उपाय है? और क्या अर्थ है? तो अगर कृष्ण सुनने जाएं लाओत्से को तो कोई मौलिक बात नहीं है। लेकिन कृष्ण सुनने नहीं जाते। और कृष्ण अगर सुनने जाएं तो उसका मतलब है कि अभी भी खोज जारी है। अभी कृष्ण को पता नहीं चला होगा; अभी भी पता लगा रहे हैं। लेकिन आपके लिए तो सब बातें मौलिक हैं। क्योंकि जो आपके पास होती हैं, वे बासी होती हैं, आपके अनुभव की नहीं होती हैं। इसलिए जब भी कोई धर्म का पुरुष पैदा होता है, तब वह जो भी कहता है, वह मौलिक होता है। और यही तो मजा है। इसलिए एक दुर्घटना घटती है कि पुराने धर्म को मानने वाले लोग, जब भी कोई धर्म की ज्योति पैदा होती है, उसके तत्काल खिलाफ हो जाते हैं। जीसस ने कोई नई बात नहीं कही थी। यहूदी शास्त्रों में सब लिखा हुआ था, जो जीसस ने कहा। यहूदी पैगंबर पहले जान चुके थे, कह चुके थे, जो जीसस ने कहा। और जीसस ने खुद ने भी कहा है कि मैं किसी का खंडन करने नहीं आया हूं। मैं वही कहने आया हूं, जो सदा कहा गया है। और जीसस ने खुद कहा-यहूदियों का बड़े से बड़ा पैगंबर था अब्राहम-तो जीसस ने कहा है, अब्राहम बोला, उसके पहले भी मैं था। मैं कोई नया नहीं हूं। लेकिन फिर भी यहूदी जीसस को सूली दिए; क्योंकि यहूदियों को जीसस की बातें बड़ी नई मालूम पड़ीं। क्या मामला है? जीसस कहते हैं, मैं कोई नई बात नहीं कह रहा हूं। लेकिन यहूदियों को जीसस की बातें नई क्यों मालूम पड़ती हैं? और यहूदियों को शास्त्रों का ठीक अध्ययन है। उनके पास पंडित हैं, पुरोहित हैं, बड़े ज्ञानी हैं। वे सब जानते हैं। उन्होंने कहा कि नहीं, ये बातें आदमी गड़बड़ कह रहा है। क्या मामला है? और यह आदमी खुद कहता है कि मैं वही कह रहा हूं। और ये जानकार हैं, जो कह रहे हैं। और जीसस से ज्यादा जानकार हैं। जीसस बहुत पढ़े-लिखे आदमी नहीं हैं। वे जो पंडित, जिन्होंने जीसस को सूली दी, जीसस से बहुत ज्यादा कुशल और योग्य थे-जानकारी में। जीसस उनसे जीत नहीं सकते थे। उन्हें रत्ती-रत्ती ज्ञान कंठस्थ था। एक-एक बात उन्हें याद थी। फिर क्या बात हो गई? उनके पास सब बासा था, कंठस्थ था, शब्द थे, अनुभव कोई भी न था। जिनके पास शब्द हैं, उनके लिए अनुभव सदा मौलिक है। सदा मौलिक है। जिनके पास शास्त्र ही हैं सिर्फ, उनके लिए अनुभव सदा मौलिक है। लेकिन जिनके पास अनुभव है; उनके लिए तो पुराने और नए का फासला गिर जाता है। 131
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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