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ताओ उपनिषद भाग ३
व्यक्ति स्वतंत्रता है। और जब भी कोई व्यक्ति किसी को परतंत्र करने की कोशिश करता है, तो नियम के प्रतिकूल जा रहा है। वह दुख उठाएगा। और जो लोग भले कामों में अधिकार करने की कोशिश करते हैं, वे और ज्यादा दुख उठाएंगे। क्योंकि उनको दिखाई ही नहीं पड़ेगा कि हम कुछ गलत कर रहे हैं। अब पत्नी को दिखाई पड़ना मुश्किल है कि मैं कुछ गलत कर रही हूं। साफ है कि वह ठीक कर रही है कि पति की शराब छुड़वा रही है। बीमारी हो सकती है, दुख-दर्द आ सकता है, सब कुछ हो सकता है शराब के कारण, इसलिए अच्छा काम कर रही है।
लेकिन ध्यान रखना, अच्छे काम से दुख होता नहीं। एक ही कसौटी है : आप अच्छा काम अगर कर रहे हैं तो उसका परिणाम सुख होगा। लेकिन बीस साल अच्छा काम करने का परिणाम अगर दुख ही दुख है तो अच्छे सिर्फ शब्द हैं, असली चीज भीतर कुछ और है। यह शराब सिर्फ बहाना है।
मैंने सुना है एक स्त्री को कहते हुए कि मेरे पति में कोई दुर्गुण नहीं है, और इस वजह से मैं, इस वजह से मैं दुखी हूं। .
अगर आपको बिलकुल संत पति मिल जाए, तो दुख का अंत न रहेगा। क्योंकि उसको काबू में रखने का कोई उपाय न रहा। उसको कहां से डराओ, कहां से धमकाओ कहां से कब्जा करो, कहां से गर्दन दबाओ; कुछ भी न रहा। इसलिए एक मजे की घटना है कि संत पतियों को आज तक पत्नियों ने कभी बरदाश्त नहीं किया। चोर, बेईमान, बदमाश पति भी चलेगा; क्योंकि उसमें एक रस है। बेईमान, शराबी, चोर, कुछ भी हो, चलेगा। क्योंकि पत्नी ऊपर है, अपर हैंड है। पति डरा हुआ घर में प्रवेश करता है; तैयार है कि कुछ उपदेश मिलेगा। लेकिन दुख कौन उठा रहा है?
और बड़े मजे की बात है कि जब एक पत्नी चेष्टा में लगी है कि पति अच्छा हो जाए तो शायद वही जिम्मेवार बन जाए उसके बुरा होने का। क्यों? क्योंकि पति को यह अपनी स्वतंत्रता पर हमला है। यह सवाल शराब का नहीं रह गया। यह सवाल रह गया कि कौन किसकी मानता है! यह पत्नी अगर कहना छोड़ दे-बिलकुल छोड़ दे-तो शायद पति को भी जितना मजा शराब पीने में आ रहा है, उतना न आए। क्योंकि शराब पीकर वे पत्नी को ठिकाने लगा रहे हैं, उसको रास्ते पर लगा रहे हैं। वे बता रहे हैं कि मालिक कौन है! चिल्लाते रहो, लेकिन मालिक कौन है!'
यह शराब मालकियत के बीच उपद्रव का केंद्र बन गई है। पत्नी कहे चली जाएगी; क्योंकि यही मालकियत का ढंग है। पति पीए चला जाएगा; क्योंकि उसको भी अपनी मालकियत सिद्ध करनी है। पति भी दुख पाएगा; पति भी दुख पा रहा है बीस साल से। दुख पाएगा ही; क्योंकि वह भी शराब के द्वारा मालकियत सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है। और पत्नी से ज्यादा दुख पाएगा; क्योंकि पत्नी एक ही नियम का उल्लंघन कर रही है, पति दो नियमों का उल्लंघन कर रहा है। पत्नी एक नियम का उल्लंघन कर रही है कि स्वतंत्रता पर बाधा डाल रही है। पति दो नियमों का उल्लंघन कर रहा है। एक तो स्वतंत्रता को शराब पीकर सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है; आत्मघात, स्युसाइड कर रहा है। क्योंकि जहर पीकर कोई अपनी स्वतंत्रता सिद्ध कर रहा हो तो वह दोहरे उपद्रव कर रहा है। यह शराब पीकर जो दुष्परिणाम होंगे, वे भी उसे भोगने पड़ेंगे। लेकिन इन दुष्परिणामों को भी वह भोगेगा, और कभी यह नहीं सोचेगा, उसके मन में यही रहेगा, सदा यही रहेगा कि यह स्त्री एक उपद्रव है; कोई दूसरी स्त्री होती तो शायद सब ठीक हो जाता।
नहीं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। स्त्री मात्र यही करेगी। क्योंकि पुरुष और स्त्री के बीच जो कलह का मौलिक कारण है, वह यही है कि वे एक-दूसरे पर अधिकार जमाने की कोशिश कर रहे हैं। और जहां अधिकार की चेष्टा है, वहां प्रेम की हत्या हो जाती है। और तब दुख घना हो जाता है।
हम सब जो दुख भोगते हैं, अगर थोड़ी खोज करेंगे तो कहीं न कहीं हम पाएंगे कि कोई कारण है। और वह कारण सदा किसी गहरे नियम के विपरीत जाने से हो रहा है। लेकिन हम दुख मिटाने की कोशिश करते हैं। आदमी
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