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________________ व बया, ब पुराना, सत्य सनातन है लोग कहते हैं कि दुख ही दुख हैं। एक सज्जन आए थे कुछ दिन हुए कि मैं दुख ही दुख में पड़ा हूं। आपसे एक ही बात पूछने आया हूं कि ज्योतिषी कहते हैं कि मेरे पीछे शनि देवता लगे हैं; उनसे कब मेरा छुटकारा होगा? किसी के पीछे कोई शनि देवता नहीं लगे हैं। अगर शनि देवता आपको दुख देने का काम कर रहे हैं तो शनि देवता की क्या गति होगी? उन्हें किस नरक में डालिएगा! इतने लोगों को दुख देने का धंधा जो कर रहे हैं, उनका क्या होगा? कोई आपके पीछे नहीं लगा है; आप ही अपने पीछे लगे हैं। और शनि देवता का अर्थ है कि आप नियम के प्रतिकूल चुनते चले जा रहे हैं; दुख भोगते रहे हैं, दुख भोग रहे हैं। आपका दुख आपकी जिम्मेवारी है, आपका सुख आपकी जिम्मेवारी है। अगर बहुत दुख होता है तो समझ लेना कि आपके सोचने, चुनने, जीने के ढंग गलत हैं। वे नियम के प्रतिकूल हैं। दुख सिर्फ सूचन है। और दुख बड़ा अच्छा सूचन है। प्रकृति ने इंतजाम किया है, दुख से आपको सूचना मिलती है कि आप कहीं नियम के बाहर चले गए हैं। लेकिन हम बड़े पागल हैं, हम दुख को मिटाने की कोशिश करते हैं, नियम के भीतर लौटने की कोशिश नहीं करते। और अक्सर ऐसा होता है कि दुख को मिटाने की कोशिश हम ही करते हैं जो नियम के प्रतिकूल चले गए हैं। हम दुख को मिटाने की कोशिश में और नियम के प्रतिकूल चले जाते हैं। तब हम एक दुख से दस दुख पैदा कर लेते हैं। और हम इसी कोशिश में लगे रहते हैं कि हर दुख को मिटाने को...हम कभी वापस लौट कर नहीं देखते कि दुख सूचक है कि मैं नियम के प्रतिकूल जी रहा हूं, इसलिए नियम के अनुकूल हो जाऊं, दुख विलीन हो जाएगा। हम दुख को विलीन करने की कोशिश करते हैं, नियम के अनुकूल होने की नहीं। तब दुख तो विलीन नहीं होता; एक दुख के दस दुख हो जाते हैं, दस के हजार हो जाते हैं। सब आदमी दुख-शून्य पैदा होते हैं और दुख से भरे हुए मरते हैं। लेकिन वे ही अपने हाथ से फैलाए चले जाते हैं। वह जो फैलाव है, वह जो विस्तार है, वह इसी गणित को न जानने का परिणाम है। जब भी दुख हो, तब दुख की फिक्र छोड़ना, तत्काल अपने पूरे जीवन का निरीक्षण करना, पूरे जीवन पर एक पुनरावलोकन कि कहां मैं नियम के प्रतिकूल चला गया हूं। यह बड़े मजे की बात है और मनुष्य के अधिकतम दुखों का कारण यही है। एक मित्र हैं, शराब पीते हैं। बीस साल से पत्नी उनके पीछे पड़ी है, कि शराब मत पीयो। यही कलह का सूत्र हो गया। बीस साल जिंदगी के इसी उपद्रव में उलझ गए। पत्नी भी कहती है कि पति अच्छे हैं, सब तरह अच्छे हैं, भले हैं; बस यह एक शराब, यही कष्ट का कारण है। इस एक शराब के कारण सब खराब हो गया। पति नहीं छोड़ पाते हैं। तो मैंने पत्नी को कहा कि एक काम कर! बीस साल तुझे कहते हो गए, कुछ छूटा नहीं। अब तू तीन महीने के लिए कहना छोड़ दे। बाद में, तीन महीने बाद तेरे पति से मैं बात करूं। पांच-सात दिन बाद पत्नी ने मुझे आकर कहा कि बड़ा मश्किल है। जैसे उनकी शराब पीने की आदत है, वैसे ही मुझे उन्हें छेड़ने और रोकने की। बिना रोके मैं नहीं रह सकती। अब यह बड़ा मजा है। कौन शराब पी रहा है, तय करना मुश्किल है। अब मैं सोचता हूं कि अगर पति हिम्मत करे और शराब छोड़ दे तो पत्नी मुश्किल में पड़ जाएगी। पहली दफे जिंदगी में दुख आएगा। अभी तक दुख रहा, अब एक नया दुख शुरू होगा। अब पत्नी दुख उठा रही है-बहुत दुख उठा रही है लेकिन इस दुख उठाने का कारण वह समझती है कि पति शराब पीते हैं इसलिए मैं दुख उठा रही हूं। उसे पता नहीं है कि यह कारण नहीं है। यह कारण नहीं है। क्योंकि पति अगर शराब बंद भी कर दें तो भी वह दुख उठाएगी। यह कारण नहीं है। और अगर पति शराब न पीते तो भी वह दुख उठाती। क्योंकि दुख उठाने का कारण कुछ दूसरा है। वह नियम की प्रतिकूलता है। जब भी एक व्यक्ति दूसरे पर किसी तरह की मालकियत करता है, तब प्रकृति के नियम के प्रतिकूल जा रहा है। वह दुख उठाएगा। जब भी एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को डॉमिनेट करता है, तब वह दुख उठाएगा। क्योंकि प्रत्येक |127
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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