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________________ ताओ उपनिषद भाग ३ लाओत्से का उपाय यह है कि तुम प्रकृति के साथ अपना फासला छोड़ दो। तुम यह भूल ही जाओ कि तुम कर्म करते हो। कहो परमात्मा को कि तू ही करता है, तू ही भोगता है; हम नहीं हैं मौजूद। तुम स्वतंत्र हो गए। तब न तुम चुनते हो करते वक्त; और न तुम भोगते वक्त। दोनों हालत में परमात्मा चुनता है, परमात्मा भोगता है। या हम कहें समस्त सृष्टि चुनती है, समस्त सृष्टि भोगती है। मैं बाहर हो गया। मैं मौजूद न रहा। यह मुक्ति हो गई। लेकिन जैसे ही मैं चुनता हूं, वैसे ही चुनाव का अनिवार्य परिणाम होगा। उस परिणाम को मुझे भोगना पड़ेगा। मैंने चुना, इसलिए मुझे भोगना पड़ेगा। अपना-अपना कर्म भोगना ही पड़ेगा। उससे अनभोगे निकल जाने का कोई उपाय नहीं है। कोई उपाय नहीं है। बुद्ध की मृत्यु हुई विषाक्त भोजन से। तो आनंद ने उनसे पूछा कि इस आदमी ने बहुत बुरा किया, अज्ञान में ही सही, लेकिन आपको विषाक्त भोजन करा दिया। भूल से ही हुआ था, जान कर नहीं हुआ था। फूड पायजन से बुद्ध की मृत्यु हुई। अनजाने हो गया था। गरीब आदमी था, कुकुरमुत्ते इकट्ठे करके सुखाए थे; उनमें जहर था। उनकी सब्जी बनाई थी। बुद्ध की उस सब्जी के खाने से मृत्यु हुई। बुद्ध ने क्या कहा? बुद्ध ने कहा, आनंद, उसकी भूल वह जाने! लेकिन यह जहर से मेरी मृत्यु का होना मेरे ही किन्हीं कर्मों का फल है। उससे कुछ इसका लेना-देना नहीं है। वह संयोग मात्र है। मैंने कुछ किया होगा, उससे मैं बंधा हूं। उससे छुटकारा हुआ, आनंद! शायद अब मेरे किए हुए का मुझ पर कोई बोझ नहीं है। अब मैं बिलकुल अनकिया हो गया; अब सब समाप्त हो गया। शायद इसी के लिए अब तक मैं जिंदा भी था। यह मेरी मृत्यु नहीं है, यह मेरा विसर्जन है। अब सब लेना-देना समाप्त हो गया। जो मैंने किया था, वह सब पूरा हो गया। और तुम इस आदमी के प्रति कोई दुर्भाव मत लेना; क्योंकि वह दुर्भाव तुम्हारा कर्म हो जाएगा। और उस कर्म का फल तुम्हें भोगना पड़ेगा, इस आदमी को नहीं। तो आनंद ने पूछा, हम क्या करें? क्योंकि आदमी बिना किए नहीं रह सकता। कुछ तो करें! अगर दुर्भाव न करें, इसकी खिलाफत न करें, जाकर इसकी निंदा न करें, तो हम क्या करें? तो बुद्ध ने कहा, तुम एक घंटा हाथ में लेकर गांव में डुंडी पीटो और कहो कि यह आदमी धन्यभागी है; क्योंकि बुद्ध को अंतिम भोजन देने का सौभाग्य इसे मिला। तुम जाओ, गांव में शोरगुल मचाओ कि यह आदमी धन्यभागी है कि बुद्ध को अंतिम भोजन देने का सौभाग्य इसे मिला। यह उतना ही धन्यभागी है, जितनी बुद्ध की मां थी; क्योंकि उसे प्रथम भोजन देने का सौभाग्य मिला था। तुम जाओ! आनंद ने कहा, लेकिन यह भी कर्म होगा। तो बुद्ध ने कहा, यह भी कर्म है, लेकिन तुम कर्म से बच नहीं सकते। अगर तुम पहला कर्म करोगे, उस आदमी की निंदा करोगे, अपमान करोगे, तो दुख पाओगे। वह नियम के प्रतिकूल है। और अगर तुम उस आदमी की इस घड़ी में भी प्रशंसा करोगे तो तुम नियम के अनुकूल हो, तुम सुख पाओगे। दोनों ही कर्म हैं। आनंद तो दोनों से न मिलेगा। अगर तुम कुछ भी न करो, बिलकुल शांत रह जाओ, तो तुम मुक्त हो जाओगे, तो तुम आनंद को पा सकते हो। जब भी हम चुनते हैं, तो या तो हम विधायक चुनते हैं या नकारात्मक चुनते हैं। या तो हम किसी की निंदा करते हैं, या किसी की प्रशंसा करते हैं। या तो हम किसी को सुख देने जाते हैं, या किसी को दुख देने जाते हैं। जब भी हम कोई कर्म करते हैं तो हमने चुनाव कर लिया। उस चुनाव से सुख या दुख फलित होंगे। अगर दुख फलित हो तो समझना कि नियम के प्रतिकूल चुना। अगर सुख फलित हो तो समझना कि नियम के अनुकूल चुना। अगर आपको दुख ही दुख होते हों तो समझना कि आपकी जिंदगी नियम के प्रतिकूल चुनने में चल रही है। 126
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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