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नबया, नपुसावा, सत्य सनातन
नियम के अनुकूल सुख है; नियम के प्रतिकूल दुख है। तो जब भी आप दुख पाते हैं, जान लेना कि कहीं नियम के प्रतिकूल पड़ गए हैं। और किसी कारण कोई दुख नहीं पाता। विज्ञान इसीलिए कहता है कि हम आदमी के लिए ज्यादा सुख जुटा लेंगे; क्योंकि हम उन नियमों की खोज करते चले जाते हैं जिनको जान लेने पर तुम प्रतिकूल व्यवहार नहीं करोगे। और तो कोई विज्ञान की खोज नहीं है; इतनी ही खोज है कि हम नियम को खोजते चले जाते हैं, तुम्हें बताते चले जाते हैं कि यह है नियम, अब तुम अनुकूल चलोगे तो सुख होगा, अनुकूल नहीं चलोगे तो दुख हो जाएगा। नहीं जानने से नियम, हम कई बार प्रतिकूल चल जाते हैं। लेकिन एक बात पक्की है, जानते हों नियम या न जानते हों, दुख बता देगा कि हम प्रतिकूल चले हैं, सुख बता देगा कि हम अनुकूल चले हैं।
तो लाओत्से कहता है कि चाहे ताओ के अनुकूल, चाहे बाह्य सूत्रों के अनुकूल और चाहे प्रतिकूल, प्रकृति हर हाल प्रसन्न है। जब आप गिरते हैं और आपकी टांग टूट जाती है, तो गुरुत्वाकर्षण कोई दुखी नहीं होता, आप दुखी होते हैं। कोई ग्रेविटेशन को कोई पीड़ा नहीं होती। जब आप जहर पीकर मर जाते हैं, तो जहर कोई दुखी नहीं होता। न कोई प्रकृति आंसू बहाती है। कोई प्रयोजन नहीं है। आप स्वतंत्र थे। आपने जो चाहा, वह किया। फिर जो परिणाम होगा, वह होगा। इसे समझ लें ठीक से। आप कर्म करने को स्वतंत्र हैं, परिणाम में स्वतंत्र नहीं हैं। परिणाम तो आपने किया कर्म और आप बंध गए।
मोहम्मद से अली ने पूछा है कि हमारी स्वतंत्रता कितनी है? तो मोहम्मद ने कहा, तू एक पैर ऊपर उठा कर खड़ा हो जा! तो वह बांया पैर ऊपर उठा कर खड़ा हो गया। मोहम्मद ने कहा, अब तू दायां भी ऊपर उठा ले। अली ने कहा, आप भी क्या मजाक करते हैं। दायां मैं कैसे उठा सकता हूं? मैं तो बायां उठा कर बंध गया; अब दायां नहीं उठ सकता। तो मोहम्मद ने कहा, अगर तू पहले दायां उठाता तो उठा सकता था? उसने कहा, बिलकुल उठा सकता था। क्योंकि तब तक मैं बंधा नहीं था; कोई मैंने कर्म नहीं किया था। दायां उठाता तो बंध जाता, फिर बायां नहीं उठा सकता। तो मोहम्मद ने कहा, करने को तुम स्वतंत्र हो; लेकिन हर कर्म बंधन दे जाएगा-हर कर्म!
इसलिए हम अपने मुल्क में कर्म को बंधन कहे हैं और अकर्म को मुक्ति कहे हैं। क्योंकि जब भी मैं कुछ करूंगा तो बंध ही जाऊंगा किया कि बंधा। क्योंकि जो मैंने किया है उसके परिणाम होंगे। और वे परिणाम नियम के अनुसार होंगे, मेरे अनुसार नहीं। मैं झाड़ से कूदने को स्वतंत्र हूं, लेकिन टांग टूटेगी। उसके लिए स्वतंत्र नहीं हूं कि नहीं टूटेगी कि टूटेगी। आप हवाई जहाज से कूदें, आपकी मर्जी! कोई रोकेगा नहीं इस संसार में। लेकिन फिर पैर टूट जाएं, हड्डी-हड्डी चूर-चूर हो जाए, तो फिर इसके लिए किसी को दोष मत देना। क्योंकि वह आपके ही कर्म का फल है, वह आपकी ही स्वतंत्रता का चुनाव है। जहर पीने को मैं स्वतंत्र हूं, लेकिन फिर मैं यह नहीं कह सकता कि अब मैं मरूंगा भी नहीं।
कर्म के लिए व्यक्ति स्वतंत्र है। स्वतंत्रता का अर्थ ही कर्म की स्वतंत्रता है, परिणाम की स्वतंत्रता नहीं। अगर परिणाम की भी स्वतंत्रता हो तो जगत एक अराजकता होगा, अनार्की। कासमास नहीं रह जाएगा। क्योंकि मैं पीऊं जहर और अमृत का परिणाम पाऊं; गिळं आकाश से और जमीन पर मजे से चलने लगूदुख के उपाय करूं और सुख पाऊं; तब तो जगत एक अराजकता होगा। तब तो जगत में फिर कुछ भी तय करना मुश्किल हो जाएगा। कुछ भी तय करना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन जगत अराजकता नहीं है, नियम है। ताओ का यही अर्थ है, जगत एक नियम है, जगत ताओ है। उस नियम के दो पहलू हैं। एक पहलू है, आप स्वतंत्र हैं सदा चुनने को, क्या करना चाहते हैं। लेकिन करते ही आप नियम के अंतर्गत आ गए। और करते ही परिणाम सुनिश्चित हो गया।
इसलिए बुद्ध ने, महावीर ने, लाओत्से ने, सभी ने यह कहा है कि जब तक कर्म जारी है, तब तक पूर्ण मुक्ति नहीं हो सकती। पूर्ण मुक्ति का अर्थ होगा पूर्ण अकर्म। इस अकर्म को साधने के कई उपाय हैं।
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