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________________ ब बया, न पुराबा, सत्य सनातन है तो हम क्या कर रहे हैं? ताओ के संबंध में जो चर्चा कर रहे हैं, यह चर्चा ताओ के इर्द-गिर्द है, ताओ के आस-पास है। हम एक वर्तुल में घूम रहे हैं ताओ के आस-पास। कहीं कोई चीज आपके हृदय पर चोट कर जाए और आप भीतर केंद्र में प्रवेश कर जाएं! सारी चर्चा परिधि पर है, सर्कमफरेंस पर है-इस आशा में कि कोई परिधि का बिंदु आपके लिए द्वार बन जाएगा और आप भीतर प्रवेश कर जाएंगे और केंद्र पर पहुंच जाएंगे। लेकिन अगर आप परिधि पर ही केंद्र को चाहते हों तो वह असंभव है। आपको जाना पड़ेगा। आदमी का मन ऐसा है कि वह एक कदम उठाने के पहले भी सब कुछ तय कर लेना चाहता है। सुरक्षा इसमें मालूम होती है कि सब साफ हो जाए—मैं कहां जा रहा हूं, क्यों जा रहा हूं, क्या रास्ता है, क्या परिणाम होगा, कितना लाभ है, कितनी हानि है-सब तय हो जाए तो आदमी कदम उठाता है। जो सब तय करके कदम उठाता है, वह कभी ताओ तक, धर्म तक नहीं पहुंचेगा। क्योंकि धर्म तक पहुंचते ही वे हैं जो कैलकुलेटिव नहीं हैं, जो हिसाब नहीं लगाते। हिसाबी तो संसार से जुड़े रहते हैं; गैर-हिसाबी धर्म में प्रवेश करते हैं। ___ कोई परिभाषा नहीं है। कोई परिभाषा कभी की नहीं गई है। कभी की भी नहीं जाएगी। लेकिन ध्यान रहे, इससे निराश हो जाने की कोई जरूरत नहीं है। यह केवल इस बात की सूचना है कि अनुभव, अनुभव से ही जाना जा सकता है। शेख फरीद एक मुसलमान सूफी फकीर हुआ। कोई उसके पास गया है ईश्वर की परिभाषा पूछने। ईश्वर हो, कि धर्म हो, कि आत्मा हो, कि सत्य हो, इससे कोई बहुत फर्क नहीं पड़ता। ये सब शब्द हैं उसके लिए, जिसको नहीं कहा जा सकता। उस आदमी ने शेख फरीद से पूछा कि कुछ मुझे भी अपने अनुभव की बात बताओ। शेख फरीद के पास एक डंडा पड़ा था। उसने डंडा उस आदमी के पैर पर मार दिया। पैर में चोट लगी, उस आदमी ने चीख मारी और कहा कि यह आप क्या करते हैं, मुझे बहुत दर्द हो रहा है। शेख फरीद ने कहा, दर्द तुम्हें हो रहा है, थोड़ा मुझे बताओ कि क्या हो रहा है? वह आदमी बड़ी मुश्किल में पड़ा। शेख फरीद ने कहा, मैं कैसे मानं कि तुम्हें दर्द हो रहा है? और क्या है दर्द ? वह आदमी बड़ी बेचैनी में पड़ा; कुछ बता नहीं सका। शेख फरीद ने कहा, पागल, उठा डंडा और मार मुझे! डंडा पड़ा है, उठा और मार मुझे! बताने की फिक्र छोड़। मुझे भी दर्द होगा, मैं भी जान लूंगा। . यही रास्ता है। दर्द होगा तो जान सकेंगे। धर्म होगा तो जान सकेंगे। एक मित्र ने पूछा कि कल आपने कहा संत अत्यंत अल्पभाषी होते हैं, लेकिन आप तो इतना अधिक बोलते हैं। ठीक पूछा है; थोड़ा सोचना पड़े। मैं जो बोलता हूं, वह अल्प ही है; आपको ज्यादा मालूम पड़ता होगा। . क्योंकि जो मैं बोलना चाहता हूं, उससे तौलता हूं तो अल्प है; जो आप समझ सकते हैं, उससे तौलू तो बहुत ज्यादा है। कम और ज्यादा सापेक्ष शब्द हैं। उनमें सीधा कोई अर्थ नहीं होता, किसी तुलना में अर्थ होता है। जो मैं बोलना चाहता हूं, उस लिहाज से जो मैंने बोला है, वह कुछ भी नहीं है। जो आप समझ सकते हैं, उस लिहाज से जो मैंने बोला है, वह बहुत ज्यादा है। मेरी तरफ से वह अल्प ही है। लाओत्से ने ऐसा नहीं कहा कि संत जो बोलते हैं, वह सुनने वालों की तरफ से अल्प होता है; वह संतों की तरफ से अल्प होता है। सुनने वालों को बहुत ज्यादा हो सकता है। 121
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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