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रजिएफ ने मनुष्य को दो विभागों में बांटा है। एक, जिसे वह कहता है व्यक्तित्व, पर्सनैलिटी; और दूसरा, जिसे वह कहता है आत्मा, एसेंस। व्यक्तित्व वह हिस्सा है, जो हम सीखते हैं। और आत्मा वह हिस्सा है, जो अनसीखा हमारे साथ है। एक तो हमारे जीवन का वह पहल है, जो हमने दूसरों से सीखा है। और एक हमारे जीवन की वह गहराई है, जो हम लेकर पैदा हुए हैं। एक तो मैं हूं, अंतरतम में छिपा हुआ। और एक मेरी बाहरी परिधि है, मेरे वस्त्र हैं, जो मैंने दूसरों से उधार लिए हैं। व्यक्तित्व उधार घटना है, बारोड; आत्मा अपनी है। लाओत्से का यह सूत्र आत्मा और व्यक्तित्व के संबंध में है। लाओत्से कहता है, पांडित्य छोड़ो तो मुसीबतें समाप्त हो जाती हैं। बैनिश
लर्निंग, वह जो सीखा है, उसे छोड़ो; वह जो अनसीखा है, उसे पा लो। बड़ी कठिनाई होगी लेकिन। क्योंकि हम अगर अपने संबंध में विचार करने जाएं तो पाएंगे कि सभी कुछ सीखा हुआ है। आप जो भी अपने संबंध में जानते हैं, वह सभी कुछ सीखा हुआ है। किसी ने आपको बताया है, वही आपका ज्ञान है। और जो दूसरे ने बताया है, जो दूसरे ने सिखाया है, वह आपका स्वभाव नहीं हो सकता।
स्वयं को जानने के लिए किसी दूसरे की किसी भी शिक्षा की जरूरत नहीं है। हां, स्वयं को ढांकना हो, छिपाना हो, तो दूसरे की शिक्षा जरूरी और अनिवार्य है। स्वयं का होना तो एक आंतरिक, आत्मिक नग्नता है, दिगंबरत्व है। वस्त्र तो उसे छिपाने के काम आते हैं। हमारी सारी जानकारी ज्ञान को छिपाने के काम आती है। लेकिन जो जानकारी को ही ज्ञान मान लेते हैं, वे फिर सदा के लिए ज्ञान से वंचित हो जाते हैं।
एक बच्चा पैदा होता है; जो भी एसेंस है, जो सार है, जो आत्मा है, लेकर पैदा होता है; लेकिन एक कोरी किताब की तरह। फिर हम उस पर लिखना शुरू करते हैं-शिक्षा, समाज, संस्कृति, सभ्यता। फिर हम उस पर लिखना शुरू करते हैं। थोड़े ही दिनों में कोरी किताब अक्षरों से भर जाएगी। स्याही के काले धब्बे पूरी किताब को घेर लेंगे। और क्या कभी आपने खयाल किया है कि जब आप किताब पढ़ते हैं, तो आपको सिर्फ स्याही के काले अक्षर ही दिखाई पड़ते हैं, पीछे का वह जो सफेद कागज है, कोरा, वह दिखाई नहीं पड़ता?
__ एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक इस पर काम कर रहा था, डाक्टर पर्ल्स इस संबंध में काम कर रहा था। उसने अपने विद्यार्थियों की कक्षा के सामने एक दिन आकर ब्लैक बोर्ड पर एक बड़ा सफेद कागज टांगा, ब्लैक बोर्ड के बराबर। फिर उस बड़े सफेद कागज पर एक छोटा सा स्याही का काला गोल बनाया, एक बिंदु बनाया, अति छोटा। गौर से देखें तो ही दिखाई पड़े। और फिर उसने अपने विद्यार्थियों से पूछा कि तुम्हें क्या दिखाई पड़ता है?
तो उन्होंने कहा, एक काला गोल बिंदु दिखाई पड़ता है। उस पूरी कक्षा में एक भी विद्यार्थी ने न कहा कि बोर्ड पर टंगा हुआ सफेद कागज का टुकड़ा भी दिखाई पड़ता है।