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ताओ परम स्वतंत्रता
बाप ने कहा, तुम मेरे पास थे सदा। और जब एक गड़रिया सांझ को घर लौटने लगता है अपनी भेड़ों को . लेकर, उसके पास सौ भेड़ें हों और एक भेड़ खो जाए, तो निन्यानबे को वहीं अंधेरे में छोड़ कर वह खोई एक भेड़ को खोजने जंगल में चला जाता है; और जो भेड़ खो गई है, उसे कंधे पर रख कर लौटता है। क्या तुम कहोगे निन्यानबे भेड़ें आवाज उठाएं कि अन्याय हो रहा है! हम सदा तुम्हारे साथ, हमें कभी कंधे पर न ढोया! और हम सदा तुम्हारे साथ और तुम कभी इतनी चिंता और व्यग्रता से न भरे और हमें खोजने न आए! और खोई हुई भेड़ को, आवारा भेड़ को, भाग गई भेड़ को...!
क्योंकि भेड़ भागती ही तब है, जब आवारा हो, नहीं तो भेड़ भागती नहीं। भेड़ तो भीड़ में चलती है। शरारती भेड़ हो, बगावती भेड़ हो, तो ही भागती है, तो ही भटकती है। नहीं तो भटकने का कोई सवाल नहीं है।
उस बाप ने कहा कि वह लौट रहा है। वह आवारा भेड़ है, भटक गई भेड़ है। उसे मैं कंधे पर लेकर लौट्रं, इससे तुम दुखी मत होओ। तुम्हारे लिए मेरा सब है। लेकिन बाप का हृदय बड़ा है, और तुम पर चुक नहीं जाता। और जो मेरे पास अतिरिक्त है, वह उसे भी देने दो।
ये अन्यायपूर्ण बातें हैं; लेकिन परम न्याय के अनुकूल हैं। लाओत्से कहता है कि तुम जो भी करो, यह प्रकृति प्रसन्न है। इसके आनंद में रत्ती भर कमी नहीं पड़ेगी। तुम चाहो ताओ से एकात्म हो जाओ तो प्रकृति प्रसन्न है; तुम चाहो आचार से एकात्म हो जाओ तो प्रकृति प्रसन्न है; तुम चाहो विपरीत चले जाओ धर्म के तो प्रकृति प्रसन्न है।
लेकिन एक बात खयाल रखना, यह सूत्र अधूरा है। और लाओत्से ने आधी बात नहीं कही है इस सूत्र में-जान कर कि जो उसे समझ लेंगे, वे उसे भी समझ लेंगे। वह स्वल्पभाषी है। दूसरी बात मैं आपको कह दं; क्योंकि पक्का नहीं है कि आप समझ पाएंगे।
अगर आप ताओ के साथ एकात्म हो जाएं, तो ताओ प्रसन्न है, आप भी प्रसन्न होंगे। अगर आप आचार-सूत्रों के साथ एक हो जाएं, आचार-सूत्र प्रसन्न हैं, आप उतने प्रसन्न नहीं होंगे। और अगर आप ताओ के विपरीत चले जाएं, तो ताओ की विपरीतता में भी ताओ का अभाव प्रसन्न है, लेकिन आप दुखी हो जाएंगे। वह दूसरा हिस्सा है। उससे कोई ताओ का लेना-देना नहीं है; आपसे लेना-देना है। और अपने दुख को आप ताओ के ऊपर मत ढालना। ताओ तो आपके नरक में जाने से भी प्रसन्न है; लेकिन आप प्रसन्न न हो सकोगे। ताओ तो, आप शराब पीकर नाली में पड़ गए हो, तो भी प्रसन्न है; लेकिन आप प्रसन्न न हो सकोगे। ताओ तो, आप अपनी हत्या कर रहे हो, तो भी प्रसन्न हैलेकिन आप प्रसन्न न हो सकोगे।
• आपकी प्रसन्नता तो एक ही स्थिति में पूर्ण हो सकती है कि आप ताओ के साथ एकात्म हो जाओ। और इसलिए जो ताओ के साथ एकात्म हो गया है, उसको आप अप्रसन्न नहीं कर सकते। आप कुछ भी करो, वह प्रसन्न है। आप कुछ भी करो, वह प्रसन्न है। आप उसके विपरीत चले जाओ तो प्रसन्न है; आप उसके अनुकूल आ जाओ तो प्रसन्न है। लेकिन आप उसके प्रतिकूल जाकर प्रसन्न न हो सकोगे। आपकी सीमाएं हैं, आपकी शर्ते हैं।
इसलिए लाओत्से की यह बात खयाल में रख कर दूसरा हिस्सा भी खयाल में रख लेना। 'जो स्वयं में श्रद्धावान नहीं है, उसे दूसरों की श्रद्धा भी नहीं मिल सकेगी।'
लेकिन यह जो महायात्रा है ताओ के साथ एकात्म की, यह शरू होती है स्वयं में श्रद्धा से। 'जो स्वयं में श्रद्धावान नहीं है, उसे दूसरों की श्रद्धा भी नहीं मिल सकेगी।'
हम सब श्रद्धा पाना चाहते हैं, आदर पाना चाहते हैं, बिना इसकी फिक्र किए कि हमारी खुद की स्वयं में कोई श्रद्धा नहीं है, हम खुद के प्रति भी आदरपूर्ण नहीं हैं। सच तो यह है कि हम जितने अनादरपूर्ण अपने प्रति होते हैं, किसी के प्रति नहीं होते। अगर हम अपने से ही पूछे कि अपने बाबत क्या खयाल हैं, तो वह खयाल अच्छे नहीं हैं।
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