SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ताओ उपनिषद भाग ३ उस धनपति ने कहा, दूसरी तरह से सोचो। तुमने जितना काम किया, उतना तुम्हें मिल गया या नहीं? तुमने जितना काम किया, उससे तुम्हें ज्यादा मिल गया है। तुम दूसरों की चिंता छोड़ो। उन्हें मैं उनके काम के कारण नहीं देता; मेरे पास बहुत है, इसलिए देता हूं। मगर यह अनजस्टीफाइड है; यह बात न्याययुक्त नहीं है। फिर भी सुबह के मजदूर दुखी लौटे; हालांकि उन्हें काफी दिया था। और अगर ये दो वर्ग के मजदूर न आए होते दिन में तो वे बड़े खुश लौटते। उन्हें बहुत मिला था। लेकिन अब तुलना खड़ी हो गई थी। अब जो मिला था, उसका सवाल नहीं था; दूसरों को भी जो मिल गया था, वह कठिनाई में डाल रहा था। थोड़ा सोचें कि संत भी खड़े हों परमात्मा के सामने और शराबी भी वहीं पहुंच गए हों और परमात्मा दोनों को बराबर बांट दे! संतों की कैसी गति होगी? प्राण निकल जाएंगे। मर गए! लुट गए! अगर संतों को पता चले कि पापी भी स्वर्ग में प्रवेश पा रहे हैं, उसी मौज से स्वर्ग का द्वार उनके लिए भी खुलता है, बैंड-बाजे बजते हैं, जैसा इनके लिए-स्वर्ग बिलकुल नरक हो जाएगा। यह कहानी बड़ी खतरनाक है। लेकिन अगर कहीं कोई परमात्मा है तो मैं आपसे कहता हूं कि द्वार सभी के लिए एक जैसा खुलता है। और जब पापी भी आता है तो परमात्मा प्रसन्न होता है कि आ गए! जीसस ने एक और कहानी कही है। जीसस ने कहा है, एक बाप के दो बेटे थे। बड़ा बेटा आज्ञाकारी था; छोटा बेटा आज्ञाकारी नहीं था। बाप बूढ़ा हो गया। दोनों बेटों में कलह थी और दोनों को अलग करने की मजबूरी आ गई। संपत्ति बांट दी गई। छोटा बेटा सारी संपत्ति को लेकर शहर चला गया। क्योंकि गांव में संपत्ति हो भी तो उसका कोई उपयोग नहीं है। गांव में अमीर आदमी भी गरीब है। शहर में गरीब आदमी भी अमीर हो जाता है; कुछ कर सकता है। छोटा लड़का शहर चला गया। पांच-सात साल उसकी कोई खबर न आई। फिर अचानक खबर आई कि उसने सब बर्बाद कर दिया और वह भिखारी हो गया और सड़कों पर भीख मांग रहा है। बड़े बेटे ने इन पांच-सात वर्षों में, जितनी संपत्ति उसे मिली थी, उससे पांच-सात गुनी कर दी। बड़ी मेहनत उठाई, व्यवसाय किया, खेती-बाड़ी की, बगीचे लगाए। धन बढ़ता चला गया। लेकिन बाप को जब खबर मिली कि उसका बेटा भिखारी हो गया, तो उसने संदेशवाहक भेजे कि अभी मैं जिंदा हूं, भिखारी होने की कोई जरूरत नहीं है, तुम वापस आ जाओ। फिर एक दिन सांझ खबर आई कि बेटा वापस लौट रहा है। तो बाप के पास जो सबसे तगड़ी भेड़ें थीं, उसने कहा कि आज वे काटी जाएं और भोज की तैयारी हो। और जो सबसे पुरानी शराब थी तहखाने में, वह निकाली जाए और आज भोज की तैयारी हो। मेरा छोटा बेटा वापस लौट रहा है। गांव भर को उत्सव में बुला लिया जाए, गांव भर को भोज का निमंत्रण दे दिया जाए। आज की रात उत्सव की रात होगी! गांव भर में खबर फैल गई, उत्सव का निमंत्रण पहुंच गया। बड़ा बेटा सांझ को खेत से थका-मांदा लौट रहा था, पसीने की धारें उसके मुंह पर सूख गई थीं। तब गांव में उत्सव होते देखा, उसने लोगों से पूछा कि क्या बात है? तो उन्होंने कहा, अरे, तुम्हें पता नहीं! तुम्हारा छोटा भाई वापस लौट रहा है और तुम्हारे पिता ने उसके स्वागत का भोज का आयोजन किया है। उसकी छाती पर पत्थर पड़ गया। उसने कहा कि मैं सात साल से अपने को जला रहा हूं, इस बुड्ढे की सेवा कर रहा हूं, धन इकट्ठा कर रहा हूं। और वह पुत्र-सुपुत्र-सब बर्बाद करके, भिखमंगा होकर वापस लौट रहा है, उसके स्वागत की तैयारी! बड़ा बेटा नाराज घर लौटा। उसने अपने बाप को कहा कि यह अन्याय है! ऐसा मेरा कभी स्वागत नहीं हुआ। 114
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy