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ताओ हैं परम स्वतंत्रता
क्यों? उस आदमी ने कहा, क्या कहते हैं आप? बुद्ध का पवित्र नाम! और उसको लेने पर कुल्ला करके मुंह साफ करना पड़े?
बोधिधर्म ने कहा, होगा नाम पवित्र, लेकिन तुम मुंह साफ कर लेना! और रास्ते में तुम्हें कभी अगर बुद्ध मिल ही जाएं तो उस रास्ते से ऐसे भागना कि लौट कर मत देखना! . वह अनुयायी तो बहुत घबड़ा गया। बोधिधर्म ने कहा, घबड़ाओ मत, यह तो कुछ भी नहीं है। अब मैं तुम्हें असली बात बताए देता हूं। जब बुद्ध के साथ मेरा भीतरी सत्संग चलता था, तब आखिर में वह हालत आई कि मुझे बुद्ध को एक तलवार से काट कर टुकड़े-टुकड़े करना पड़ा। तभी मैं अपने को उपलब्ध हो सका।
और बोधिधर्म के पीछे बुद्ध की प्रतिमा रखी है। और आज सुबह भी बोधिधर्म ने बुद्ध के चरणों में नमस्कार किया है। और आज सांझ फिर वह दीया जलाएगा।
उस अनुयायी ने कहा, और यह क्या हो रहा है? फूल सुबह तुमने जो चढ़ाए थे, अभी कुम्हलाए भी नहीं हैं। और जानता हूं, रोज मैं देखता हूं, कि सांझ तुम दीया भी जलाओगे। बोधिधर्म ने कहा, इसीलिए कि बुद्ध ने खुद ही समझाया था कि तुम मुझे भी जब छोड़ दोगे, तभी तुम अपने को पा सकोगे। वे मेरे गुरु हैं।
यह जरा जटिल हो गई बात। गुरु को मान कर चलने का अर्थ ही यही है कि एक दिन गुरु व्यर्थ हो जाए। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि अनुग्रह छूट जाता है। बोधिधर्म जीवन भर अनुग्रह से भरा है। बुद्ध को मरे तो कई सौ साल हो गए, और बोधिधर्म अब भी दीया जला रहा है, और अब भी फूल चढ़ा रहा है। और यह भी कहने की हिम्मत रखता है कि मिलें बुद्ध रास्ते में तो टुकड़े-टुकड़े कर देना। यह परम अनुयायी है। यह आचार-सूत्रों का अनुसरण नहीं कर रहा है; नहीं तो प्राण कंप जाएंगे यह कहने में, हिम्मत नहीं जुटेगी। यह बुद्ध का ठीक-ठीक जो भाव है अप्प दीपो भव का, वही कर रहा है। और इसलिए अनुगृहीत भी है।
लेकिन यह अनुग्रह हमारा अनुग्रह नहीं है। हमारा अनुग्रह याचना से भरा अनुग्रह है। हम डरेंगे यह कहने में कि बुद्ध का नाम लो तो मुंह कुल्ला कर लेना; लगेगा कि बुद्ध कहीं नाराज न हो जाएं।
जो नाराज हो जाते हैं, वे बुद्ध नहीं हैं। और जो डरता है इतना कि कहीं नाराज न हो जाएं, उसके संबंध अभी प्रेम के नहीं हैं। उसके संबंध अभी लेन-देन के हैं; अभी भय के हैं। और जो घबड़ाता है इतना कि बुद्ध के साथ लड़ न सके, अभी बुद्ध के बहुत पास नहीं आया है। यह बुद्ध की परंपरा में, सिर्फ बुद्ध की परंपरा में यह संभव हो सका कि बुद्ध को रोज चरणों में सिर रखने वाला भी बुद्ध को कह सकता है कि हटा दो, तोड़ दो यह मूर्ति! यह बड़ी आत्मीयता का परिणाम है। यह पहले सूत्र की आत्मीयता का परिणाम है।
अधिकतर धर्म के अनुयायी दूसरे सूत्र के आस-पास चलते हैं। आचरण का जिसने अनुगमन किया, वह आचरण के साथ एकात्म हो जाएगा। यही खतरा है। फिर उसे पता भी नहीं चलेगा, उसको लगेगा यह मैं ही कर रहा हूं। आचरण इतना सघन हो जाएगा कि उसे लगेगा यह मैं ही कर रहा हूं। आप बुद्ध के जैसा चलना सीख लें, अभ्यास घना हो जाए, अंतिम परिणाम यह होगा कि आपको लगेगा मैं ही चल रहा हूं। और आप नहीं चल रहे हैं। यह सिर्फ अभिनय है। आप बुद्ध की तरह मूर्तिवत बन कर बैठ जाएं...।।
तनका के पास लोग आते और वे कहते, हमें ध्यान करना है, और हमें बुद्ध जैसा हो जाना है। तो तनका कहता, भाग जाओ यहां से! क्योंकि मेरे मंदिर में एक हजार बुद्ध, पत्थर के, पहले से ही बैठे हुए हैं। वह एक हजार बुद्धों वाले मंदिर का पुजारी था। चीन में एक मंदिर है एक हजार बुद्ध की मूर्तियों वाला, वह उसका पुजारी था। वह कहता, भाग जाओ! यहां और ज्यादा भीड़ मत करो, एक हजार वैसे ही पालथी मारे बैठे हुए हैं। और तुम पालथी मार कर बैठ जाओगे तो यहां जगह कहां है?