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________________ ताओ है परम स्वतंत्रता पहलाः लाओत्से कहता है, तुम जिसका करोगे अनुगमन, वैसे ही हो जाओगे। तुम चलोगे जिसके पीछे, उसकी ही छाया बन जाओगे। तुम भाव से जिसके साथ जोड़ लोगे अपने को, वही हो जाओगे। अगर तुमने पदार्थ के साथ जोड़ लिया अपने को भाव से तो तुम पदार्थ हो जाओगे। हम सब पदार्थ हो गए हैं। क्योंकि पदार्थ के अतिरिक्त हम और किसी का अनुगमन नहीं करते। कोई मकान का अनुगमन करता है, कोई कार का, कोई धन का, कोई पद का। पदार्थ का हम अनुगमन करते हैं; हम सब अनुयायी हैं पदार्थ के। दिखाई नहीं पड़ता ऐसा। कोई दिखाई पड़ता है महावीर का अनुयायी है, कोई बुद्ध का, कोई कृष्ण का। लेकिन यह सब ऊपरी बकवास है। भीतर आदमी को हम खोजने जाएं तो सब पदार्थ के अनुगामी हैं। वह जो महावीर का अनुगामी है, वह भी रुपए के पीछे जा रहा है। वह जो बुद्ध का है, वह भी रुपए के पीछे जा रहा है। और वह जो जीसस का है, वह भी रुपए के पीछे जा रहा है। चीन का सम्राट था एक। खड़ा है अपने महल पर। और उसके साथ खड़ा है च्वांगत्से, लाओत्से का शिष्य। और च्वांगत्से से सम्राट पूछता है, इतने जहाज आ रहे हैं पानी में, कोई पूरब से, कोई पश्चिम से, कोई पूरब जा रहा है, कोई पश्चिम, कोई दक्षिण, कोई उत्तर; कितनी दिशाओं से और कितने जहाज आ-जा रहे हैं! च्यांगत्से कहता है, महाराज, देखने के भ्रम में मत पड़ें। ये सब जहाज एक ही दिशा से आते हैं और एक ही दिशा को जाते हैं। सम्राट ने कहा, क्या कहते हो? च्वांगत्से ने कहा, रुपए के लिए आते और रुपए के लिए जाते। बाकी सब दिशाएं भ्रांत हैं, बाकी सब दिशाएं ऊपरी हैं। उनका कोई बहुत मूल्य नहीं है। जो जा रहा है वह भी, जो आ रहा है वह भी। __ अगर हम लोगों के धर्मों के नीचे देखें तो धन का धर्म मिलेगा। सब भेद हिंदू और मुसलमान और ईसाई के टूट जाते हैं वहां। बाकी सब भेद ऊपरी हैं। और जब तक यह भीतरी धर्म नहीं बदलता, तब तक जीवन नहीं बदलता। कोई ईसाई हो जाए, हिंदू हो जाए, मुसलमान हो जाए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह जो भीतरी धर्म है, वह जो एक दिशा में संसार चलता है, पदार्थ की दिशा में। लाओत्से कहता है, जिसका करोगे अनुगमन, वैसे ही हो आओगे। तीन सूत्र उसने दिए हैं। ताओ का जो अनुगमन करेगा-मूल ऊर्जा का, प्रकृति का, निसर्ग का, स्वभाव का-वह श्रेष्ठतम अनुगमन है। और वह श्रेष्ठतम व्यक्ति की संभावना है। जो अपने स्वभाव के साथ चलेगा; चाहे कुछ भी अड़चन झेलनी पड़े, चाहे कुछ भी परिणाम हो, चाहे कोई भी फल आए, जो अपने स्वभाव के अनुकूल चलेगा। जिसे कृष्ण ने कहा है स्वधर्म, वही है ताओ। जिसे कृष्ण ने कहा है कि परधर्मो भयावहः, स्वधर्मे निधनं श्रेयः। अपने स्वभाव में मर जाना श्रेयस्कर है बजाय दूसरे के स्वभाव में जीकर जीना; उससे अपने में मर जाना। लेकिन अक्सर लोग समझते हैं कि शायद यह कहा है कि हिंदू धर्म में पैदा हुए तो हिंदू धर्म में ही मर जाना श्रेयस्कर है, कि मुसलमान धर्म में पैदा हुए तो मुसलमान धर्म में मर जाना श्रेयस्कर है। नहीं, स्व और पर का इनसे कोई संबंध नहीं है। स्वधर्म का अर्थ है ताओ, स्वधर्म का अर्थ है मेरा निज स्वभाव; उसके लिए चाहे कुछ भी हो, चाहे मरना पड़े, तो उसका ही अनुगमन करूं। क्योंकि वही मुझे अमृत की तरफ ले जाएगा। 'जो करता है अनुगमन ताओ का, वह ताओ के साथ एकात्म हो जाता है।' जो अपनी निज प्रकृति का अनुगमन करता है, वह इस महाप्रकृति के साथ एक हो जाता है। प्रकृति का अनुगमन प्रकृति के साथ तादात्म्य करवा देता है। यह श्रेष्ठतम अनुगमन है-अपना ही अनुगमन, अपने ही पीछे चलना, अपने ही स्वभाव की लकीर को पकड़ कर सब दांव पर लगा देना। दूसरा उससे नीचे का सूत्र है, 'आचार-सूत्रों पर जो चलता है, वह उनके साथ एकात्म हो जाता है।' महावीर चलते हैं स्वधर्म पर, कृष्ण चलते हैं स्वधर्म पर, बुद्ध, लाओत्से चलते हैं स्वधर्म पर। लेकिन बुद्ध 109
SR No.002373
Book TitleTao Upnishad Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages432
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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