________________
ताओ ह परम स्वतंत्रता
केवल वे ही सुन पाएंगे जिनका पूरा रो-रोआं सुनता है; नहीं तो नहीं सुन पाएंगे। परमात्मा के पैरों की जो ध्वनि है, वह केवल वे ही सुन पाएंगे, जो इतने मौन हैं, इतने शांत हैं कि अगर अदृश्य का पैर भी जमीन पर पड़े तो उसकी ध्वनि उन्हें सुनाई पड़ सकेगी। हमें तो तुमुल नाद हो, तब थोड़ा-बहुत सुनाई पड़ता है।
आदमी की भाषा भी हम ठीक से नहीं समझते, हमारे अपने-अपने अर्थ होते हैं। मैं जो बोलता हूं वही आप समझते हैं, इस भूल में कभी भी मत पड़ जाना। सुनाई तो वही पड़ता है जो मैं बोलता हूं; लेकिन समझ में वही पड़ता है जो आप समझ सकते हैं। समझ में वही नहीं पड़ सकता है जो मैं समझाना चाहता हूं। अर्थ हैं भीतर हमारे। और हमारे अपने प्रयोजन हैं। यहां इतने लोग हैं तो इतने ही अर्थ हो जाते हैं। और फिर अपना-अपना स्वार्थ है, अपना-अपना लाभ है, अपनी-अपनी उपयोगिता है।
मुल्ला नसरुद्दीन एक नदी के किनारे बैठा था। और दस अंधे आए, वे नदी पार करना चाहते थे। मुल्ला ने उनके साथ सौदा किया और कहा, एक-एक पैसा एक-एक आदमी को नदी के पार करने का मैं लूंगा। ज्यादा नहीं मांगता हूं। अंधे राजी हो गए; कोई महंगी बात न थी।
मुल्ला ने एक-एक अंधे को नदी के पार किया। नौ अंधों को पार कर चुका, थक भी गया, जब दसवें को पार कर रहा था तो दसवां हाथ से छूट गया। डुबकी खाया, तेज थी धार नदी की, अंधा बह गया। नौ अंधों में हलचल मची। शक हुआ, आवाज आई डुबकी खाने की, किसी के गिरने की। उन्होंने पूछा, क्या हुआ नसरुद्दीन? नसरुद्दीन ने कहा, कुछ भी नहीं हुआ; तुम्हारे लाभ में है, एक पैसा कम देना पड़ेगा।
नसरुद्दीन के लिए तो प्रयोजन दस पैसे से है। उसने कहा, कुछ भी नहीं हुआ; तुम्हारे लाभ में है, एक पैसा कम देना पड़ेगा। नौ को ही पार करवा पाए। वह जो एक आदमी का मर जाना है, खो जाना है, वह नसरुद्दीन के प्रयोजन में नहीं है। एक पैसा प्रयोजन में है।
डाक्टर अक्सर एक-दूसरे से कहते सुने जाते हैं कि मरीज तो मर गया, पर आपरेशन बड़ा सफल हुआ। आपरेशन की सफलता अलग ही बात है; उसका मरीज के जिंदा रहने या मर जाने से कोई सवाल नहीं है। है भी। डाक्टर के लिए मरीज गौण है। आपरेशन, एक कुशलता, बात ही अलग है।
अंग्रेज सर्जन था कैनेथ वाकर। बड़ा सर्जन था, लंदन के बड़े से बड़े सर्जन में से था। फिर पीछे वह गुरजिएफ का अनुयायी हो गया और सब छोड़ कर साधना में लग गया। उसने अपने संस्मरणों में कहीं कहा है कि पहली दफे एक ऐसा मरीज आया, जिसके बाबत सर्जरी को कुछ भी पता नहीं था। मैं ही पहला आदमी था उसका आपरेशन करने वाला। मरीज तो मर गया, लेकिन आपरेशन बिलकुल सफल था। और जो शब्द मेरे मुंह से निकले थे पहली दफा, जब मैं उसके पेट को चीर-फाड़ करके और बीमारी की ग्रंथि को बाहर निकाल लिया था, तो वह जो बीमारी की ग्रंथि थी, उसको देख कर जो मेरे मुंह से शब्द निकले थे पहले, वह थे-ब्यूटीफुल, सुंदर! मैं ही पहला आदमी था उस ग्रंथि को देखने वाला मनुष्य-जाति के इतिहास में। और वह अनुभव अनूठा था।
वह जो मरीज मरा पड़ा है टेबल पर, वह ठीक वैसे ही है, जैसे मुल्ला नसरुद्दीन का अंधा डूब गया। एक पैसा कम देना पड़ेगा!
हमारे प्रयोजन ही हमारे अर्थ बन जाते हैं। अगर आंधी जोर से चल रही है तो आप आंधी को नहीं देखते; आप अगर एक दीया जला कर बैठे हैं तो आपको यही फिक्र हो जाती है कि यह दीया बुझ न जाए। अगर आकाश में बादल घिरे हैं और अपने कपड़े आप बाहर सूखने टांग आए हैं; तो बादल नहीं दिखाई पड़ते, रस्सी पर टंगे हुए कपड़े दिखाई पड़ते हैं कि कहीं वे भीग न जाएं। घर चले आ रहे हैं, वर्षा की बूंदें गिरने लगी हैं, तो आपको वर्षा की बूंदें नहीं दिखाई पड़ती, कपड़े की सब क्रीज बिगड़ी जा रही है, वही दिखाई पड़ती है। एक पैसा कम देना पड़ेगा।
107