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समर्पण हैं सार ताओ का
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जो अपना औचित्य सिद्ध करते रहते हैं, वे दो-चार को भी समझाने में सफल हो जाएं तो कठिन है। जो अपना औचित्य सिद्ध ही नहीं करते, उनकी सुगंध दूर- दिगंत तक चली जाती है। क्योंकि उनका खंडन नहीं किया जा सकता। यह बड़े मजे की बात है। जिसने कभी सिद्ध ही नहीं किया कि मैं चरित्रवान हूं, उसको आप चरित्रहीन सिद्ध नहीं कर सकते। जिसने सिद्ध करने की कोशिश की कि मैं चरित्रवान हूं, उसको चरित्रहीन सिद्ध किया जा सकता है। सच तो यह है कि उसने खुद ही खबर दे दी है कि वह चरित्रहीन है— चरित्रवान सिद्ध करने की चेष्टा से। जब कोई आदमी कहता है कि मैं चोर नहीं हूं, जब कोई आदमी कहता है कि मैं बेईमान नहीं हूं, जब कोई आदमी दिन भर यही कहे चला जाता है कि मैं झूठ नहीं बोलता हूं, तब कोई भी संदिग्ध हो जाएगा कि बात क्या है ? इतनी चेतना क्या है ? इतना होश क्या है ? बार-बार दोहराने की इतनी जरूरत क्या है ? नहीं हो तो ठीक है।
लेकिन जो आदमी भीतर गिल्ट, अपराध अनुभव करता है, वह हर बार कोशिश करता रहता है। उसकी हर तरह की चेष्टा सिद्ध करती रहती है कि उसके भीतर कोई अपराध छिपा है । फ्रायड कहता था कि कुछ लोग दिन भर बैठे-बैठे हाथ ही मलते रहते हैं । फ्रायड कहता था, ये हाथ मलने वाले वे लोग हैं, जिन्होंने कोई पाप किया है। ये हाथ धो रहे हैं। इनका जो हाथ मलना है, यह अकारण नहीं है।
कुछ लोगों को हाथ धोने का मैनिया होता है। वे दिन में दस-पचास दफे हाथ धोएंगे। इनके भीतर कोई अपराध घना है और जिसका प्रतीक यह इनका हाथ धोना है। कोई अपराध है जिससे इनको लगता है कि हाथ मेरे रंगे हैं, उसे ये साफ कर रहे हैं। कुछ लोग हैं, खासकर महिलाएं, घर की सफाई में पागल हो जाती हैं। सफाई भी पागलपन हो जाता है। एक कचरे का टुकड़ा नहीं टिकने देंगी। आदमी को अंदर किसी का आना, मेहमान का, उन्हें भय का कारण हो जाता है कि पता नहीं, कचरा आ जाए, कुछ गंदगी आ जाए, कुछ हो जाए।
सफाई अच्छी बात है। लेकिन हर चीज पागलपन की सीमा तक खींची जा सकती है। फ्रायड कहता है कि इन महिलाओं के मन में कहीं कोई डर्ट, कहीं कोई गंदगी जमी है; उसका यह बाहर फैला हुआ रूप है कि बाहर कहीं कोई गंदगी न जम जाए। बाहर की गंदगी उनको भीतर की गंदगी की याद दिलाती है। इसलिए इतना पागलपन है।
एक मित्र मेरे साथ थे। वे किसी के घर चाय नहीं पीते, किसी के घर पानी नहीं पीते, किसी का दिया पान नहीं खाते। वे कहते यही हैं कि नहीं, मैं कहीं कोई बाहर की चीज नहीं लेता।
बहुत बार यह सब देख कर मुझे लगा कि यह कुछ मैनिया, कुछ पागलपन की बात है। खोज-बीन की, उनसे चर्चा की, समझने की कोशिश की। उन्होंने कभी किसी आदमी को जहर खिलाने की कोशिश की थी। और उसके बाद वे किसी के घर कुछ नहीं खा सकते। वह जो भीतर छिपा है, वह अभी भी कंपित हो रहा है। और अब किसी से भी कुछ लेना उनके अपने ही अपराध का पुनर्मरण है।
आदमी बहुत जटिल है। आप क्या करते हैं, क्यों करते हैं, आपको भी पता न हो। आदमी का मन बहुत गहरा उलझाव है। और आदमी हजार काम करता है, जिसका उसे पता नहीं कि क्यों कर रहा है। लेकिन उसके कारण भीतर छिपे हैं। ये जो व्यक्ति निरंतर औचित्य सिद्ध करते रहते हैं कि मैं ठीक आदमी हूं, इनके भीतर गलत होने की धारणा पक्की है। इनको खुद ही भरोसा नहीं है कि ये ठीक आदमी हैं। जब कोई आदमी आपसे आकर कह देता है, आप ठीक आदमी नहीं हैं; तो अगर आप नाराज होते हैं तो उसका मतलब यह है कि उसने कोई घाव छू दिया। नहीं तो नाराज होने का कोई कारण नहीं है। या तो वह आदमी सही है तो धन्यवाद दे देना चाहिए; या वह आदमी गलत है तो हंस देना चाहिए। बात खतम हो गई। नाराज होने की क्या बात है ?
गुरजिएफ के पास लोग जाते थे और वे कहते थे कि आज एक फलां आदमी मिला था, वह बहुत अभद्र बातें आपके संबंध में कह रहा था, गालियां दे रहा था, बहुत गंदी बातें कह रहा था। गुरजिएफ कहता, यह कुछ भी नहीं