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व्यक्ति जीवन को ऊपर से ही देख लेते हैं और जीवन की सतह को ही सब कुछ समझ लेते हैं, उन्हें शून्य का उपयोग दिखाई नहीं पड़ेगा। जो तर्क तक ही अपने को सीमित रखते हैं और सोच-विचार से ज्यादा गहराई में कभी नहीं उतरते, उन्हें भी, जो उपस्थित नहीं है वह भी जीवन का आधार है, ऐसा कभी दिखाई नहीं पड़ेगा। जो गणित की भाषा में सोचते हैं, उन्हें जीवन विधायक मालूम होगा, पाजिटिव मालूम होगा। लेकिन जीवन की विधायकता निगेटिव के अभाव में, नकारात्मक के अभाव में एक क्षण भी नहीं टिक सकती, यह उन्हें दिखाई नहीं पड़ेगा। इसे हम थोड़े उदाहरण से समझें, तो खयाल में आ सके। यह लाओत्से के मौलिक सूत्रों में से एक है। मौलिक सूत्र यह है कि जीवन द्वंद्व पर आधारित
है। और जीवन अपने विपरीत का विरोध नहीं करता, वरन विपरीत के सहयोग से ही चलता है। साधारणतः देखने में ऐसा लगता है कि अगर आपका शत्रु मर जाए, तो आप ज्यादा सुख में होंगे। लेकिन शायद आपको पता न हो कि आपके शत्रु के मरते ही आपके भीतर भी कुछ मर जाएगा, जो आपके शत्र के कारण ही आपके भीतर था। इसलिए बहुत बार ऐसा होता है कि मित्र के मरने पर इतनी हानि नहीं होती, जितनी शत्रु के मरने पर हो जाती है। क्योंकि वह जो विरोध कर रहा था, वही आपके भीतर चुनौती भी जगा रहा था। वह जिसके विरोध और संघर्ष में आप सतत रत थे, वही आपका निर्माण भी कर रहा था।
इसलिए लाओत्से ने कहा है कि मित्र तो कोई भी चल जाएंगे, लेकिन शत्रु सोच कर चुनना। क्योंकि मित्र इतने प्रभावित नहीं करते हैं जीवन को, जितना शत्रु प्रभावित करता है। क्योंकि मित्र की तो उपेक्षा भी की जा सकती है, शत्र की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। और मित्र को भूला भी जा सकता है, शत्रु को कोई कभी नहीं भूलता है।
लेकिन क्या शत्रु भी जीवन को इतना प्रभावित करता है, यह हमारे साधारण विचार में नहीं आता। भारत में अंग्रेजी राज्य न हो और महात्मा गांधी को पैदा करें, तो समझ में आएगा। महात्मा गांधी में कुछ भी बचेगा नहीं। या
जो भी बचेगा, वह महात्मा गांधी की तरह पहचाना न जा सकेगा। वह जो ब्रिटिश का विरोध है, वह जो शत्रुता है, . वह निन्यानबे प्रतिशत उन्हें पैदा करती है। इसलिए जब कोई देश संकट में होता है, तब वहां महापुरुष अपने आप
पैदा हो जाते हैं। इसलिए नहीं कि संकट में महापुरुष को पैदा होना पड़ता है, संकट महापुरुष को पैदा करता है। संकट की घड़ी, तनाव की घड़ी महापुरुष को पैदा करती है।
हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि बिना किसी बड़े युद्ध के कोई बड़ा नेता नहीं हो सकता। इसलिए बड़ा नेता होना हो, तो युद्ध बहुत जरूरी है, एकदम जरूरी है। आप ऐसे एक भी बड़े नेता का नाम नहीं बता सकते, जिसे शांति के समय ने पैदा किया हो। सभी बड़े नेता युद्ध की वजह से पैदा होते हैं। इसलिए जिसको बड़ा नेता बनना हो, उसे युद्ध का इंतजाम करना पड़ता है। बिना युद्ध का इंतजाम किए कोई बड़ा नहीं हो सकता।
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