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ताओ उपनिषद भाग २
जीवन विपरीत के सहयोग से चलता है। विपरीत के विरोध से दिखाई पड़ता है, लेकिन सहयोग से चलता है। इसे हम और पहलुओं से भी समझें, तो खयाल में आ जाएगा। अगर हम रावण को हटा दें रामायण से, तो अकेले राम से कथा निर्मित नहीं होती। ऐसा तो हो भी सकता है कि रावण न हो और राम पैदा हों; लेकिन राम का कहीं भी पता नहीं चलेगा। क्योंकि राम के व्यक्तित्व का सारा निखार रावण के विरोध से उभरता है। राम जितने महिमाशाली दिखाई पड़ते हैं, उस महिमा में रावण का बड़ा कंट्रीब्यूशन है, बड़ा दान है। राम अकेले निर्मित नहीं हो सकते हैं रावण के बिना; रावण भी निर्मित नहीं हो सकता है राम के बिना। वे एक-दूसरे के सहारे बड़े होते हैं। सत्य तो यही है। लेकिन ऊपर से जो देखता है, वह देखता है : वे एक-दूसरे की शत्रुता में हैं, एक-दूसरे के विरोध में हैं। लेकिन जीवन का गहन सत्य यही है कि वे साझेदार हैं। उन्हें भी पता न हो; जरूरी नहीं है कि उन्हें पता हो कि एक बहुत सूक्ष्म तल पर एक साझेदारी है, एक मैत्री है, एक सहयोग है। __ जीवन निर्मित ही नहीं होता, विकसित ही नहीं होता, जब तक विपरीत न हो। विपरीत अनिवार्य है।
फ्रायड ने इस सदी में एक बहुमूल्य सत्य की खोज की, और वह यह कि हम जिसको भी प्रेम करते हैं, उसे हम घृणा भी करते हैं। बहुत चौंकाने वाली बात थी! खुद फ्रायड को भी चौंकाने वाली थी। और लोगों को बहुत सदमा लगा, खास कर प्रेमियों को बहुत सदमा लगा। क्योंकि प्रेमी कभी मान नहीं सकता कि हम जिसे प्रेम करते हैं, उसे घृणा भी करते हैं। लेकिन सभी प्रेमी जानते हैं, मानते भला न हों। इसलिए फ्रायड को इनकार बहुत किया गया, लेकिन इनकार किया नहीं जा सका। और धीरे-धीरे सत्य को स्वीकार करना पड़ा।
हम जिसे प्रेम करते हैं, उसे हम घृणा भी करते हैं; क्योंकि प्रेम बिना घृणा के खड़ा नहीं रह सकता। इसलिए अगर आपने किसी को प्रेम किया है और अगर आप ईमानदार हों और विश्लेषण करें, तो आप पाएंगे, सुबह घृणा की है, दोपहर प्रेम किया है, सांझ घृणा की है, रात प्रेम किया है। घृणा और प्रेम पीरियाडिकल बदलते रहे हैं। जिससे सुबह कलह की है और सोचा है इसके साथ क्षण भर जीना असंभव है, सांझ उससे सुलह की है और सोचा है इसके बिना क्षण भर भी जीना असंभव है।
पुराने प्रेम के जानकारों ने कहा था कि प्रेम पूर्ण तभी होता है, जब उसमें कलह न हो। और फ्रायड कहता है कि जितना पूर्ण प्रेम होगा, उतनी ही पूर्ण उसमें कलह होगी। अगर दो प्रेमियों में झगड़ा नहीं हो रहा है, तो उसका कुल मतलब इतना है कि दो प्रेमी सिर्फ धोखा दे रहे हैं, प्रेम नहीं है, फ्रायड कहता है। अगर आप और आपकी पत्नी में कोई कलह नहीं हो रही, तो उसका मतलब यह है कि पति और पत्नी होना बहुत पहले समाप्त हो गया, अब कलह की भी कोई जरूरत नहीं रह गई है। जितना गहन प्रेम होगा, तथाकथित जिसे हम प्रेम कहते हैं, किसी आध्यात्मिक प्रेम की बात फ्रायड नहीं कर रहा है। जिसे हम प्रेम कहते हैं और जिसे हम जानते हैं, आध्यात्मिक प्रेम को हम जानते भी नहीं। जिस प्रेम को हम जानते हैं, उस प्रेम में कलह, कांफ्लिक्ट अनिवार्य हिस्सा है।
लेकिन प्रेमी भी चाहेगा, प्रेयसी भी चाहेगी, पति भी चाहेगा, पत्नी भी चाहेगी कि कलह बंद हो जाए, तो प्रेम में बड़ा आनंद आए। उन्हें जीवन के सत्य का पता नहीं है। जिस दिन कलह पूरी तरह बंद होगी, उस दिन प्रेम पूरी तरह समाप्त हो चुका होगा। असल में, कलह बंद हो ही नहीं सकती उससे, जिससे हमारा प्रेम चल रहा है। कलह का मतलब ही यही है कि अपेक्षा है, बड़ी अपेक्षा है। और जितना बड़ा प्रेम है, उतनी बड़ी अपेक्षा है। और जितनी बड़ी अपेक्षा है, उतनी ही विफलता लगती है, उतना फ्रस्ट्रेशन होता है, हाथ में कुछ लगता नहीं। फिर कलह होती है। अगर कोई अपेक्षा न रह जाए, कोई एक्सपेक्टेशन न हो, कोई मांग न हो, कोई आशा न बचे, किसी सपने के पूरे होने का कोई खयाल न हो, तो कलह बंद हो जाती है। तब हम जीवन जैसा है, उसे स्वीकार कर लेते हैं।
तो फ्रायड कहता है कि बड़े प्रेमी शांति से रह ही नहीं सकते हैं।
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