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________________ ताओ उपनिषद भाग २ मैंने सुना है, सुकरात के पास उस जमाने का एक बहुत बड़ा तर्कनिष्ठ, एक सोफिस्ट मिलने आया। सुकरात तो बहुत झिझकता था। सुकरात का चित्त लाओत्से जैसा रहा होगा। अगर पश्चिम में कोई एक आदमी हुआ है जो लाओत्से के निकट पहुंचे, तो वह सुकरात है। सुकरात लोगों से सवाल पूछता था, लेकिन खुद कभी जवाब नहीं देता था। तो लोग तो...इसीलिए उसको जहर देने में एक कारण यह भी था कि लोगों को उसने बहुत परेशान कर दिया। सवाल हमेशा पूछेगा और जवाब कभी नहीं देगा। क्योंकि सुकरात कहता, मैं जानता कहां हूं? अज्ञानी हूं, इसलिए सवाल तो पूछने का मुझे हक है। लेकिन ज्ञान नहीं है, इसलिए जवाब मैं क्या दूं? और ऐसे आदमी से आप बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे, जो जवाब न दे और सवाल पूछे। क्योंकि सवाल तो अंतहीन पूछे जा सकते हैं। और जो खुद जवाब न दे, उससे आप एक भी सवाल नहीं पूछ सकते, क्योंकि उसने कभी कोई जवाब नहीं दिया जिस पर सवाल उठाए जा सकें। तो पूरा एथेंस सुकरात से परेशान हो गया था। रास्ते पर लोग उसे देख कर गली से बच कर निकल जाते थे कि अगर वह मिल गया और कुछ सवाल पूछ लिया, तो भीड़ इकट्ठी हो जाएगी और झंझट खड़ी हो जाएगी। क्योंकि आप जितनी बातें जानते हुए मालूम पड़ते हैं, उनमें से एक का भी आपको पता कहां है? वह तो कोई पूछता नहीं है, इसलिए आप मजे से अपने ज्ञान में थिर रहते हैं। अगर कोई पूछ ले, तो आप मुश्किल में पड़ेंगे। पूछते भी लोग इसीलिए नहीं हैं कि जो आपसे पूछे, वह भी झंझट में पड़ेगा। उसको भी अपना ज्ञान बचाना है। आपको अपना बचाना है। एक म्यूचुअल कांस्पिरेसी है; अज्ञानियों का एक षड्यंत्र है सामूहिक। क्योंकि अगर आपसे कोई पूछे कि ईश्वर है? तो आप ही मुश्किल में नहीं पड़ेंगे, उस आदमी से भी आप पूछ सकते हैं कि आपका क्या मानना है? वह भी कुछ मानता है। आत्मा है? वह कठिनाई खड़ी होगी। इसलिए हम अज्ञान एक-दूसरे का छेड़ते ही नहीं। अपने अज्ञान में हम ज्ञानी, आप अपने अज्ञान में ज्ञानी! हम एक-दूसरे का ज्ञान सम्हालते हैं। अशिष्टाचार है इस तरह की बातें उठाना। यह सुकरात अशिष्ट था। सुकरात को जहर देने के पहले मजिस्ट्रेट ने कहा है कि अगर तुम यह सत्य बोलने का काम बंद कर दो, तो मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं। सुकरात ने कहा, लेकिन यह मेरा धंधा है। मैं सत्य बोलना बंद कैसे कर सकता हूं? क्योंकि मैं जो बोलता हूं, वह सत्य ही होता है। तुम तो यह कह रहे हो कि मैं बोलना ही बंद कर दूं। तो फिर जीकर भी, ऐसी परतंत्रता में जीकर भी क्या होगा? सुकरात जवाब नहीं देता, सवाल पूछता है। यह एक तर्कनिष्ठ, सोफिस्ट सुकरात को मिलने आया है। तो वह तो तर्कवादी है। उसने अपने तर्क का एक सिद्धांत सुकरात को कहा। उसने सुकरात को कहा कि इस जगत में कोई भी चीज निरपेक्ष नहीं है, एब्सोल्यूट नहीं है। कोई भी चीज इस जगत में पूर्ण नहीं है। न कोई मनुष्य पूर्ण है, न कोई सत्य पूर्ण है, न कोई सिद्धांत पूर्ण है; इस जगत में कोई भी चीज पूर्ण नहीं है। सुकरात ने उससे पूछा कि तुम्हारा यह वक्तव्य पूर्ण सत्य है या नहीं? जोश में था तर्कशास्त्री, वह भूल ही गया कि फंसा जा रहा है। उसने कहा, यह पूर्ण सत्य है। सुकरात ने कहा, अब मुझे कहने को कुछ भी नहीं बचता है। बात समाप्त हो गई। अब तुम सोचना। जब भी हम किसी चीज की पूर्णता का दावा करते हैं, तब हमें पता नहीं कि यह जीवन बहुत रहस्यपूर्ण है, दो और दो जैसा नहीं है कि चार हो जाए। कुछ छूट गया, वही हमारी मौत बनेगा। इस आदमी ने अगर ऐसा कहा होता कि जगत में कुछ सत्य पूर्ण हैं, कुछ सत्य पूर्ण नहीं हैं; इस आदमी ने ऐसा कहा होता कि शायद जगत में कोई सत्य पूर्ण नहीं है, तो सुकरात इसको दिक्कत में नहीं डाल सकता था। लेकिन इस आदमी ने कहा कि जगत में कोई सत्य पूर्ण नहीं है। इसने इसी वक्त कह दिया कि कम से कम मेरा सत्य पूर्ण है। यह इसमें अपूर्णता को कहीं गुंजाइश ही नहीं बची, कोई गुंजाइश नहीं बची। कम से कम एक बात पूर्ण है, यह तो इसने घोषणा कर ही दी। और वह एक बात भी अगर पूर्ण है, तो इसका वक्तव्य गलत हो गया। 54
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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