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________________ उद्देश्य मुक्त जीवन, आमंत्रण भरा भाव व बमनीय मेधा 55 जब भी हम घोषणाएं करते हैं रूढ़बद्ध और विपरीत को भूल जाते हैं, तो विपरीत बदला लेता है। इसलिए लाओत्से ऐसा नहीं कहता कि वह आदमी अज्ञानी है जो ज्ञान का दावा करता है, क्योंकि यह भी तो ज्ञान का दावा हो जाएगा - यह भी । इसलिए लाओत्से कहता है, क्या ऐसा नहीं हो सकता, क्या ऐसा संभव नहीं है कि जिसके सब द्वार ज्ञान के खुल गए हों, वह अज्ञानी जैसा व्यवहार कर सके ? एक प्रश्न में रखता है इस बात को बहुत झिझक के साथ। यह लाओत्से की जो नमनीय प्रज्ञा है, वह जो कोमल प्रज्ञा है, वह जो तरल चेतना है, उसका लक्षण है। ये तीन सूत्र – उद्देश्य - मुक्त जीवन, आमंत्रण से भरा हुआ भाव, ज्ञानरहित होने की तैयारी, साहस - जिस व्यक्ति में हों, उस व्यक्ति को वह जीवन का जो परम लक्ष्य है, परम जीवन जो है, वह अभी और यहीं उपलब्ध हो जाता है। उसके लिए फिर कल के लिए बाट नहीं जोहनी पड़ती। उसे फिर कल के लिए स्थगित भी नहीं करना पड़ता। फिर ऐसे व्यक्ति का मोक्ष मृत्यु के बाद नहीं, अभी और यहीं है। और ऐसे व्यक्ति का परमात्मा किसी दूसरे लोक में वास नहीं करता, अभी और यहीं, चारों तरफ से उसे घेरे हुए है। और ऐसे व्यक्ति को पाने के लिए कुछ भी शेष नहीं रह जाता, क्योंकि जीवन की सारी संपदा के द्वार अभी और यहीं खुल जाते हैं। शेष हम कल बात करें। पांच मिनट बैठेंगे, कीर्तन में सम्मिलित हों। जिन मित्रों को यहां नीचे खड़े होकर कीर्तन में सम्मिलित होना हो, वे भी आगे आ जाएं।
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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