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उदेश्य मुक्त जीवन, आमंत्रण भरा भाव व बमबीय मेधा
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नहीं, वर्तमान में रहने का यह अर्थ नहीं कि आप योजना न कर पाएंगे। वर्तमान में रहने का अर्थ इतना ही है कि योजना आपका जीवन नहीं है, जीना ही आपका जीवन है। और जीना अभी और यहीं, इसी क्षण संभव है, और किसी क्षण संभव नहीं है।
तो एक तो है निरुद्देश्य जीवन उस आदमी का, जिसे हम मूढ़ कहते हैं। जो पड़ा है, धक्के खा रहा है, जहां भी जीवन धक्का दे दे, वहां चला जाएगा। प्रमाद से भरा हुआ, आलस्य में डूबा हुआ। जीवन को अपने हाथ में जिसने लिया ही नहीं है, जो हवा में उड़ते हुए एक पत्ते की भांति है। एक तो वह आदमी है, उसे हम कहें निरुद्देश्य जीवन ।
एक वह आदमी है, जो चौबीस घंटे दौड़ रहा है उद्देश्य को पाने के लिए। जिसको हम बुद्धिमान, समझदार आदमी कहते हैं। वह है सोद्देश्य जीवन, जो प्रतिपल खो रहा है आगे पल के लिए। जो हमेशा इनवेस्ट किए चला जा रहा है। आज के क्षण को कल के लिए लगा रहा है। कल के क्षण को परसों के लिए लगा रहा है। और आखिर में मर जाता है; दौड़ते-दौड़ते मर जाता है। शायद इस आदमी की बजाय तो वह जो निरुद्देश्य आदमी था, उसने भी कुछ झलक जानी हो ।
लेकिन लाओत्से उस आदमी के लिए नहीं कह रहा है। लाओत्से एक तीसरे आदमी की बात कर रहा है: उद्देश्य - मुक्त जीवन । वह एक तीसरा ही आदमी है। न तो वह आलसी है, न वह प्रमादी है। न वह जीवन से पलायन कर रहा है, न वह मुर्दे की भांति पड़ा हुआ है और जीवन की धारा उसके ऊपर से गुजरी जा रही है। नहीं, न तो वह पहले आदमी की तरह है, न वह दूसरे आदमी की तरह है कि पागल की तरह दौड़ रहा है। वह एक तीसरा ही आदमी है। जो दौड़ता भी है, तो किसी मंजिल के लिए नहीं; दौड़ने का हर कदम उसके लिए आनंद है। जो अगर दौड़ता भी है, तो दौड़ने में ही उसका आनंद है। जो कहीं पहुंचने के लिए नहीं दौड़ रहा है।
इस तीसरे तरह के आदमी को कभी असफलता नहीं मिल सकती। यह कभी विफल नहीं हो सकता। और यह कभी संताप को उपलब्ध नहीं होगा। फ्रस्ट्रेशन, विषाद जिसे कहें, इसे कभी फलित नहीं होगा, क्योंकि इसने कभी कोई आशा ही नहीं बांधी है। इसने तो प्रत्येक क्षण को उसकी पूर्णता में जी लिया था, निचोड़ लिया था। यह किसी मंजिल के लिए नहीं दौड़ा, इसलिए कभी यह नहीं कहेगा खड़े होकर कि मेरी जिंदगी बेकार चली गई, मैं पहुंच नहीं पाया। क्योंकि इसने पहुंचने की कभी कोई कोशिश नहीं की।
यह आदमी कहेगा, मैंने जीवन का क्षण-क्षण जी लिया है; पूरी तरह निचोड़ लिया है जीवन का रस । यह आदमी मृत्यु को भी आनंद से गले लगा लेगा। यह आदमी मृत्यु को भी जी सकेगा। इस आदमी के लिए मृत्यु भी जीवन की एक घटना होगी, जीवन का अंत नहीं। यह मृत्यु का भी रस, और मृत्यु का भी आलिंगन कर सकेगा। क्योंकि जो भी इसके सामने रहा है, इसने उसे जीया है। जो भी इसे मिल गया है, इसने उसे पूरा का पूरा भोगा है। इसने रत्ती भर उसे छोड़ा नहीं, आगे-पीछे का इसने हिसाब नहीं रखा है। दौड़ा यह भी बहुत, शायद उनसे ज्यादा दौड़ा, जो मंजिल बना कर दौड़ रहे थे। क्योंकि आपको खयाल हो, जब मंजिल का बोझ हो सिर पर, तो पैर भी भारी हो जाते हैं। और जब किसी लक्ष्य को बना कर कोई चलता है, तो चलना एक थकान हो जाती है।
कभी आपने खयाल किया ? आप सुबह जिस रास्ते पर घूमने निकलते हैं, दोपहर उसी रास्ते से दफ्तर के लिए भी जाते हैं। पैर भी वही होते हैं, रास्ता भी वही होता है, आकाश भी वही होता है। लेकिन सुबह जब आप घूमने निकले होते हैं, तो पैरों का नृत्य अलग होता है और प्राणों के गीत में भेद पड़ता है । उसी रास्ते से दोपहर आप दफ्तर के लिए जाते हैं। पैर भी वही, रास्ता भी वही । लेकिन अब एक मंजिल और है, कहीं पहुंचना है। सुबह घूमने गए थे, तब कहीं पहुंचना नहीं था, चलना ही काफी था ।
वह चलने का जो सुख था सुबह, वह इसी रास्ते पर दोपहर को क्यों नहीं मिल पाता है? और हो सकता है,