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धर्म है-स्वयं जमा हो जाना
कभी आपने यह खयाल किया कि आपके कमरे में एक मेहमान आए, तो एक आदमी भीतर आता है। और जब आपका नौकर उस कमरे में आता है, जाता है, तो आपको पता भी नहीं चलता कि कोई आदमी भीतर आया और गया। नौकर कोई आदमी थोड़े ही है। नौकर कोई आदमी नहीं है। फर्क क्या है आपकी आदमियत में और उसकी आदमियत में? इतना ही कि आप स्कूल की बेंचों पर थोड़ी देर ज्यादा बैठे। इतना ही कि आपके पास जो वस्त्र हैं अपने को छिपाने के, वे जरा कीमती हैं। आपकी नग्नता जरा कीमती वस्त्रों में छिपी है और उसकी नग्नता जरा दरिद्र वस्त्रों में छिपी है।
लाओत्से कहता है, सभी शिक्षा वस्त्र निर्मित करती है-भीतर आत्मा पर, स्वभाव पर। सभी. संस्कार, जो मैं हूं, उसको दबा देते हैं। वह कहता है, इन सभी संस्कारों को छोड़ कर स्वयं को जाना जाता है।
निश्चित ही, ऐसी संस्कृति हो सकती है, जो इतने जोर से दबा दे कि छुटकारे का उपाय न छोड़े। ऐसी भी संस्कृति हो सकती है, जो साथ-साथ छुटकारा भी सिखाए। आपको ऐसे कपड़े भी पहनाए जा सकते हैं, जिनको निकालना मुश्किल हो जाए। और ऐसे कपड़े भी पहनाए जा सकते हैं कि आप क्षण में उनके बाहर निकल जाएं।
जो संस्कृति ऐसी शिक्षा देती है और ऐसे संस्कार देती है, जिनके बाहर निकलना जरा भी मुसीबत न हो, वह संस्कृति धार्मिक है। और जो संस्कृति ऐसे वस्त्र देती है कि वे वस्त्र नहीं, चमड़ी की तरह पकड़ जाते हैं, छोड़ते नहीं फिर, छूटना मुश्किल हो जाता है, उनके बाहर निकलने में बड़ी अड़चन हो जाती है, वह संस्कृति अधार्मिक है। धार्मिक संस्कृति वह है, जो स्वयं से छुटने का उपाय भी देती है। धार्मिक संस्कृति वह है, जो आपको संस्कार भी देती है और संस्कार के बाहर जाने का मार्ग भी देती है। लेकिन संस्कार तो सभी बांधेगे। साथ में बाहर निकलने का मार्ग भी हो सकता है; होना चाहिए। अगर हो, तो संस्कृति धार्मिक हो जाती है।
एक मित्र ने पूछा है कि पूर्व-धारणा बना कर स्वयं में प्रवेश करने पर सरल स्व का उदघाटन संभव नहीं। बताएं कि पूर्व-धारणा के बिना स्व-बोध के प्रति प्रवृत्ति संभव है क्या? क्या जिज्ञासा का मूल कारण वस्तु-तत्व का पूर्व-ज्ञान नहीं है?
इसको ही कहते हैं पूर्व-धारणा। यह प्रश्न पूर्व-धारणा से भरा हुआ है। जैसे वे कहते हैं, 'पूर्व-धारणा बना कर स्वयं में प्रवेश करना संभव नहीं।'
यह माना हुआ हो गया। प्रवेश करके देखा है? यह धारणा बना ली बिना प्रवेश किए कि संभव नहीं। अब संभव बहुत मुश्किल होगा। यह धारणा ही रुकावट डालेगी कि संभव नहीं। जो संभव नहीं है, उसका प्रयास ही क्यों करिएगा। असंभव है, दरवाजा बंद कर लिया। अब कठिन हो जाएगा।
धारणामुक्त होने का अर्थ है कि बिना जाने मन को खुला रखें, बांधे मत। संभव है या असंभव है, ऐसा निर्णय न करें। प्रयोग करें, निर्णय न करें। अनुभव करें, निर्णय न करें। अनुभव से ही निर्णय को आने दें। निर्णय से अनुभव को मत निकालें। क्योंकि अगर पहले ही तय कर लिया, तो फिर प्रयोग की वैज्ञानिकता समाप्त हो गई। आप तो पहले ही तय कर लिए हैं कि क्या होने वाला है। अब जानने को कुछ बचा नहीं। और अब आपका यह जो मन है, पूरी कोशिश करेगा वही सिद्ध करने का जो इसने मान लिया है। हम सब अपने मन को सिद्ध करने में लगे रहते हैं। जो मान लेते हैं, वह सही निकले, बड़ी खुशी होती है।
एक मित्र मेरे पास आए थे। उन्होंने कहा, गीता में आपको सुना, तब तो मन को बड़ी खुशी हुई। अभी लाओत्से में सुनते हैं, तो उतनी खुशी नहीं होती, बल्कि थोड़ी बेचैनी होती है।
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