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________________ ताओ उपनिषद भाग २ 384 शिक्षा संसार के लिए जरूरी है। अगर संसार में जीना है, संसार में चलना है, वासना में दौड़ना है, सक्रिय होना है, तो शिक्षा जरूरी है। शिक्षा सक्रियता का प्रबंध है। इसलिए जो जितना शिक्षित है, उतना सक्रियता के जगत सफल होता हुआ मालूम पड़ता है। जो जितना अशिक्षित है, उतने सक्रियता के द्वार दरवाजे बंद हो जाते हैं। शिक्षा . सक्रियता की टेक्नालाजी है। लेकिन स्वभाव में जाने के लिए किसी शिक्षा की कोई जरूरत नहीं है। स्वभाव में जाने के लिए तो जो भी शिक्षा मिली हो, उसको छोड़ने का साहस चाहिए। जो भी शिक्षा मिली हो, उसे छोड़ने का साहस चाहिए। इसे हम ऐसा समझें, इस प्रश्न को हम ऐसा रखें, तो खयाल में आ जाए। लाओत्से कहता है कि वस्त्र मनुष्य की नग्नता को छिपा लेते हैं। हम पूछ सकते हैं, माना कि वस्त्र नग्नता को छिपा लेते हैं, क्या ऐसे कोई वस्त्र नहीं हो सकते जो नग्नता को न छिपाएं ? वस्त्र तो कैसे भी हों, नग्नता को छिपाएंगे; छिपाने की मात्रा में फर्क हो सकता है। कांच के वस्त्र बनाए जा सकते हैं, ट्रांसपैरेंट; वे बहुत कम छिपाएंगे। लेकिन फिर भी छिपाएंगे। और नग्न किसी को होना हो, तो कैसे भी वस्त्र हों, उसे उतार कर रख देने होंगे। चाहे वे लोहे के हों और चाहे कांच के हों, चाहे उनके पार दिखाई पड़ता हो और चाहे पार दिखाई न पड़ता हो। वस्त्र तो हटा ही देने होंगे, तो ही नग्नता प्रकट होगी। स्वभाव हमारी आंतरिक नग्नता है। संस्कृति, सभ्यता, शिक्षा हमारे वस्त्र हैं । उन वस्त्रों में हम दब जाते हैं। धीरे-धीरे वस्त्र इतने उपयोगी सिद्ध होते हैं कि हम भूल ही जाते हैं कि वस्त्रों के अलावा भी हमारा कोई होना है। भीतर की बात तो हम छोड़ दें, बाहर भी ऐसा हो जाता है। अगर आप भी अपने आपको रास्ते में नग्न मिल जाएं, तो पहचान न पाएंगे। या कि आप सोचते हैं पहचान लेंगे ? अचानक एक दिन आप अपने दरवाजे से निकलें और आप ही अपने ' को दरवाजे पर नग्न मिल जाएं! आप नहीं पहचान पाएंगे। हम अपने को भी अपने वस्त्रों से ही पहचानते हैं। जर्मन कनसनट्रेशन कैंप्स में बड़ी हैरानी अनेक लोगों को अनुभव हुई। क्योंकि जब नाजी लोगों को पकड़ते थे, तो पहला काम यह करते कि उनके सारे वस्त्र, उनके सब सामान छीन लेते। फिर उनके सिर, दाढ़ी, मूंछ सब घोट देते। तो एक मनसविद फ्रैंकेल ने लिखा है...। वह एक बड़ा डाक्टर, बड़ा मनसविद है। वह भी पकड़ा गया, यहूदी है। उसके साथ पांच सौ लोग पकड़े गए, उसके ही गांव के लोग थे। सब परिचित थे; कोई वकील था, कोई जज था, कोई चिकित्सक था, कोई शिक्षक था, कोई कोई था । उन पांच सौ ही लोगों के सिर मूंड़ दिए गए; उनके सब वस्त्र, कपड़े, सब निकाल लिए गए; चश्मा घड़ी सब सामान अलग कर लिया गया। फ्रैंकेल ने लिखा है कि जब हम पांच सौ ही नग्न खड़े हुए, तो कोई किसी को पहचान न पाए। समझ में ही न आए कि ये कौन लोग खड़े हैं! और फ्रैंकेल ने लिखा है कि जब मैं खुद आईने के सामने खड़ा हुआ — सिर घुटा, नग्न - तो मुझे भरोसा न आया कि यह मैं ही हूं। आपकी अपनी जो आइडेंटिटी है, आपका जो अपना तादात्म्य है, वह आपके वस्त्र हैं बाहर भी । जरा देखें, एक मजिस्ट्रेट को और एक चोर को नग्न खड़ा कर दें; फिर बता दें, कौन मजिस्ट्रेट है और कौन चोर है। हो सकता है, नग्न चोर ही शान से खड़ा हो और मजिस्ट्रेट चोर मालूम पड़े। सारी गरिमा खो जाए मजिस्ट्रेट की; क्योंकि वह गरिमा वस्त्रों की है। इसलिए वस्त्रों पर हमारा इतना मूल्य है। एक सम्राट के वस्त्र छीन लें; सब छिन जाता है। बाहर ही ऐसा होता, तो ठीक था; भीतर भी ऐसा ही है। भीतर के वस्त्र महीन हैं, सूक्ष्म हैं, पता नहीं चलता । शिक्षा है। आपकी शिक्षा छीन लें, तो आप में और आपके नौकर में कहीं कोई फर्क रह जाए? आप दस-पांच साल विश्वविद्यालय में ज्यादा देर बैठे हैं, वह जरा कम देर बैठा है; पर उसने कितना फर्क ला दिया है! आप सुसंस्कृत हैं, वह असभ्य है। आप जहां जाएंगे, लोग नमस्कार करेंगे। वह जहां से भी गुजरेगा, कोई उसे देखेगा भी नहीं ।
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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