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________________ ताओ उपनिषद भाग २ और अच्छा बिस्तर जुटाने में आदमी नींद को समाप्त कर डालता है; नींद को चढ़ा देता है बलिवेदी पर कि एक अच्छा बिस्तर मिल जाए। और अच्छा बिस्तर इसलिए मिल जाए कि उस पर सो सके। फिर जब बिस्तर मिल जाता है, तो नींद नहीं होती। जब भोजन मिल जाता है, तो भूख नहीं होती। इस दुनिया में दो तरह के दरिद्र लोग हैं। एक, जिनके पास भूख है, भोजन नहीं। एक, जिनके पास भोजन है, भूख नहीं। बर्नार्ड शॉ ने कहा है कि दुनिया में दो जातियां हैं-हैव्स एंड हैव नाट्स। गलत है वह बात। दुनिया में दो जातियां हैं-हैव नाट्स एंड हैव नाट्स। क्योंकि किसी के पास भोजन है, तो भूख नहीं है। किसी के पास भूख है, तो भोजन नहीं है। और ध्यान रहे, इन दोनों में दरिद्र वह ज्यादा है, जिसके पास भोजन है और भूख नहीं। क्योंकि भोजन बाहरी चीज है, भूख भीतरी चीज है। और भोजन तो मांगा भी जा सकता है, चुराया भी जा सकता है। भूख मांगी भी नहीं जा सकती, चुराई भी नहीं जा सकती। जिसके पास भोजन है और भूख नहीं, उसके पास भीतर कुछ मर गया है और बाहर कुछ इकट्ठा हो गया है। और मजा यह है कि बाहर यह इकट्ठा उसने किया ही इसलिए था कि वह भीतर जो है, उसका आनंद ले सके। लेकिन उसे ही बेच डाला बाजार में। जिसे बचाने निकले थे, उसे बेच डाला। और आदमी निरंतर इस भूल से गुजरता है। आवश्यकता रह जाएगी, अगर आदमी निष्क्रियता में प्रवेश कर जाए। सक्रियता नहीं खो जाएगी, लेकिन सक्रियता आवश्यकता के अनुपात में हो जाएगी। उससे ज्यादा नहीं। और यह जो निष्क्रिय को भीतर जान लेने वाला आदमी है, यह साधारण हो जाएगा। यह विक्षिप्तता की बातें छोड़ देगा कि मैं सिकंदर हो जाऊं, कि नेपोलियन हो जाऊं, कि हिटलर हो जाऊं, या बुद्ध हो जाऊं, महावीर हो जाऊं। नहीं, यह कुछ भी नहीं होना चाहेगा। यह जो है, वह काफी है। मार्टिन लूथर ने मरते वक्त कहा है कि परमात्मा से मिलने जा रहा हूं। जिंदगी भर मैंने कोशिश की कि जीसस क्राइस्ट हो जाऊं। और अब मुझे खयाल आता है कि परमात्मा मुझसे यह नहीं पूछेगा कि तुम जीसस क्राइस्ट क्यों नहीं हो सके? वह मुझसे पूछेगा, तुम मार्टिन लूथर क्यों नहीं हो सके? जीसस क्राइस्ट से क्या लेना-देना था? जीसस क्राइस्ट जीसस क्राइस्ट जाने उनका होना। मैं था लूथर। तो अब मुझे खयाल आता है कि जिंदगी तो मैंने जीसस जैसा होने में लगाई। परमात्मा मुझसे पूछेगा कि तुम लूथर क्यों न हो सके? जो तुम हो सकते थे, वह तुम क्यों न हो सके? और जो तुम थे ही नहीं, उस होने में तुमने समय क्यों व्यतीत किया? परमात्मा किसी से भी नहीं पूछेगा कि तुम बुद्ध क्यों नहीं बने, महावीर क्यों नहीं बने, कृष्ण क्यों नहीं बने? वह यही पूछेगा कि तुम जो हो सकते थे, वह भी तुम क्यों न हो सके? नहीं हो पाते हम, क्योंकि हम कुछ और होने में लगे हैं। जो हम हो सकते हैं, वह हम हो नहीं पाते। और जो हम हो नहीं सकते हैं, वह हम होने में लगे रहते हैं। ऐसे जीवन चूक जाता है। सारा अवसर खो जाता है। फिर दीनता पैदा होगी, इनफीरिआरिटी कांप्लेक्स पैदा होगी, आत्मग्लानि होगी। लगेगा : मैं कुछ भी नहीं हूं। उदासी घेर लेगी, विषाद पकड़ लेगा। और जिंदगी एक बोझ हो जाएगी, एक नृत्य नहीं। __ लाओत्से जो कह रहा है, वह एक नृत्य का जीवन है, लेकिन सहज। और जब मैं कहता हूं कि लाओत्से जो कह रहा है, वह एक नृत्य का जीवन है; तो वह यह नहीं कह रहा है कि तुम निजिस्की जैसे नाचो, कि तुम कोई बहुत बड़े नृत्यकार, कि तुम कोई उदयशंकर हो जाओ। तुम नाच सको आनंद से, यह काफी है। टेढ़ा-मेढ़ा ही सही तुम्हारा नाच-तुम्हारा हो, आथेंटिक हो, प्रामाणिक हो। जरूरत नहीं है कि तुम्हारे पास कोई तानसेन के स्वर हों। तुम्हारा अपना स्वर हो, अपने ही हृदय से उठा। न हो राग उसमें, न हो काव्य उसमें, कुछ भी न हो; बस एक अस्तित्व की मांग है कि वह तुम्हारा हो, प्रामाणिक रूप से तुम्हारा हो। 382/
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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