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शलीन व आत्मा की एकता, ताओ की प्राण-साधना व अविकानी स्थिति
इस आलिंगन को ही तंत्र ने आंतरिक मैथुन कहा है, जब भीतर की चेतना भीतर की वासना से एक हो जाती है। बुद्धि कहा है तंत्र ने पुरुष को और शरीर की प्रकृति को स्त्री कहा है। और जब भीतर की स्त्री भीतर के पुरुष से एक हो जाती है, आलिंगन में बद्ध हो जाती है, तो परम समाधि फलित होती है।
. उसी आलिंगन की बात लाओत्से कर रहा है। जो भी किया जाए, उस करने में मेरे भीतर दो मौजूद न हों। क्षुद्र से क्षुद्र काम भी मुझे पूरा ही डुबा ले। क्षुद्र से क्षुद्र क्रिया में भी मेरी लीनता परिपूर्ण हो जाए। मैं पीछे न बचूं। मेरा बचना ही द्वंद्व है। मेरा पूरी तरह एक हो जाना ही निर्द्वद्व हो जाना है। तो आलिंगन फलित होगा।
लेकिन यह प्रक्रिया तो पूरे जीवन पर फैलानी पड़े। और अभी फैलानी कठिन है, क्योंकि अभी हमारे भीतर कुछ शारीरिक व्यवस्थागत अनिवार्य फासले हो गए हैं। और जब तक वे फासले न टूट जाएं, तब तक इस लीनता की साधना को साधना मुश्किल है। उन फासलों को हम समझ लें। वे फासले यांत्रिक हो गए हैं, मैकेनिकल हो गए हैं। और जब तक हम यांत्रिक व्यवस्था को ही न तोड़ डालें, और नया न कर लें, तब तक केवल लीनता के प्रयोग से कुछ भी न होगा। बल्कि यह भी हो सकता है कि जब आप कोई काम करें, तो आपका यह लीनता का खयाल कि मैं पूरी तरह लीन होकर ही काम करूंगा, द्वैत का कारण बन जाए। यह लीनता का खयाल ही आपको लीन न होने दे। भोजन करते वक्त अगर आप यह खयाल रख कर भोजन करें कि मैं भोजन में पूरा डूबा रहूं, तो आप डूबे नहीं रह सकेंगे। क्योंकि यह खयाल आपको बाहर ही किए रहेगा। हमारे भीतर यंत्रगत भूलें हो गई हैं। और यंत्रगत भूलों को समझ लेना जरूरी है।
अगर आप एक छोटे बच्चे को अपने झूले पर सोता हुआ देखें, तो जो एक बात खयाल में आपको नहीं आती होगी, आनी चाहिए, वह यह होगी कि बच्चे का पेट आप ऊपर-नीचे होते देखेंगे, छाती नहीं। बच्चा श्वास ले रहा है, तो उसका पेट ऊपर-नीचे हो रहा है। लेकिन छाती उसकी बिलकुल विश्राम में पड़ी है। हम, हम उलटी ही श्वास ले रहे हैं। हम जब श्वास लेते हैं, तो छाती ऊपर-नीचे होती है।
लाओत्से का कथन है और बहुत कीमती, और अब विज्ञान भी लाओत्से से सहमत है कि जैसे ही व्यक्ति के भीतर ऐंद्रिक और बुद्धिगत चेतनाओं में फासला पड़ता है, वैसे ही श्वास नाभि से न आकर सीने से आनी शुरू हो जाती है। यह फासला जितना बड़ा होता है, श्वास उतने ही ऊपर से आकर लौट जाती है। तो जिस दिन बच्चे की श्वास पेट से हट कर और सीने से चलने लगती है, जान लेना कि बच्चे के भीतर ऐंद्रिक आत्मा में और बुद्धिगत आत्मा में फासला पड़ गया। बड़ी उम्र में भी, आप भी जब रात सो जाते हैं, तब आपके पेट से ही श्वास चलने लगती है, सीना शांत हो जाता है। क्योंकि नींद में आप अपने फासलों को बचा नहीं सकते। बेहोशी में फासले खो जाते हैं और श्वास की स्वाभाविक प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
श्वास का जो प्राथमिक स्रोत है, जापानी भाषा में उसके लिए एक शब्द है। हमारी भाषा में कोई शब्द नहीं है। वह शब्द है उनकाः तादेन, Tanden । नाभि से दो इंच नीचे, ठीक श्वास चलती हो तो नाभि से दो इंच नीचे, जिसे जापानी तांदेन कहते हैं, उस बिंदु से श्वास का संबंध होता है। और जितना तनावग्रस्त व्यक्ति होगा, तांदेन से श्वास का बिंदु उतना ही दूर हटता जाता है।
तो जितने ऊपर से आप श्वास लेते हैं, उतने ही तनाव से भरे होंगे। और जितने नीचे से श्वास लेते हैं, उतने ही विश्राम को उपलब्ध होंगे। और अगर तांदेन से श्वास चलती हो, तो आपके जीवन में तनाव बिलकुल नहीं होगा। बच्चे के जीवन में तनाव न होने का जो व्यवस्थागत कारण है, वह तांदेन से श्वास का चलना है। जब आप भी कभी विश्राम में होते हैं, तो अचानक खयाल करना, आपकी श्वास तांदेन से चलती होगी। और जब आप तनाव से भरे हों, बहुत मन उदास, चिंतित, परेशान हो, व्यथित हो, बेचैनी में हो, तब आप खयाल करना, तो श्वास बहुत ऊपर से