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ताओ उपनिषद भाग २
हर कालेज, हर यूनिवर्सिटी, अनुशासनहीनता से, इनडिसिप्लिन से भर गई है। लेकिन कोई भी यह नहीं सोचता कि इसकी जिम्मेवारी कहां है?
तो मैंने उनसे कहा कि तुम्हारी यह चिंता कि विद्यार्थी तुम्हें आदर नहीं देते, बड़ी खतरनाक है। इस चिंता का एक ही परिणाम हो सकता है कि विद्यार्थी तुम्हें और भी आदर न दें। तुमसे कहा किसने कि गुरु को आदर मिलना चाहिए? असल में, पुरानी परिभाषा बिलकुल और है। वह परिभाषा यह है कि जिसको आदर मिलता है, वह गुरु है। गुरु को आदर मिलना चाहिए, इसका कोई संबंध ही नहीं है। गुरु को आदर का सवाल ही नहीं है। जिसको आदर मिलता है, वह गुरु है। नहीं मिलता, वह गुरु नहीं है। बात समाप्त हो गई। अगर तुम्हें विद्यार्थी आदर नहीं देते, तुम गुरु नहीं हो। और हो भी नहीं। व्यर्थ मोह को क्यों खींचे चले जाते हो?
बाप वह है, जिसकी आज्ञा मानी जाती है। अगर बेटा आज्ञा नहीं मानता, तो समझना चाहिए आप बाप नहीं हैं। सिर्फ बायोलाजिकली बाप हैं, और कुछ नहीं हैं। तो बायोलाजिकली होना कोई इतनी महत्ता की बात भी नहीं है। एक इंजेक्शन से, एक इंजेक्शन भी बायोलाजिकली पिता हो सकता है। तो बायोलाजिकली पिता होने की कोई महत्ता भी ऐसी नहीं है कि आपकी आज्ञा मानी जाए।
पिता होना एक आध्यात्मिकता है। एक बात ही अलग है। बच्चे तो बहुत लोग पैदा करते हैं, पिता मुश्किल से कभी कोई हो पाता है। और बच्चे करना कोई गुण है? मक्खियां-मच्छर इतने करते हैं कि उसमें कोई गुणवत्ता समझ में नहीं आती। आपका कोई कृत्य है, ऐसा भी कुछ समझ में नहीं आता। . लेकिन पिता होना एक बड़ी बात है। और ध्यान रहे, मां से बड़ी बात है। क्योंकि मां नैसर्गिक घटना है, पिता एक उपलब्धि है। मां तो प्राकृतिक घटना है; लेकिन पिता नहीं है प्राकृतिक घटना। इसलिए जब कोई व्यक्ति पिता हो पाता है, तो मां बिलकुल फीकी पड़ जाती है। हालांकि पिता होना बहुत मुश्किल है। क्योंकि पिता होने के लिए कोई नैसर्गिक इंतजाम नहीं है। पशुओं को तो पिता का कोई पता नहीं होता। और आपको भी पता होता है, तो कितना इंतजाम करना पड़ा वह पता रखने के लिए! शादी करो, पहरे रखो, कानून बनाओ, सारा इंतजाम करो, फिर भी पिता पक्के भरोसे में नहीं होता कि मेरे बेटे का पिता मैं ही हूं। यह पक्का भरोसा हो भी नहीं सकता। इस भरोसे के लिए सती और पतिव्रता और न मालूम कितने सिद्धांत और कितनी नैतिकता—सिर्फ एक बात को पक्का रखने के लिए कि मेरे बेटे का बाप मैं ही हूं। सारा इतना इंतजाम, इतनी घबड़ाहट, इतना डर, इतना भय! और जीवन एक संस्था जैसा बन जाता है सिर्फ इस इंतजाम के लिए कि मेरी वसीयत, मेरे धन का जो मालिक हो, वह पक्के रूप से मेरा ही बेटा हो। बस इतने इंतजाम के लिए कितना कष्ट उठाया जाता है और कितनी कलह झेली जाती है!
लेकिन पिता कोई नैसर्गिक घटना नहीं है। अगर बच्चे कल समाज पालने लगे और इंतजाम करने लगे, तो पिता की संस्था खो जाएगी। पिता की संस्था सदा नहीं थी, बहुत बाद में आई है। पर मां नैसर्गिक घटना है। पिता होना एक आध्यात्मिक बात है। इसलिए हमने परमात्मा को पिता कहना पसंद किया, बजाय मां कहने के। क्योंकि मां होना एक नैसर्गिक घटना है; और पिता होना एक आध्यात्मिक उपलब्धि है। पिता होने का अर्थ ही इतना है कि बेटा उसकी मानता है। इस मानने का कहीं पता भी नहीं चलता। इस मनवाने की कहीं कोई चेष्टा भी नहीं है। यह तो पिता की गरिमा ही...।।
पुराना नियम था कि जिस दिन बेटे का विवाह हो जाए, उस दिन से पिता ब्रह्मचारी हो जाए। हो ही जाना चाहिए। जिस घर में बाप भी बेटे पैदा कर रहा हो और बेटा भी बेटा पैदा कर रहा हो, उस घर में बाप का कोई आदर हो नहीं सकता है। ज्यादा से ज्यादा मित्रता हो सकती है थोड़ी-बहुत, कंधे पर हाथ रखा जा सकता है, आदर नहीं हो सकता। क्योंकि बेटा जो मूढ़ता कर रहा है, बाप भी वही मूढ़ता में अभी पड़े हुए हैं, तो बाप होने का हक खो देते हैं।
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