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ताओ उपनिषद भाग २
वह विराट है ऊर्जा; वह तुम्हारी बीमारियों को भी बहा ले जाएगी, तुम बीच में मत आओ। वह तुम्हारी बुराई को भी बहा ले जाएगी, तुम बीच में मत आओ। तुम ही उपद्रव हो। तुम बीच में आओ ही मत। तुम इस धारा के साथ सहज एक हो जाओ। यह धारा जो चाहे और जहां ले जाए और जो करवाए! बीमारी आए, तो बीमारी से राजी हो जाओ। प्रकृति को छोड़ दो, जो उसे करना हो।
अगर ऐसा हम समझें, तो लाओत्से ही अकेला प्रकृतिवादी है। अगर ठीक से कहें, तो वह जो कह रहा है, वही सिर्फ नेचरोपैथी है। पेट पर पट्टी बांधे हैं मिट्टी की, या कपड़ा बांधे हुए हैं, या टब में बैठे हुए हैं, या एनिमा ले रहे हैं-कोई भी नेचरोपैथी नहीं है। क्योंकि क्या संबंध है नेचर का एनिमा से?
लाओत्से कहता है, बिलकुल छोड़ दो प्रकृति पर। जो प्रकृति करना चाहे, होने दो। तुम सिर्फ राजी रहो बहने को। लाओत्से कहता है, तैरो मत, बहो। छोड़ दो नदी पर, जहां ले जाए। और तुम मत कहो कि मेरी मंजिल कौन सी है; नदी पर छोड़ दो। जहां तू पहुंचा दे, वही मेरी मंजिल है। लाओत्से कहता है, ऐसी अवस्था में ही धर्म के फूल खिलते हैं। _ 'और जब ज्ञान और होशियारी का जन्म हुआ, तब पाखंड भी अपनी पूरी तीव्रता में सक्रिय हो गया। जब संबंधों के बीच शांति असंभव हो गई, तब दयालु माता-पिता और आज्ञाकारी पुत्रों की प्रशंसा शुरू हुई।'
जब हम कहते हैं कि फलां का बेटा बड़ा आज्ञाकारी है, तो उसका मतलब क्या होता है? उसका मतलब है कि वह अपवाद है, एक्सेप्शन है।
लाओत्से कहता है, बेटा होने का अर्थ ही आज्ञाकारी होना होना चाहिए। बेटा आज्ञाकारी, यह पुनरुक्ति है, रिपीटीशन है। अगर हम कहते हैं कि फलां मां कितनी दयालु है, तो उसका मतलब यह हुआ कि मां और दया दो अलग चीजें हैं ? कि कभी मां के साथ जुड़ती है और कभी नहीं जुड़ती दया! लेकिन मां होना ही दया है। इसलिए यह कहना कि फलां मां दयालु है, इस बात की खबर है कि अब माताएं भी दयालु नहीं होती हैं। यह अपवाद है। तभी तो हम इसकी प्रशंसा करते हैं, कहते हैं, फलां का बेटा कितना आज्ञाकारी है। इसका मतलब कि अब बेटे आज्ञाकारी नहीं होते; अब पिता दयालु नहीं होते; अब मां ममता से भरी नहीं होती।
लाओत्से कहता है, ये पतन के लक्षण हैं। जब किसी मां की प्रशंसा करनी पड़े कि वह प्रेम से भरी है, यह पतन का लक्षण है। जब पिता को कहना पड़े कि वह दयालु है, यह पतन का लक्षण है। और जब बेटे के लिए आज्ञाकारी होना प्रशंसा का कारण हो जाए, तो समझना चाहिए बीमारी आखिरी सीमा पर पहुंच गई।
यह लाओत्से बिलकुल उलटा आदमी मालूम होता है। लेकिन यह भी हो सकता है कि हम सब उलटे हों और वह सीधा खड़ा है, इसलिए हमें उलटा मालूम पड़ता है। बात तो उसकी ठीक लगती है। मां के प्रेम की क्या बात करनी है? मां के होने का अर्थ ही प्रेम होता है। यह चर्चा ही नहीं उठानी चाहिए। मां प्रेमी है, यह बात ही बेकार है। बेटा आज्ञाकारी है, यह व्यर्थ पुनरुक्ति है। बेटा होने का फिर अर्थ ही न रहा। बेटे होने का अर्थ ही क्या है? बेटे होने का अर्थ है कि वह मां और पिता का एक्सटेंशन है, उनका फैलाव है, उनका विस्तार है। उनका ही हाथ है, उनका ही भविष्य है। इसमें आज्ञा और न आज्ञा की बात कहां है?
मैं नहीं कहता कि मेरा हाथ मेरा बड़ा आज्ञाकारी है। लेकिन अगर किसी दिन दुनिया में ऐसी कोई बात चले कि फलां आदमी का हाथ बड़ा आज्ञाकारी है, तो समझ लेना कि दुनिया में सभी लोग पैरालाइज्ड हो गए हैं। क्या मतलब होगा इसका कि अखबार में फोटो छपे कि इस आदमी का हाथ बिलकुल आज्ञाकारी है! जब पानी उठाना चाहता है, पानी उठा लेता है; जो भी करना हो, करो; इसका हाथ बड़ा आज्ञाकारी है। तो उसका मतलब है कि पैरालिसिस जीवन का सहज हिस्सा हो गई है; सब लोग पैरालाइज्ड हैं; अब हाथ भी अपनी नहीं मानते।
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