________________
ताओ के पतन पर सिद्धांतों का जन्म
325
तो जिन्होंने जीवन को बांध की भाषा में देखा है, जैसे कनफ्यूशियस ने, तो उसने कहा, सब स्वच्छंद हो जाएगा। कोई किसी की मानेगा नहीं, कोई किसी की सुनेगा नहीं । प्रजा राजा की नहीं सुनेगी; बेटे पिता की नहीं सुनेंगे; पत्नियां पतियों की नहीं मानेंगी; नौकर मालिक की नहीं सुनेंगे।
लाओत्से ने कहा कि तुम जितनी कोशिश करोगे कि बेटे पिता की सुनें, बेटे पिता के उतने ही विपरीत होते चले जाएंगे। और लाओत्से सही सिद्ध हुआ है। पांच हजार साल से हम कोशिश कर रहे हैं कि बेटे बाप की सुनें । और परिणाम केवल एक हुआ कि बेटे और बाप के बीच की खाई बड़ी होती चली गई। कोशिश हमारी यही रही है कि नौकर मालिक की सुनें। और परिणाम यह हुआ है कि नौकर ने कहा कि तुम मालिक हो, यह तुमसे कहा किसने? भ्रांति में हो। ज्यादा से ज्यादा हम पार्टनर्स हैं, साझेदार हैं। प्रजा राजा की माने, इसका कुल परिणाम इतना हुआ कि आज जमीन पर राजा नहीं हैं।
यह बहुत हैरानी की बात है। क्योंकि पांच हजार साल की सतत चेष्टा का यह फल कि प्रजा राजा की माने, परिणाम यह हुआ कि राजा कहीं भी नहीं हैं । और अगर हैं भी, तो उनकी हैसियत नौकरों की हो गई है । आज इंगलैंड की रानी की हैसियत एक नौकर से ज्यादा नहीं है; क्योंकि तनख्वाह भी पार्लियामेंट तय करती है। कम भी कर सकती है, बढ़ा भी सकती है, बंद भी कर सकती है। कोई मूल्य नहीं रह गया । किस वजह से ?
कनफ्यूशियस की वजह से । लाओत्से ने उसी दिन कनफ्यूशियस को कहा था कि तुम बर्बाद कर दोगे दुनिया को। तुम नियम थोपोगे, अनियम पैदा हो जाएगा। तुम अनुशासन चाहोगे, अनुशासनहीनता जन्मेगी। लाओत्से ने कहा था, तुम अच्छा करने की कोशिश ही छोड़ दो। अगर तुम अच्छा करने की कोशिश छोड़ दो, तो दुनिया में बुरा होना बंद हो सकता है।
मगर यह बड़ा कठिन है; और बड़ा मुश्किल है; बड़ा मुश्किल है। यह मान कर चलना बड़ा मुश्किल है कि दवा मत दो, तो बीमारी अच्छी हो सकती है।
लेकिन अभी पश्चिम के बहुत से अस्पतालों में प्रयोग चलते हैं। और लाओत्से सही निकलता है-न मालूम कितने-कितने कोनों से। एक आदमी को एलोपैथिक दवा दें, एक आदमी को होमियोपैथिक दवा दें। एक सी बीमारी दोनों की है। एक को नेचरोपैथी करवा दें, एक को किसी बाबा की भभूत दिलवा दें। परिणाम परसेंटेज में बराबर निकलते हैं। सत्तर परसेंट लोग हर हालत में ठीक होते हैं—चाहे एलोपैथी हो, चाहे नेचरोपैथी हो, चाहे होमियोपैथी हो, चाहे बायोकेमी हो, कुछ भी हो। चाहे बाबा की भभूत हो, और चाहे कुछ भी हो, सत्तर परसेंट मरीज तो तय किए बैठे हैं, ठीक होंगे ही।
P
अभी इस पर बहुत प्रयोग चले, तो फिर यह सोचा कि कुछ होमियोपैथी की दवा भी करती ही होगी, कुछ बायोकेमी की दवा भी करती ही होगी, कुछ नेचरोपैथी की विधियां भी करती ही होंगी। तो फिर शुद्ध पानी मरीजों को देकर देखा गया न मालूम कितने अस्पतालों में। दस मरीज हैं एक ही बीमारी के पांच को दवा दी जा रही है, पांच को पानी दिया जा रहा है। पानी भी उतना ही काम करता है, जितनी दवा काम करती है।
अब तो वे कहते हैं कि अगर सर्दी-जुकाम है, दवा लो तो सात दिन में ठीक हो जाओगे, दवा न लो तो एक सप्ताह में ठीक हो जाओगे। दवा लो सात दिन में ठीक हो जाओगे। दवा न लो, एक सप्ताह में ठीक हो जाओगे । क्या होता होगा आदमी को ? अभी तक साफ नहीं है।
लाओत्से कहता है, प्रकृति स्वयं ही अपना सुधार कर लेती है। तुम सिर्फ प्रकृति पर छोड़ो। तुम कृपा करो और बीच में दखलंदाजी मत करो। तुम ही उपद्रव हो। तुम जरा दूर रहो और प्रकृति पर छोड़ दो। प्रकृति अपना उपाय कर लेती है। जिसने तुम्हें पैदा किया, जिसने तुम्हें जीवन दिया, जिससे तुम श्वासें ले रहे हो, जिसके कारण तुम चेतन हो,