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________________ ताओ उपनिषद भाग २ 322 इस संबंध में बाइबिल की कथा स्मरणीय है। और ईसाइयों की कथाओं में अगर कोई कथा मूल्यवान है, तो बस एक यही कि अदम और ईव को ईश्वर 'बगीचे से बाहर कर दिया स्वर्ग के, क्योंकि उन्होंने ज्ञान का फल चख लिया। ईश्वर ने जब अदम और ईव को बनाया, तो उसने कहा कि यह सारा बगीचा तुम्हारा है, सिर्फ एक वृक्ष को छोड़ कर - दि ट्री ऑफ नालेज । ज्ञान के वृक्ष को छोड़ कर सारा बगीचा तुम्हारा है। तुम सब फल चखना, बस इस ज्ञान के फल को मत चखना । शायद इसी कारण अदम और ईव ज्ञान के फल के लिए बहुत उत्सुक हो गए। और शायद इसी कारण शैतान ईव को समझाने में सफल हो गया। शैतान ने ईव को समझाया कि इस फल का वर्जन इसीलिए किया गया है कि जो भी इसके फल को खा लेगा, वह ईश्वर जैसा हो जाएगा, देवताओं जैसा हो जाएगा। ज्ञान आदमी को देवता बना देता है । और ईश्वर ने तुम्हें सब छुट्टी दे दी है, सिर्फ इससे रोका है; इसीलिए कि तुम देवताओं जैसे न हो जाओ। जो जान लेगा, वह देवता जैसा हो जाएगा। ईव को उसकी बात जंची। क्योंकि अज्ञान ही तो पतन है; और ज्ञान श्रेष्ठता है। तो ज्ञान का फल वर्जित किया ईश्वर ने इसका मतलब साफ है कि ईश्वर हमें अपने जैसा नहीं होने देना चाहता। शैतान ने भी ईव को पहले समझाया; क्योंकि किसी पति को सीधा समझाने की कोई जरूरत नहीं है। पत्नी राजी है, तो पति बेचारा राजी ही है। और पत्नी को राजी कर लेना आसान है, क्योंकि ईर्ष्या जगानी आसान है। और शैतान ने ईर्ष्या जगा दी। उसने कहा कि तुम देवताओं जैसे हो जाओगे। आदम ने बहुत कहा कि जब ईश्वर ने मना किया है, तो हम क्यों झंझट में पड़ें? लेकिन जब पत्नी और परमात्मा के बीच चुनना हो, तो पत्नी को ही चुनना पड़ता है। ईव मानने को राजी नहीं थी । और जितना अदम ने रोका, उतना ईव का आकर्षण बढ़ता चला गया। और वह फल चखना पड़ा। उस फल के चखते ही उन्हें स्वर्ग के बगीचे के बाहर कर दिया गया। ज्ञान आदमी के पतन का कारण बना, बाइबिल में। यह बड़ी हैरानी की बात है। इससे लाओत्से का मेल है। लाओत्से भी यही कहता है कि ज्ञान पतन का कारण है आदमी का । और तब से अदम भटक रहा है, और उस अदमे के बेटे आदमी भटक रहे हैं। और तब तक वापस नहीं लौट सकते, जब तक वे ज्ञान को तिलांजलि न दे दें। स्वर्ग का द्वार उनके लिए फिर से खुल सकता है, अगर वे ज्ञान को तिलांजलि दे दें। एक मजे की बात है कि ज्ञान के तिरोहित होते ही अज्ञान भी तिरोहित हो जाता है। सच बात तो यह है कि अज्ञान है, यह भी ज्ञान के ही कारण पता चलता है। इसलिए जितना ज्ञान बढ़ता है, उतना अज्ञान का बोध बढ़ता है। अगर आप जमीन पर बिलकुल अकेले हों, तो आप अज्ञानी होंगे कि ज्ञानी ? क्या होंगे आप? आप सिर्फ होंगे। क्योंकि कंपेरिजन की तुलना की कोई जगह न होगी। किससे तौलेंगे कि आप ज्ञानी हैं कि अज्ञानी ? अगर आप अकेले हों जमीन पर, तो चरित्रवान होंगे कि चरित्रहीन ? किससे तौलेंगे ? साधु होंगे कि असाधु ? कैसे जानेंगे? कैसे तौलेंगे ? क्या होगा मापदंड ? लाओत्से कहता है कि ताओ की स्थिति वह सरल स्थिति है, जैसे हर आदमी जमीन पर अकेला हो । न कोई तौलने का उपाय है; न कुछ बुरा न कुछ भला है; न कुछ ज्ञान है, न कुछ अज्ञान है; न कुछ साधुता है, न कुछ असाधुता है। सिर्फ होना मात्र है— जस्ट बीइंग । बाइबिल की इस कथा में एक और मजेदार बात है कि जैसे ही फल को चखा ईव ने, उसने जैल्दी से पत्ते उठा कर अपने शरीर को ढंका। अब तक वह नग्न थी । ज्ञान के साथ ही पाप का बोध आ गया। ज्ञान के साथ ही, कुछ छिपाना है, इसका खयाल आ गया। ज्ञान के साथ ही पूरे शरीर की स्वीकृति न रही, कुछ अस्वीकृत हो गया। तब तक अदम और ईव नंगे थे। तब तक वे छोटे बच्चों की तरह निर्दोष थे। ज्ञान के साथ ही दोष शुरू हो गया।
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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