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________________ ताओ के पतन पर सिद्धांतों का जन्म लाओत्से कहता है कि ज्ञान जब तक न खो जाए, तब तक इनोसेंस, निर्दोषिता उपलब्ध नहीं होती। इसलिए बहुत मजे की बात है कि परम ज्ञान को वे ही लोग उपलब्ध होते हैं, जो ज्ञान को भी छोड़ने में समर्थ हो जाते हैं। तब वे निर्दोष हो जाते हैं, तब वे सरल हो जाते हैं। जीसस ने कहा है कि वे ही मेरे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे. जो इन छोटे बच्चों की तरह निर्दोष हैं। . पता नहीं, छोटे बच्चे निर्दोष हैं या नहीं। क्योंकि फ्रायड नहीं मानता कि निर्दोष हैं। फ्रायड तो मानता है कि सब दोष उनमें मौजूद हैं; सिर्फ प्रकट होने की देर है। सब उपद्रव मौजूद हैं। आपके सहारे की जरा जरूरत है; सब प्रकट होने लगेंगे। थोड़ा शिक्षित करिए, थोड़ा बड़ा करिए, खिलाइए-पिलाइए, तैयार करिए; सब बीमारियां तैयार हैं, वे प्रकट होने लगेंगी। लेकिन जीसस का मतलब और है। जीसस का मतलब यह है कि जहां बोध नहीं है, अबोध! अबोध ही निर्दोषिता है। जैसे ही ज्ञान आया ईव को और अदम को, उन्होंने ढंक लिया अपने को। वे अपने ही प्रति निंदा से भर गए। शर्म मालूम पड़ने लगी। शर्म का अर्थ ही है कि आदमी को दोष का बोध शुरू हो गया। स्त्रियों में हम शर्म को बड़ा गुण मानते हैं; वह गुण है नहीं। लज्जा को हम गुण मानते हैं; वह गुण है नहीं। क्योंकि लज्जा का मतलब यह होता है कि स्त्री को दोष का बोध हो गया। कुछ गलत है, इसका पता चल गया। बिना अनुभव के पता कैसे चलेगा? किसी न किसी रूप में गलत भीतर प्रवेश कर गया है। निर्दोष व्यक्तित्व में लज्जा भी नहीं है, शर्म भी नहीं है, बेशर्मी भी नहीं है। क्योंकि बेशर्मी के लिए पहले शर्म आ जानी जरूरी है। निर्दोष व्यक्तित्व में लज्जा भी नहीं है, निर्लज्जता भी नहीं है। क्योंकि निर्लज्जता बाई-प्रोडक्ट है; लज्जा के बाद ही! किसी में लज्जा आ जाए और फिर वह लज्जा की फिक्र न करे और जीता चला जाए, तो निर्लज्ज होता है।। लाओत्से कहता है कि एक ऐसी सरल स्थिति भी है जीवन की, जहां अभी द्वंद्व का पता ही नहीं है कि क्या है काला और क्या है सफेद। वह कहता है, वही परम धर्म है। उसके नीचे जितनी बातें धर्म की कही जाती हैं, वे सब पतन की हैं। कनफ्यूशियस मिलने आया है लाओत्से को। तो कनफ्यूशियस ठीक उलटा आदमी है। वह ठीक अरस्तू से मेल खाता है, हमसे मेल खाता है। कनफ्यूशियस कहता है कि लोगों को सिखाओ कि अच्छाई क्या है। कनफ्यूशियस सदधर्म, नीति, नियम का पक्का पाबंद है। इंच-इंच जीवन को नियम से बांध कर, अनुशासन से बांध कर चलना चाहिए। उठना कैसे, बैठना कैसे, बोलना कैसे, उस सब की उसकी व्यवस्था है। इस जगत में उससे ज्यादा बड़ा अनुशासनविद और अनुशासनप्रेमी नहीं हुआ है। हर चीज का नियम उसने बना दिया है। जीना कैसे, मरना कैसे, सब का नियम है। कनफ्यूशियस मर रहा है। उसका शिष्य उससे मिलने आया है। तो कनफ्यूशियस उससे पूछता है। क्योंकि कई वर्षों बाद, बीस वर्ष बाद शिष्य वापस आया है मरते गुरु के पास। मरता गुरु और कुछ नहीं पूछता, मरता गुरु यह पूछता है कि त जिस बैलगाड़ी में बैठ कर आया है, गांव के बाहर उससे नीचे उतर गया था या गांव के भीतर भी बैठ कर आया? उसके शिष्य ने कहा, आपका शिष्य होकर ऐसी भूल कैसे कर सकता हूं? जिस गांव में मैं पैदा हुआ, उसमें बैलगाड़ी में बैठ कर कैसे आ सकता हूं? गांव के बाहर उतर गया था। कनफ्यूशियस ने कहा, तब ठीक है; मैं शांति से मर सकता हूं। ऐसा नियमविद! हर चीज को नियम, डिसिप्लिन, कानून, उसमें बांधना। 323
SR No.002372
Book TitleTao Upnishad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1995
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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