________________
ताओ के पतब पर सिद्धांतों का जठम
पीड़ा का अनुभव है, यह बढ़ गया आपका। जब तक एयरकंडीशनिंग नहीं थी, तब तक दुनिया में धूप का ऐसा कोई अनुभव नहीं था।
इसलिए अब रूस में वे विचार करते हैं कि हमें पूरे नगर को एयरकंडीशन कर लेना चाहिए। लेकिन जिस दिन आप पूरे नगर को एयरकंडीशन कर लेंगे और बच्चे एयरकंडीशनिंग में ही पैदा होंगे और बूढ़े एयरकंडीशनिंग में ही मरेंगे, उस दिन आप समझना कि मनुष्य को अंडरग्राउंड चले जाना पड़ेगा। ऐसी कथाएं हैं कि कभी-कभी सभ्यताएं इस ऊंचाई पर पहले भी पहुंच चुकी हैं। और जो भी सभ्यता आखिरी ऊंचाई पर पहुंची, उसको अंडरग्राउंड, भूमिगत जाना पड़ा है।
दक्षिण अमरीका में एक झील है, टिटीकाका। बहुत अनूठी झील है; और वैज्ञानिक बहुत परेशान रहे हैं। क्योंकि झील में एक नदी गिरती है। करोड़ों गैलन पानी रोज उस झील में गिरता है। और झील से बाहर निकलने का कोई उपाय नहीं है पानी का। लेकिन झील में कभी इंच भर पानी बढ़ता नहीं। तो वैज्ञानिक बहुत परेशान हुए स्वभावतः। यह सारा पानी जाता कहां है? यह टिटीकाका मिस्टीरियस झील है सारी जमीन पर। इसका पानी जाता कहां है? इतना पानी प्रति सेकेंड गिर रहा है, और उसमें कभी इंच भर बढ़ती नहीं होती! कभी बढ़ती नहीं हुई सैकड़ों वर्षों के रिकार्ड में। पानी उसका उतना ही रहता है।
कुछ रहस्यवादियों का खयाल है कि टिटीकाका झील के नीचे कभी किसी पुरानी इन्का सभ्यता की बस्ती थी। और यह टिटीकाका झील उस बस्ती में पानी पहुंचाने का उपाय करती थी। वह बस्ती तो नष्ट हो गई है। लेकिन अंडरग्राउंड जो पानी को सोखने की व्यवस्था थी, वह जारी है। तो पानी ऊपर से पहुंचता जाता है और वह नीचे झील पीती चली जाती है। उस झील के नीचे एक बस्ती थी, ऐसा खयाल है। और अब वैज्ञानिक भी थोड़ा इससे राजी होते चले जाते हैं। इस पर काफी खोज चलती है कि उस बस्ती का कोई पता चल सके।
ऐसा खयाल है कि जब भी कोई सभ्यता पूरी विकसित होती है, तो वह अंडरग्राउंड हो जाती है। हम जो मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में सात-सात पते देखते हैं नगरों की, वह जरूरी नहीं है कि विध्वंस के कारण, भूकंप के कारण जमीन के भीतर चली गई हों। बहुत संभावना यह है कि सभ्यता स्वयं भूमिगत हो गई हो। क्योंकि एक-दो पर्त नहीं हैं, मोहनजोदड़ो में सात पर्ते हैं।
तो अब तक वैज्ञानिक कहते थे, भूगर्भशास्त्री कहते थे, स्थापत्यविद कहते थे कि सात बार मोहनजोदड़ो बसा और सात बार भूकंप के कारण भूमिगत हो गया। यह बात ठीक नहीं मालूम पड़ती है। और एक के बाद एक सात सभ्यताएं नगर की जमीन में डूब गईं। ज्यादा ठीक यह बात मालूम पड़ती है कि सभ्यता उस शिखर पर पहुंच गई, जहां भूमिगत हो जाना अनिवार्य हो गया। क्योंकि भूमि के बाहर की कोई भी व्यवस्था को सहने की क्षमता आदमियों में न रही।
दो सौ साल के भीतर अगर हम एयरकंडीशनिंग को बस्तियों पर फैला देते हैं, तो आदमी को जमीन के भीतर जाना पड़ेगा। क्योंकि फिर सूरज की रोशनी में बाहर निकलना ही मौत का कारण हो जाएगा। अगर बच्चा एयरकंडीशनिंग में ही पैदा हो और बड़ा हो, तो सरज की रोशनी में निकलना ही मृत्यु हो जाएगी। सूरज अब तक जीवन रहा है; कल वह मौत भी हो सकता है।
। जैसे-जैसे हम सुरक्षित होते हैं, वैसे-वैसे असुरक्षित हो जाते हैं। जैसे-जैसे हम इंतजाम करते हैं बचने का, वैसे-वैसे हमारे द्वार खतरों के लिए खुल जाते हैं।
लाओत्से कहता है कि जब ज्ञान का जन्म होगा, तो पाखंड पैदा होगा, हिपोक्रेसी पैदा होगी, बेईमानी पैदा होगी, धोखा पैदा होगा। लोग प्रवंचक हो जाएंगे। जानने वाला आदमी ईमानदार हो, यह बड़ा मुश्किल मालूम पड़ता है।
321