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ताओ उपनिषद भाग २
असल में, जैसे ही दवा बढ़ती है, वैसे ही आपके बीमार होने की क्षमता बढ़ जाती है। भरोसा अपने पर नहीं रह जाता, दवा पर हो जाता है। बीमारी से फिर आपको नहीं लड़ना है, दवा को लड़ना है। आप बाहर हो गए। और जब दवा बीमारी से लड़ कर बीमारी को दबा देती है, तब भी आपका अपना रेसिस्टेंस, अपना प्रतिरोध नहीं बढ़ता। आपकी अपनी शक्ति नहीं बढ़ती। बल्कि जितना ही आप दवा का उपयोग करते जाते हैं, उतना ही बीमारी से आपकी लड़ने की क्षमता रोज कम होती चली जाती है। दवा बीमारी से लड़ती है, आप बीमारी से नहीं लड़ते। आप रोज कमजोर होते जाते हैं। आप जितने कमजोर होते हैं, उतनी और भी बड़ी मात्रा की दवा जरूरी हो जाती है। जितनी बड़ी मात्रा की दवा जरूरी हो जाती है, आपकी कमजोरी की खबर देती है। उतनी बड़ी बीमारी आपके द्वार पर खड़ी हो जाती है। यह सिलसिला जारी रहता है। यह लड़ाई दवा और बीमारी के बीच है; आप इसके बाहर हैं। आप सिर्फ क्षेत्र हैं, कुरुक्षेत्र, वहां कौरव और पांडव लड़ते हैं। वहां बीमारियों के जर्स और दवाइयों के जर्स लड़ते हैं। आप कुरुक्षेत्र हैं। आप पिटते हैं दोनों से। बीमारियां मारती हैं आपको; कुछ बचा-खुचा होता है, दवाइयां मारती हैं आपको। लेकिन दवा इतना ही करती है कि मरने नहीं देती; बीमारी के लिए आपको जिंदा रखती है।
दवाओं और बीमारियों के बीच कहीं कोई अंतर-संबंध है।
अगर हम लाओत्से से पूछे, तो लाओत्से कहेगा कि जिस दिन दुनिया में कोई दवा न होगी, उसी दिन बीमारी मिट सकती हैं। लेकिन यह बात हमारी समझ में न आएगी। क्योंकि लाओत्से का तर्क ही कुछ और है। वह यह कहता है, कोई दवा न हो, तो बीमारी से तुम्हें लड़ना पड़ेगा। तुम्हारी शक्ति जगेगी। दवा का भरोसा खुद पर भरोसा कम करवाता जाता है। हम देख सकते हैं कि किस भांति हमारे शरीर दवाओं से भर गए हैं। लेकिन कोई उपाय नहीं है। क्योंकि पूरा तर्क...।।
इसे हम ऐसा समझें। जितनी हम सुरक्षा में हो जाते हैं, उतने असुरक्षित हो जाते हैं। जितने असुरक्षित होते हैं, उतने सुरक्षित होते हैं। क्या मतलब हुआ इस पहेली का? इस पहेली का यह मतलब हुआ, जितने आप सुरक्षित होते हैं, उतने कमजोर हो जाते हैं।
हम एक एयरकंडीशंड कमरे में बैठे हुए हैं। अपने एयरकंडीशंड कमरे की खिड़की से आप बाहर एक मजदूर को सड़क पर से धूप में निकलते देखते हैं। आप सोचते हैं, बेचारा कितनी धूप झेल रहा है ! लेकिन आप नहीं जानते कि हो सकता है, उसे धूप का पता भी न चल रहा हो। यह धूप का खयाल आपका है। और यह बात सच है कि आप अगर इस मजदूर की जगह चलेंगे, तो भयंकर धूप होगी। लेकिन एक ही सड़क पर एक सी धूप नहीं होती, क्योंकि अलग-अलग आदमी अलग-अलग धूप का अनुभव करते हैं। धूप सूरज पर ही निर्भर नहीं है, आप पर भी निर्भर है। इसलिए जब आप सड़क पर चल कर पसीने से तरबतर हो जाएंगे, तो आप सोचते हैं, बेचारा मजदूर! यह सिर्फ आप ही बेचारे हैं; बेचारा मजदूर नहीं। मजदूर को, हो सकता है, धूप का पता ही न चल रहा हो। क्योंकि धूप के पता चलने के लिए एयरकंडीशनिंग पहले जरूरी है। वह अनिवार्य है।
इसका मतलब यह हुआ कि जितनी एयरकंडीशनिंग बढ़ेगी, उतनी धूप बढ़ेगी। और जितनी दुनिया को हम शीतल कर लेंगे, उतनी दुनिया गरम हो जाएगी। यह विपरीत दिखाई पड़ता है। लेकिन जोड़ हैं भीतर। गहरे जोड़ हैं। जितनी देर आप एयरकंडीशनिंग में हैं, उतनी आपके शरीर की अपनी क्षमता धूप से लड़ने की कम होती जा रही है। स्वभावतः जिस चीज की जरूरत नहीं है, वह क्षमता कम हो जाएगी। आपका शरीर जो काम करता, वह एयरकंडीशनिंग की मशीन कर रही है। तो जब आप अचानक धूप में खड़े हो जाएंगे, आपका शरीर एकदम असुरक्षित हो जाएगा; वह नहीं सह पाएगा। मशीन सह रही थी धूप आपके लिए; आप नहीं संह रहे थे। तो आपकी अपनी सहने की क्षमता तो कम हो ही जाएगी। धूप में जब आप निकलेंगे, तो भयंकर पीड़ा अनुभव होगी। यह जो
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