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वन की अत्यंत कठिन पहेली के संबंध में यह सूत्र है। लाओत्से, जिन्हें हम बड़े नैतिक सिद्धांत कहते हैं, उनके विपरीत है, उनके विरोध में है। क्योंकि लाओत्से का मौलिक सिद्धांत यही है कि जीवन में एक गहरा संतुलन प्रतिपल स्थापित होता रहता है। अगर हम साधुता पर जोर देंगे, तो असाधता बढ़ेगी। अगर हम नैतिकता पर बल देंगे, तो अनैतिकता भी उसी मात्रा में विकसित होगी। अगर हम चाहेंगे कि लोग अच्छे हों, तो हम उसी मात्रा में बुरे लोगों को भी पैदा करने का कारण बनेंगे। अगर हम जीवन को समझने की कोशिश करें, तो पहली बात तो यह खयाल में आएगी कि जीवन संतुलन के बिना असंभव है। और यह
संतुलन सर्व-व्यापक है-सभी आयामों में, सभी दिशाओं में। अभी वैज्ञानिक एक अनूठे खयाल पर पहुंचे हैं। हमें चिंता से भरता है; लेकिन लाओत्से को चिंता से नहीं भरेगा। आज से सौ वर्ष पहले फ्रांस में विनेट नाम के विचारक और मनोवैज्ञानिक ने मनुष्य की बुद्धि को नापने का पहला प्रयोग किया। इन सौ वर्षों में विनेट की विधियां काफी विकसित हो गई हैं। और अब हम मनुष्य का बुद्धि-माप, आई. क्यू., इंटेलीजेंस कोशिएंट जान सकते हैं। एक आदमी के पास कितनी बुद्धि की मात्रा है, वह जानी जा सकती है।
यह जो बुद्धि की मात्रा है, इसके निरंतर अनेक-अनेक प्रयोगों ने, जिसकी कल्पना भी नहीं थी, उस दृष्टि को दिया। और वह यह है कि अगर सौ व्यक्तियों में एक व्यक्ति प्रतिभाशाली होता है, जीनियस होता है, तो एक व्यक्ति ईडियट होता है, महामूढ़ होता है। अगर क्स व्यक्ति तीक्ष्ण बुद्धि के होते हैं, तो दस व्यक्ति मंद बुद्धि के होते हैं। अगर हम सौ व्यक्तियों को दो हिस्सों में बांट दें, तो जो ऊपर पचास लोग हैं, ठीक उनको संतुलित करते हुए पचास लोग दूसरे छोर पर होते हैं। अगर आपको दस प्रतिभाशाली व्यक्ति पैदा करने हैं, तो आप अनिवार्य रूप से दस मूढ़ व्यक्ति पैदा करने में सफल हो जाएंगे।
यह बहुत हैरानी की बात मालूम पड़ती है। इसका अर्थ तो यह हुआ कि जितने हम लोगों को तीक्ष्ण बुद्धि देंगे, उसी अनुपात में हम कुछ लोगों से बुद्धि छीन भी लेंगे। जीवन सभी आयामों में संतुलन है, इसका अर्थ यह हुआ कि अगर एक मात्रा स्वस्थ लोगों की होगी, तो उसे संतुलित करती उतनी ही मात्रा अस्वस्थ और बीमार लोगों की होगी।
लाओत्से कहता है कि संतुलन से बचा नहीं जा सकता। अगर हम अच्छे लोग दस पैदा कर लेंगे, तो दस बुरे लोग अनिवार्य रूप से पैदा हो जाएंगे। वे अच्छे दस लोगों का दूसरा पहलू है। और जैसे एक सिक्का एक ही पहलू का नहीं हो सकता, वैसे ही इस जीवन के रहस्य में भी एक व्यक्तित्व एक ही पहलू का नहीं हो सकता। तो जब एक साधु पैदा होता है, तो अनिवार्य रूप से एक असाधु पैदा होता है।
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