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श्रेष्ठ शासक कौन? - जो परमात्मा जैसा हो
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'जब शासक प्रजा की श्रद्धा के पात्र नहीं रह जाते और प्रजा उनमें विश्वास नहीं करती, तब ऐसे शासक शपथों का सहारा लेते हैं।'
ईसाइयों का एक संप्रदाय है, क्वेकर । वे शपथ नहीं लेते अदालत में, कसम नहीं खाते; कसम खाने को पाप मानते हैं। इसके लिए उन्होंने बहुत मुसीबत सही; क्योंकि अदालत तो कसम पहले दिलवाएगी कि कसम खाओ • बाइबिल को हाथ में लेकर, या ईश्वर को साक्षी रख कर, कि तुम जो कहोगे, वह सच होगा। ईसाई क्वेकर कहते हैं। कि जो शपथ मैं लूंगा, अगर मैं असत्य ही बोलने वाला हूं, तो शपथ भी असत्य ली जा सकती है। कम से कम शपथ लेने के पहले तो मैंने कोई शपथ नहीं ली है। जब मैं कहता हूं कि जो मैं बोलूंगा, वह मैं सत्य ही बोलूंगा, इसके पहले मेरी क्या शपथ है? मैं यह भी तो झूठ बोल सकता हूं। और अगर मुझ पर भरोसा है, तो शपथ की कोई भी जरूरत नहीं और अगर मुझ पर भरोसा नहीं है, तो मेरी शपथ पर भरोसा करने का क्या कारण ?
फिर क्वेकर कहते हैं कि हम शपथ खाएं, उसका मतलब यह है कि हम झूठ भी बोलते हैं। मैं कसम खाऊं कि मैं सच ही बोलूंगा अदालत में, उसका मतलब यह है कि मैं झूठ भी बोलता हूं। इसलिए शपथ झूठ बोलने वाला ही खा सकता है। इसलिए जितनी कसमें खाने वाले लोग होते हैं, उनसे जरा सावधान रहना! जो घड़ी-घड़ी कसम खाते हैं, खतरनाक लोग हैं। असल में, कसम खाकर वे आपको और अपने को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि आदमी अच्छा हूं, कसम खाता हूं।
जब सम्राट के पास कोई उपाय नहीं रह जाता लोगों में श्रद्धा जगाने का, तब शपथ उतर आती है। अगर सम्राट लोगों में श्रद्धा जगा सकता है, तो कसम खाने का कोई भी सवाल नहीं है।
एक व्यक्ति मेरे पास आए थे। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं बड़ी मुश्किल में पड़ा हूं। आपकी बात मुझे ठीक लगती है, आपके पास मैं आना चाहता हूं; लेकिन मैं पहले एक गुरु बना चुका हूं। और उन गुरु ने मुझे कसम खिला दी है कि अब दुबारा किसी को गुरु मत बनाना ।
तो मैंने उनको कहा कि तुम्हारे गुरु को पहले ही शक रहा होगा अपने पर अपने पर शक रहा होगा, भरोसा न रहा होगा अपनी गुरुता का, इसीलिए तुम्हें शपथ दिला दी है। अगर यह भरोसा होता, तो यह शपथ की कोई जरूरत ही न थी । डर रहा होगा कि आज नहीं कल छोड़ कर तुम किसी और गुरु के पास चले जाओगे। इस भय का उपाय किया है। तो मैंने उनसे कहा, जो गुरु शपथ दिलाता हो, शपथ देने के पहले ही भाग खड़े होना। क्योंकि आज नहीं कल भागोगे ही, यह गुरु भी जानता है। उसे खुद भी भरोसा नहीं है अपने पर कि तुम्हें रोक पाएगा।
श्रद्धा शपथ नहीं दिलाती, सिर्फ संभावना जगाती है। शपथ श्रद्धा के अभाव से पैदा होती है । अदालत, मंदिर में हमें शादी करवा कर कसम दिलवानी पड़ती है पति-पत्नी को कि सदा मैं तुम्हारा रहूंगा, कि सदा मैं तुम्हारी रहूंगी। उसी दिन बात खराब गई। वह शपथ ही बता रही है कि मामला टूट चुका है। शादी के पहले तलाक हो गया। यह शपथ किस बात की खबर है? यह इस बात की खबर है कि पक्का पता है कि आज नहीं कल तुम अलग होना चाहोगे। अगर दो व्यक्तियों में प्रेम है, तो यह खयाल भी नहीं आएगा कि हम कसम खाएं कि हम सदा साथ रहेंगे। यह प्रेम न होने की खबर है। लोग प्रेम के कारण विवाह नहीं करते; प्रेम नहीं है, इस डर से विवाह करते हैं। जमीन पर प्रेम हो, तो शायद विवाह अनावश्यक हो जाए। जब तक प्रेम नहीं है, तब तक विवाह अनिवार्य है। क्योंकि जो हम नहीं कर सकते, वह हम कसमें खाकर आयोजन कर लेते हैं। जो सहज नहीं हो सकता, उसकी हम नियम बना कर व्यवस्था कर लेते हैं।
लाओत्से कहता है, जो शासक श्रद्धा पैदा नहीं करवा पाते...। वे शासक कोई भी हों। चाहे वे राज्य के शासक हों और चाहे धर्मगुरु हों; जिनसे भी शासन मिलता है, डिसिप्लिन मिलती है, जिनसे भी जीवन को दिशा