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ताओ उपनिषद भाग २
मिलती है, वे सभी शासक हैं। वे चाहे माता-पिता हों, चाहे गुरुजन हों, चाहे वृद्धजन हों; जिनसे भी शासन मिलता है जीवन को, अनुशासन मिलता है और जिनसे भी मार्ग-निर्देश मिलता है, जब वे श्रद्धा नहीं पैदा करवा पाते, तब वे शपथ पर उतर आते हैं।
'लेकिन जब श्रेष्ठ शासक का काम पूरा हो जाता है, तब प्रजा कहती है, यह हमने स्वयं किया है।'
जब श्रेष्ठ गुरु का काम पूरा हो जाता है, तो शिष्य अनुभव करता है, यह मैंने स्वयं पाया है। जब श्रेष्ठ पिता का काम पूरा हो जाता है, तो बेटा अनुभव करता है, यह मेरी अपनी उपलब्धि है। और गुरु का यही आनंद है कि एक दिन शिष्य जान पाए कि जो भी उसने जाना है, उसने ही जाना है। इसका अर्थ यह हुआ कि गुरु ने इतनी भी बाधा नहीं डाली, इतनी भी अड़चन नहीं डाली कि शिष्य को याद रहे कि गुरु ने कुछ किया है।
गुरु के करने के भी ये ही चार ढंग हैं, जो शासक के हैं।
और लाओत्से निष्क्रियता को श्रेष्ठतम मानता है। और जितनी सक्रियता बढ़ती जाती है, उतनी बात निकृष्ट होती जाती है। शून्यता सर्वश्रेष्ठ है। और जितनी शून्यता के बाहर हम आते हैं और आंधी में पड़ते जाते हैं, उतने निकृष्ट होते चले जाते हैं।
आज इतना ही। पांच मिनट रुकें, कीर्तन करें, और फिर जाएं।
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