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ताओ उपनिषद भाग २
स्वर्ग-नरक सब दिखाई पड़ने लगेंगे। मौत जैसे करीब आती है, वैसे आदमी धार्मिक होने लगता है-अनुपात में। जैसे मौत करीब आती है, आदमी धार्मिक होने लगता है। मौत के करीब आने से धार्मिक होने का क्या लेना-देना होगा? भय बढ़ने लगता है, हाथ-पैर कंपने लगते हैं, डर लगने लगता है, घबड़ाहट होने लगती है।
जिससे हम भयभीत होते हैं, वह परमात्मा नहीं है। वह हमारे भय का ही विस्तार है। लाओत्से कहता है, उससे भी कम से वह डरती है।'
तृतीय कोटि का जो शासक है। अगर हम सारी दुनिया में शासन को देखें, तो वह तृतीय कोटि का ही होगा। क्योंकि सारा शासन भय पर खड़ा है। कानून, अदालत, सब भय पर खड़े हैं।
'और सबसे घटिया शासक की वह निंदा करती है।' चौथी कोटि, इस सीमा पर पहुंच जाती है स्थिति कि लोगों को निंदा करनी पड़ती है।
लेकिन एक मजे की बात है। चेस्टरटन ने कहा है कि किसी जगह से मैं गुजरूं, तुम अगर मेरी प्रशंसा न करो, तो कम से कम निंदा तो करो। क्योंकि निंदा करके भी तुम स्वीकार करते हो कि मैं कुछ हूं।
ध्यान रहे, इस जगत में उपेक्षा से बड़ी पीड़ा नहीं है। निंदा भी इतनी बड़ी पीड़ा नहीं है। जब लोग आपकी निंदा भी करते हैं, तब भी आपको स्वीकार करते हैं कि आप कुछ हैं। अगर लोग निंदा भी न करें, प्रशंसा भी न करें, उपेक्षा करें, तो फिर अहंकार को कोई जगह नहीं मिलती खड़े होने के लिए।
चौथे शासक वे हैं, जो आपकी निंदा से भी जीते हैं, आपकी निंदा पर ही जीते हैं। आपको इस हालत में खड़ा कर देते हैं कि आपको सतत उनकी निंदा तो करनी ही पड़ेगी। मगर तब भी ध्यान आपको उन पर ही देना पड़ता है। कोई हर्ज नहीं, बदनामी ही सही, गाली-गलौज ही सही। किसी रास्ते पर फूल मिलें, तो ठीक; पत्थर मिलें, तो भी ठीक। लेकिन किसी रास्ते पर कुछ भी न मिले, कोई देखे ही नहीं; तब बहुत पीड़ा होगी। क्योंकि अहंकार ध्यान मांगता है, आकर्षित करना चाहता है लोगों को।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि दुनिया में इतने ज्यादा अपराधों का कारण? कारण वही है, जिस कारण से लोग साधु होते हैं। कारण में कोई फर्क नहीं है। जो साधु होकर प्रशंसा पा सकता है, वह साधु हो जाता है। जो उतना नहीं कर सकता, वह अपराधी होकर निंदा पा लेता है। लेकिन दोनों अखबार में सुर्खियां बना देते हैं। बुरा आदमी भी तब तक न मिटेगा दुनिया से, जब तक हम बुराई की निंदा करते हैं। यह बहुत कठिन मालूम पड़ेगा। यह उलटा गणित है।
जीसस ने कहा है, रेसिस्ट नॉट ईविल, बुराई का भी विरोध मत करो। क्योंकि विरोध करके भी तुम बुराई को आदर दे रहे हो। और विरोध करके भी तुम बुराई पर ध्यान दे रहे हो। और विरोध करके भी तुम बुराई को प्राण दे रहे हो। बुराई का भी विरोध मत करो। क्योंकि बुरा आदमी भी, जब तुम निंदा करते हो, तो आनंदित होता है।
आप ऐसा मत समझना कि हायरेरकी राजधानियों में ही होती है; जेलखानों में भी होती है। जेलखानों में आप जाएं, तो वहां भी दादा अपराधी होते हैं। साधारण अपराधी भी होते हैं; बड़े, महान अपराधी भी होते हैं। और जब जेल में नया अपराधी पहुंचता है, तो लोग उससे पूछते हैं, पहली दफे ही आ रहे हो? यानी सिक्खड़ हो, नए-नए हो, एमेच्योर! वहां गुरुजन भी होते हैं; वे जो काफी निष्णात हैं, जो कुशल हैं, बहुत बार आए-गए हैं। वहां भी हायरेरकी है। कितने अपराध किए हैं, उससे उतना ही आदर मिलता है जेलखाने में; जैसे मंदिर में कितना दान किया है, उससे मिलता है। कितना आतंक फैला दिया है लोगों में, उससे भी आनंद मिलता है। अहंकार के तप्त होने के रास्ते बड़े सूक्ष्म हैं।
लाओत्से कहता है, जो चतुर्थ कोटि है, वह सबसे घटिया शासक की है। प्रजा उसकी निंदा करती है। लेकिन वह निंदा से ही जीता है।
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