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ताओ उपनिषद भाग २
इसलिए लाओत्से कहता है, श्रेष्ठतम शासक कौन? जिसके होने की भी खबर न हो। 'उससे कम श्रेष्ठ को प्रजा प्रेम और प्रशंसा देती है।'
हम सोचेंगे, तो हमें कठिन लगेगा। हमें लगेगा, जो श्रेष्ठतम है, उसे प्रजा प्रेम और प्रशंसा देती है। लेकिन लाओत्से कहता है, वह नंबर दो का शासक है। क्योंकि प्रेम और प्रशंसा पाने के लिए उसे कुछ करना पड़ता है। और प्रजा उसे प्रेम और प्रशंसा इसीलिए देती है कि वह कुछ करता है। जो कुछ भी नहीं करता, जो शून्यवत है, प्रजा को उसका पता ही नहीं चलेगा। यद्यपि बहुत कुछ उससे होगा, लेकिन प्रजा को पता नहीं चलेगा।
वह जो शून्यवत है, उसके संबंध में आखिरी सूत्र में लाओत्से कहता है, और जब श्रेष्ठ शासक का काम पूरा हो जाता है, तब प्रजा कहती है, यह हमने स्वयं किया है।'
क्योंकि वह कभी घोषणा भी नहीं करता कि यह मैं कर रहा हूं। यह कभी किसी को पता भी नहीं चलता कि यह किसने क्या है। और जब पता नहीं चलता, तो हर आदमी सोचता है, यह मैंने किया है।
उससे कम श्रेष्ठ को प्रजा प्रेम और प्रशंसा देती है, आदर करती है।
आपका आदर पाना हो, प्रशंसा पानी हो, प्रेम पाना हो, तो फिर अपनी मौजूदगी आपको अनुभव करवानी ही . पड़ेगी। अच्छे ढंग से, ऐसे ढंग से कि आप प्रशंसा करें, प्रेम करें। लेकिन निष्क्रियता के बिंदु से यह आदमी सक्रियता में उतर आया, कुछ करने में लग गया। और चाहे प्रेम भी किया जाए...।
प्रेम हो, यह बिलकुल और बात है। लेकिन साधारणतः जो प्रेम होता है, उसका आपको पता भी नहीं चल सकता। अगर कोई आपको प्रेम करता है, तो उसका पता कैसे चलता है? वह कहे कि आपको प्रेम करता है, कि आभूषण लाकर भेंट करे- कुछ करे कि पता चले कि प्रेम करता है। अगर कोई आपको प्रेम करता है और कभी न कहे, और न कभी कुछ भेंट करे, और उसका प्रेम मौन हो और चुप हो, तो आपको पता भी नहीं चलेगा।
प्रेम का भी पता तब चलता है, जब प्रेम एग्रेसिव, आक्रामक हो जाता है। इसलिए जितना आक्रामक प्रेमी होता है, उतना पता चलता है। जो जितना हमलावर प्रेमी होता है, उतना पता चलता है। जो शांत प्रेमी होता है, उसका पता भी नहीं चलेगा। क्योंकि शांत प्रेम के अनुभव के लिए आपकी चेतना भी इतनी ऊपर उठनी चाहिए कि शांति के संदेश को भी पकड़ पाए। आप हिंसा का संदेश ही पकड़ पाते हैं, आक्रमण को ही पकड़ पाते हैं। इसलिए जो प्रेमी जितना आक्रामक है, वह उतना ज्यादा प्रेमी मालूम पड़ता है।
अगर सम्राट द्वितीय कोटि का है, तो ही, लाओत्से कहता है, प्रजा उसको प्रशंसा और प्रेम दे पाएगी। क्योंकि द्वितीय कोटि का होगा, तो ही प्रजा को पता चलेगा।
प्रेम भी शून्य से नीचे की घटना है। एक प्रेम है, जो शून्य में भी होता है। लेकिन फिर उसका कोई पता नहीं चलता। उसका कोई पता नहीं चलता। परमात्मा के प्रेम का आपको कभी कोई पता चला है? यद्यपि उसके बिना प्रेम के आपकी श्वास भी नहीं चल सकती। उसके बिना प्रेम के एक फूल भी नहीं खिल सकता। उसके बिना प्रेम के कुछ भी संभव नहीं है। उसका प्रेम ही सब संभावनाओं का स्रोत है। लेकिन उसका कोई पता नहीं चलता। इसलिए परमात्मा को हम प्रेमी नहीं बना पाते। हम एक क्षुद्रतम आदमी को प्रेमी बना लेंगे। उसका प्रेम आक्रामक है, पता चलता है।
इसलिए प्रेम का अभिनय भी किया जा सकता है। क्योंकि आप पता भर चलवा दें, तो प्रेम का अभिनय पूरा हो जाएगा। प्रेम न हो, तो भी आप प्रेमी बन सकते हैं, अगर आप थोड़ा अभिनय कर सकें, प्रकट करने में अभिनय कर सकें। और प्रेम हो, तो भी पता न चलेगा, अगर आप कृत्य तक उसको प्रकट न होने दें। शायद सच्चा प्रेमी कभी भी पता नहीं चल पाता; क्योंकि सच्चा प्रेमी इतना भी आक्रमण नहीं कर सकता कि कहे कि मैं प्रेम करता हूं। पर वह हमारी सीमा के बाहर छूट जाता है। वैसा शासक, वैसा प्रेमी हमारी सीमा के बाहर छूट जाता है।
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