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श्रेष्ठ शासक कौन?-जो परमात्मा जसा को
लोग बड़े परेशान होते हैं कि कल जो आदमी चरणों में सिर रखने को राजी था एक मत पाने के लिए, अचानक विजेता होकर वही आदमी उनकी तरफ देखता भी नहीं। शायद वही आदमी उनके सिर को भी इस योग्य नहीं मानता कि उस पर चरण रखे।
जनता बेचैन होती है, लेकिन बेचैन बिलकुल नहीं होना चाहिए। गणित बिलकुल साफ है। तुम्हारे चरणों पर सिर रखा ही इसलिए गया था, ताकि तुम्हारे सिरों पर चरण रखे जा सकें। सीधा गणित है। इसमें कुछ बेचैन होने जैसा नहीं। इसमें कहीं कुछ गलती नहीं हो रही है। इसमें वही हो रहा है, जो पूर्व नियोजित था। और जब आप इतने प्रसन्न हो गए थे चरणों पर सिर रखते वक्त, तो अब उनको भी प्रसन्न होने दें। यह लेन-देन है।
आज तो राजपद की तरफ वही आदमी जाता है, जो अनुभव करता है कि बिना पद पर हुए कोई अनुभव नहीं करेगा कि मैं भी था। होने का अनुभव अब तो कुर्सी पर ही होकर हो सकता है। इसलिए आज लाओत्से जैसे लोगों की बात समझनी बड़ी कठिन है। लेकिन कभी यह बात भी सार्थक थी और कभी इस पृथ्वी पर वैसे राजा भी हुए हैं, जिनके होने की कोई खबर लोगों को नहीं हुई, या इतनी ही ज्यादा से ज्यादा खबर हो सकी कि वे हैं।
__ लाओत्से कहता है कि सम्राट का यह गुण है, वही सम्राट है, कि जो अपने भीतर अहंकार को इस तरह पोंछ डाले कि एक शून्य हो जाए। सिंहासन पर अगर शून्य बैठा हो, तो राज्य में मंगल होगा, ऐसा लाओत्से की धारणा है! लेकिन अब तो सिंहासनों पर अहंकार के सघन रूप बैठे हैं। मंगल असंभव है। लाओत्से कहता है, पद पर होने का वही हकदार है, जो मिट ही गया हो, जो हो ही नहीं। जो जितनी ज्यादा मात्रा में है, उतना ही पद पर होने का अधिकारी नहीं है। अहंकार और सिंहासन का जोड़ जहरीला है। अहंकार और शक्ति का जोड़ खतरनाक है। शक्ति वहीं होनी चाहिए, जहां निरहंकार हो। जहां निरहंकार हो, वहीं शक्ति प्रवाहित होनी चाहिए।
इसलिए हमने इस मुल्क में एक अदभुत प्रयोग किया था कि हमने क्षत्रिय के ऊपर भी, राजा के ऊपर भी, ब्राह्मण को रख दिया था। यह अनूठा प्रयोग था मनुष्य-जाति के इतिहास में। असफल गया। जितना बड़ा प्रयास हो, उतनी असफलता की ज्यादा संभावना होती है जितना क्षुद्र प्रयास हो, उतनी सफलता की ज्यादा संभावना होती है। कम्युनिज्म सफल होकर रहेगा; क्योंकि मनुष्य-जाति के इतिहास में क्षुद्रतम प्रयोग है। असफल नहीं हो सकता। यह प्रयोग असफल हुआ कि हमने ब्राह्मण को ऊपर रख दिया; भिखारी को, जन्मजात भिखारी को, जिसके पास कुछ भी न था, उसे हमने सम्राट के ऊपर रख दिया।
बुद्ध एक गांव में आए हैं। उस गांव का सम्राट अपने मंत्रियों को पूछता है कि क्या यह उचित होगा कि मैं बुद्ध का स्वागत करने गांव के द्वार पर जाऊं? उसका जो प्रधानमंत्री है, उसने यह सुनते से ही अपना इस्तीफा लिख कर उस राजा को दे दिया। और उसने कहा कि मुझे क्षमा कर दें, अब मैं आपकी सेवा नहीं कर सकता हूं। पर उस सम्राट ने कहा, इसमें अभी ऐसी क्या बात हो गई? उसने कहा, यह पूछना ही कि क्या यह उचित होगा कि मैं बुद्ध का स्वागत करने जाऊं, आपकी अयोग्यता का प्रमाण है। बात समाप्त हो गई। मैं आपके नीचे नहीं रुक सकता अब। ऐसे आदमी के पास रुकना पाप है। यह पूछना ही हद्द हो गयी अशिष्टता की। सम्राट ने कहा, इसमें...। मैं यह भी नहीं कह रहा हूं कि न जाऊं; पूछता हूं, क्या यह उचित होगा कि एक सम्राट और एक भिखारी का स्वागत करने जाए? उस आमात्य ने, उस वृद्ध मंत्री ने कहा, यही सम्राट की शोभा है। और ध्यान रखें, भूल न जाएं कि वह जो भिखारी की तरह आज गांव में आ रहा है, वह भी कभी सम्राट था। वह साम्राज्य को छोड़ कर भिखारी हुआ है; अभी आप साम्राज्य को पकड़े हुए हैं। आपकी हैसियत उसके मुकाबले नहीं है। वह सम्राट होने योग्य भिखारी है; आप भिखारी होने योग्य सम्राट हैं।
जो ना-कुछ हो गया है, वह श्रेष्ठतम है। जो कुछ भी नहीं है, वही सब कुछ है।
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