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ताओ उपनिषद भाग २
इसलिए साधु-महात्मा बड़े सूक्ष्म रूप में हिंसक होते हैं; क्योंकि वे आपको वैसा ही स्वीकार नहीं कर सकते, जैसे आप हैं। वे आपको बदलेंगे। वे आपको अच्छा बनाएंगे। वे आपको शुभ बनाएंगे। वे आपके जीवन से मिट्टी अलग करेंगे और सोना डालेंगे।
बड़े अच्छे उनके खयाल हैं। लेकिन दूसरे को बदलने का खयाल ही दूसरे को मिटाने का खयाल है। दूसरा जैसा है, उसमें रत्ती भर भी फर्क करने का अर्थ है कि हमें दूसरे की स्वतंत्रता स्वीकार नहीं। और हम में से कोई भी दूसरे की स्वतंत्रता बर्दाश्त नहीं करता। बाप बेटे को बदलने में लगा है, बनाने में लगा है; बिना इसकी फिक्र किए कि वह खुद भी बन पाया है या नहीं। हर बाप बेटे के साथ हिंसा करता है। इसलिए दुनिया इतनी बुरी है। फिर बेटे अपने बेटों के साथ निकाल लेते हैं। और सिलसिला जारी रहता है। ऐसी पत्नी खोजनी मुश्किल है, जो पति को बदलने में न लगी हो। अब तक ऐसा पति नहीं हो सका हो ही नहीं सका, श्रेष्ठतम रहा हो, तो भी—जिसमें पत्नी के लिए बदलाहट का काम बाकी न हो। सुकरात जैसा पति मिल जाए, तो भी पत्नी बदलने की कोशिश करती है। बड़ी भली आशा से, बड़ी अच्छी आकांक्षा से-अच्छा बनाने की।
__ और एक मजे की बात है, जब आप किसी को अच्छा बनाने की कोशिश में लग जाते हैं, तो आप बड़ी . कुशलता से दुष्ट हो सकते हैं। और दुष्टता चूंकि अच्छाई में छिपी होती है, इसलिए उसका विरोध भी नहीं किया जा सकता। इसलिए जो नासमझ दुष्ट हैं, वे सीधे-सीधे दुष्ट होते हैं। जो समझदार और चालाक दुष्ट हैं, वे अच्छाई के नाम पर दुष्ट होते हैं। अगर कोई आदमी आपको ही बदलने के लिए आपकी गर्दन पकड़ ले, तो विरोध भी तो नहीं किया जा सकता, बगावत भी तो नहीं की जा सकती। इसलिए तथाकथित अच्छे आदमियों के साथ में बेचैनी मालूम पड़ती है।
__ तो मैं आपको सूत्र देता हूं: वही है ठीक अच्छा आदमी, जिसके साथ बेचैनी मालूम न पड़े। अगर किसी अच्छे आदमी के पास बेचैनी मालूम पड़े, तो समझना कि उस अच्छे आदमी से कुछ न कुछ हिंसा आपकी तरफ बहती है। इसलिए महात्माओं के दर्शन किए जा सकते हैं, उनके साथ रहना बड़ा मुश्किल है। क्योंकि चौबीस घंटे उनकी आंखें आप पर गड़ी हुई हैं-आपने यह तो नहीं खाया, यह तो नहीं पीया, ऐसे तो नहीं बैठे, वैसे तो नहीं सोए। वे चौबीस घंटे आपके पहरे पर हैं। आप जैसे हैं, वह उन्हें स्वीकार नहीं है।
बड़ा मजा है, आप जैसे हैं, परमात्मा को आप बिलकुल स्वीकार हैं। अब तक मैं नहीं समझता कि बुरे से बुरे आदमी से भी परमात्मा ने शिकायत की हो कि तू थोड़ा अच्छा हो जा! थोड़ा तो सुधर! परमात्मा ने अब तक शिकायत ही नहीं की। और महात्माओं के पास सिवाय शिकायत करने के दूसरा कोई काम नहीं है। ऐसा लगता है कि महात्माओं का धंधा और परमात्मा के धंधे में बुनियादी दुश्मनी है। परमात्मा को सर्व-स्वीकार है।
लाओत्से का यह सूत्र इसी ओर इशारा करने वाला सूत्र है। लाओत्से कहता है, "सर्वश्रेष्ठ शासक कौन है? जिसके होने की भी खबर प्रजा को न हो।'
पता ही न चले कि वह है भी। क्योंकि होने की भी खबर हिंसा है। अगर बेटे को पता चलता है घर में कि बाप है, तो बाप की तरफ से कोई न कोई हिंसा जारी है। अगर पति को पता चलता है कि घर में पत्नी है और दरवाजे पर सम्हल कर और टाई वगैरह ठीक करके उसको भीतर प्रवेश करना पड़ता है, तो समझना कि हिंसा है। अगर पति के आने से पत्नी ठीक वैसी ही नहीं रह जाती जैसी अकेले में थी, तो समझना कि पति की तरफ से हिंसा है। होने का पता ही नहीं चलना चाहिए। प्रेम की जो परम अभिव्यक्ति है, वह यही है कि प्रेमी का पता ही न चले, उसकी मौजूदगी कहीं भी चोट न करे।
ध्यान रखें, पता ही चलता है चोट से। संस्कृत में बड़े कीमती शब्द हैं। एक कीमती शब्द है वेदना। वेदना के
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