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ताओ उपनिषद भाग २
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जब तक जीवन की चाह है, तब तक मौत तो बुरी होगी ही । और जब तक स्वास्थ्य की आकांक्षा है, तब तक बीमारी शत्रु है। जब हम किसी चीज को ठीक और गैर-ठीक कहते हैं, तो चीज ठीक या गैर- ठीक है, इससे कोई संबंध नहीं है; हमारी अपेक्षाओं की हम खबर देते हैं।
और अगर ऐसा आदमी कहे कि सब ठीक है, तो यह कंसोलेशन, सांत्वना ही होगी। और इस कहने में कोई आनंद न होगा, सिर्फ एक निराशा, एक उदासी होगी । इस वक्तव्य में कोई विजय की घोषणा नहीं है; इस वक्तव्य में पराजय का स्वीकार है। कुछ नहीं कर पाते हैं, इसलिए समझा लेते हैं अपने को कह कर कि सब ठीक है।
संतोष पराजितों की भी सहायता करता है। लेकिन वह संतोष झूठा होता है। वास्तविक संतोष तो उन्हें ही मिलता है, जो जीवन के विजेता हैं। विजेता इन अर्थों में कि अब कोई उपाय नहीं है उन्हें हराने का ; विजेता इन अर्थों में कि अब उन्हें हार भी हार नहीं है। और लाओत्से ने कहा है, तुम मुझे हरा न सकोगे, क्योंकि मैं पहले से ही हारा हुआ हूं। तुम मुझे मेरे सिंहासन से उतार न सकोगे, क्योंकि मैं जहां बैठा हूं, वह अंतिम स्थान है। उससे नीचे उतारने का कोई उपाय नहीं है। तुम मुझे दुख न दे सकोगे, क्योंकि मैंने सुख की आकांक्षा को ही विसर्जित कर दिया है। इस अर्थ में जो विजेता है, संतोष उसके जीवन में प्रकाश की तरह है।
हम जैसे हारे हुए लोग... । और हम बहुत हारे हुए लोग हैं; क्योंकि जो भी हम चाहते हैं, वह नहीं मिलता। जो भी हम कामना करते हैं, वही कामना टूट जाती है, बिखर जाती है। हम बुरी तरह हारे हुए लोग हैं- सर्वहारा, सब कुछ हारे हुए हैं; कुछ मिलता नहीं है। इस हार में भी संतोष का उपयोग किया जा सकता है। तब वह झूठा है। तब ऊपर से थोपा हुआ, चिपकाया हुआ है। तब भी हम कह सकते हैं, सब ठीक है। तब ईसप की कथा ठीक है।
ईसप की कथा हम सबको ज्ञात है कि लोमड़ी ने बहुत छलांग मारीं, अंगूरों तक नहीं पहुंच सकी। लेकिन अहंकार यह भी तो स्वीकार नहीं कर सकता कि मेरी छलांग छोटी है। अहंकार यही कहेगा कि अंगूर खट्टे हैं ।
लेकिन यह कहानी अधूरी है। ईसप दुबारा आए, तो कहानी को पूरा करे। मैं कहानी को पूरा कर देता हूं। जब इस लोमड़ी ने ईसप की कहानी पढ़ी, तो उसने तत्काल एक जिम्नाजियम में जाकर व्यायाम करना शुरू कर दिया । छलांग लगानी सीखी, दवाएं लीं, ताकत के लिए विटामिन्स लिए । और लोमड़ी इतनी ताकतवर हो गई कि वापस गई उसी वृक्ष के नीचे और पहली ही छलांग में अंगूर का गुच्छा उसके हाथ में आ गया। लेकिन जब उसने चखा, तो अंगूर सच में ही खट्टे थे। लेकिन अब लोमड़ी क्या करे? उसने लौट कर लोगों से कहा कि अंगूर बहुत मीठे हैं।
अहंकार है, तो कहीं से भी भर लेगा । न पहुंच पाएं अंगूर तक, तो अंगूर खट्टे हैं। और पहुंच जाएं, तो खट्टे भी हों तो भी मीठे हैं। एक बात ध्यान रख लेनी जरूरी है कि हम जो भी वक्तव्य दे रहे हैं, वह वक्तव्य हमारी पराजय से तो नहीं निकलता है? हार से तो नहीं निकलता है ? हारे हुए वक्तव्यों का कोई भी मूल्य नहीं है।
और लाओत्से आपको यह नहीं सिखा रहा है कि आप थोप लें संतोष । लाओत्से यह कह रहा है कि संतोष जीवन के साथ संगीत का संबंध है, पराजय का नहीं । दुश्मनी का नहीं, मैत्री का संबंध है। लाओत्से यह कह रहा है कि जो भी होता है, वह इतनी विराट घटना है और इतने विराट उसके कारण हैं और इतना विराट उसका फैलाव और रहस्य है कि आप बचकानापन करेंगे, अगर आप निर्णय करें कि ठीक है या गलत है। आप निर्णायक नहीं हो सकते। जगत इतनी बड़ी घटना है कि उसमें जो होता है, वह तो एक फ्रैगमेंट, एक टुकड़ा है। जैसे कि किसी आदमी को एक उपन्यास का एक पन्ना में हाथ लग जाए और वह उस पन्ने को पढ़ कर निर्णय ले कि उपन्यास नैतिक है या अनैतिक है, अश्लील है कि श्लील है, श्रेष्ठ है कि निकृष्ट है, और उस पन्ने पर वह निर्णय करे ठीक या गलत होने तो हम उसे नासमझ कहेंगे। हम कहेंगे, पूरी कथा से परिचित हो जाना जरूरी है निर्णय के पहले। लेकिन जगत के संबंध में हम रोज निर्णय लेते हैं। और जगत की पूरी कथा से परिचित होने का कोई भी उपाय नहीं है।
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